छत्तीसगढ़ के मैदानी इलाकों में पाई जाने वाली नाटी और दुबली-पतली देशी कोसली गायों ने दूध उत्पादन के मामले में देश के 36 राज्यों में 17-18वें नंबर पर पहुंचा दिया है. कोसली एक ‘देसी’ मवेशी नस्ल है. इनका मेंटेनेंस नहीं के बराबर है. बिना देखरेख के सूखा पैरा खाकर भी रोज ढाई से तीन लीटर दूध देने की क्षमता रखती है.
इसलिए पड़ा कोसली नाम
छत्तीसगढ़ के मध्य मैदानी इलाकों में पाई जाती है. इस क्षेत्र का प्राचीन नाम कौशल था, जो भगवान श्रीराम के मामा के नाम पर रखा गया था, और इसलिए इसका नाम कोसली पड़ा. कोसली गाय छत्तीसगढ़ की एक मात्र रजिस्टर्ड गाय है. वहीं इसको मुख्य रूप से छत्तीसगढ़ राज्य के रायपुर, दुर्ग, बिलासपुर और जांजगीर जिलों के आसपास के क्षेत्रों में पाला जाता है. वहीं यह गाय छोटे कद काठी की होती है. इस गाय के मूत्र में यूरिया, खनिज लवण, एंजाइम व फसलों के लिए उपयोगी अन्य तत्वों की अधिकता होती है. इसके दूध में मिठास अधिक होती है. इनमें बच्चे पैदा करने की क्षमता अधिक होने के साथ इन्हें रोग भी कम होते हैं. Read More – Juhi Chawla ने दिया Shahrukh khan का हेल्थ अपडेट, कहा – IPL के फाइनल मैच जरूर आएंगे वो …
कोसली गाय की पहचान और विशेषताएं
कोसली नस्ल की गाय एक ब्यान्त में अधिकतम 250 लीटर तक दूध देती है. इनके दूध में अधिकतम फैट की मात्रा 4.5 प्रतिशत पाया जाता है. ऐसे में कोसली गाय की पहचान और विशेषताएं जानते हैं
दो-तिहाई मवेशियों के कोट का रंग हल्का लाल पाया जाता है, जबकि एक तिहाई का रंग सफेद-भूरा होता है. सिर चौड़ा होता है, जबकि माथा सपाट और सीधा होता है. बैलों की ऊंचाई औसतन 121 सेमी और गायों की ऊंचाई 103 सेमी होती है. यह छोटे आकार की लेकिन मजबूत नस्ल है. Read More – शादी करने जा रहे Abdu Rozik, वीडियो शेयर कर फैंस को दी खुशखबरी …
आवास प्रबंधन और रख रखाव
कोसली नस्ल के मवेशियों का रखरखाव व्यापक प्रबंधन प्रणाली के तहत किया जाता है, ताकि इन्हें ठंड, बारिश और तूफान से बचाया जा सके. इन मवेशियों को दिन में चरने दिया जाता है और रात में बांध दिया जाता है. इन्हें समूहों में या अकेले खिलाया जाता है. आम तौर पर इन्हें चारे को चरने के लिए छोड़ दिया जाता है. इसके अलावा, किसानों द्वारा स्थानीय रूप से उगाया जाने वाला चारा भी उपलब्ध कराया जाता है. दूध देने वाले और अधिक गर्भवती पशुओं को अतिरिक्त पोषण के लिए पोषक युक्त पदार्थ भी खिलाया जाता है.
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