World Sight Day : हर साल 13 अक्टूबर को विश्व दृष्टि दिवस (World Sight Day) मनाया जाता है. इस वर्ष की थीम है “लव यूअर आई “(love your eye), अपनी आंखों से प्रेम करो और अपनी आंखों से प्यार करने का अर्थ है अपनी आंखों की हिफाजत करना. अपनी आंखों की सुरक्षा करना, देखभाल करना, पोषण का ध्यान रखना और उन्हें यथासंभव खतरों से बचाना. दृष्टि प्रकृति का एक अनमोल उपहार है. बिना आंखों के हम प्रकाशवान दुनिया की कल्पना नहीं कर सकते. कुछ पल के लिए आंखें बंद करते ही हमारे सामने अंधकार छा जाता हैं. वहीं दूसरी ओर जब हम अपनी आंखें खोलते हैं ,तो रंग बिरंगी दुनिया, मन को सुकून देने वाले दृश्य दिखाई देता है.

यदि देखा जाए तो दुनिया में 3 करोड़ से ज्यादा लोग दृष्टिहीन हैं. भारत में 1 करोड़ 20 लाख लोग पूरी तरह से दृष्टिहीन हैं. 80 लाख लोगों की एक आंख खराब है और 4 -5 करोड़ लोग कम दृष्टि के कारण घर से बाहर निकलने, मन माफिक काम करने, चलने फिरने से पूरी तरह बाधित हैं. किसी भी व्यक्ति की दृष्टि निम्नलिखित बातों पर निर्भर करती है-

उसका भोजन, पोषण, अनुवांशिकता, उसका कार्यक्षेत्र, साथ ही उम्र और शारीरिक अवस्था पर भी निर्भर होता है. दृष्टि को तीन तरह से देखा जा सकता है. पहला- दूरदृष्टि मतलब हमारी दूर तक देखने की क्षमता, दूसरा- निकट दृष्टि या नजदीक की नजर, नजदीक का काम करने की क्षमता, तीसरा- कलर विजन या रंग दृष्टि, जिससे हम विभिन्न रंगों को पहचान सकते हैं. ये हमारी आंखों में होने वाले रॉड और कोन की उपस्थिति के कारण संभव है. हमारी आंखों की बनावट इस प्रकार की होती है कि वह स्वयं अपनी रक्षा करने में सक्षम होती हैं.

अक्सर तेज रौशनी या हवा में पलकें बंद हो जाती हैं जो कि बाहरी कणों को आंखों के अंदर जाने से रोकती हैं, इसके साथ ही हमारी आंखों में अश्रु ग्रंथि होती है, जो हमारी आंखों को नम बनाए रखती हैं. आंखों में जाने वाले बाहरी कण को साफ करने का काम करती है. इसमें सामान्य पानी के अलावा एक प्रकार का तत्व होता है जो आंखों की सामान्य संक्रमण से रक्षा भी करता है और आंखों को नम के साथ-साथ तरोताजा बनाकर रखता है. लेकिन इसके बाद भी फैक्ट्री और कारखानों में काम करने, दुर्घटनाग्रस्त होने अचानक धूल के साथ आंखों में कचरा जाने, तेज गर्म भट्टी के पास काम करने वाले, एसिड और क्षार जैसे रसायनों के बीच में काम करने वाले कर्मचारियों में शरीर के अन्य हिस्सों के साथ ही आंखों में भी चोट पहुंचने और आघात लगने की संभावनाएं रहती हैं. इसलिए आवश्यक है कि जो लोग ऐसे संवेदनशील क्षेत्रों में काम करते हैं उन्हें सुरक्षात्मक चश्मे पहनना चाहिए. साथ ही सावधानी से काम करना चाहिए. सादे पानी से आंखों को धोना चाहिए.

आजकल इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का प्रयोग बढ़ा है, साथ ही मोबाइल टीवी कंप्यूटर का भी उपयोग बढ़ा है. जिसका भी आवश्यकता से ज्यादा उपयोग करने आंखों में नुकसान होने की संभावना रहती हैं. जो लोग बहुत ज्यादा देर तक कंप्यूटर पर काम करते हैं, मोबाइल, टीवी पर समय बिताते हैं, पलक कम झपकते हैं .ऐसे में उनकी आंखों में सूखा पन की समस्या के मामले भी पिछले कुछ वर्षों में बढ़े हैं. जिसे ड्राई आई कहा जाता है. या कंप्यूटर विजन सिंड्रोम कहा जाता है. कोरोनाकाल में घर बैठे काम करने, स्कूलों में ऑन लाइन पढ़ाई करने के कारण भी आंखों की समस्याएं बढ़ी है. एक अध्ययन के अनुसार पहले 8 प्रतिशत बच्चों को चश्मा लगता था, तो अभी करीब 25 प्रतिशत बच्चों को चश्मा लगने लगा है. आंखों की सामान्य समस्याओं में धुंधलापन, सिरदर्द, आंखों में दर्द, आंसू आना, खुजलाहट, चुभन होना, संक्रमण होना, सूजन आदि है. यदि किसी व्यक्ति को दूर या नजदीक का स्पष्ट नहीं दिखाई दे रहा है. सिर दर्द हो, आंसू आ रहे हो, तो उसे समस्या को टालते रहने की बजाय अपनी आंखों का परीक्षण कराना चाहिए और आवश्यकतानुसार उपचार करना चाहिए. क्योंकि लंबे समय तक लापरवाही करने से आंखों की दृष्टि को खतरा हो सकता है. स्थाई रूप से क्षति हो सकती हैं. उसी प्रकार आंखों को साफ सफाई से रखने की आवश्यकता होती है. अपने भोजन में विटामिन ए युक्त वस्तुएं सेवन किया जाना आवश्यक है जो दवा और कैप्सूल के अलावा प्राकृतिक रूप से भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होता है जो हरी सब्जियां, दूध, पनीर, पालक भाजी आम ,अंडा, पनीर मछली आदि में उपस्थित होता है.

यदि उम्र के हिसाब से नेत्र में होने वाली समस्याओं को देखें तो शिशु अवस्था में आंखों की असामान्य बनावट, विटामिन ए की कमी, छोटे-छोटे जन्मगत दोष ,जन्मगत मोतियाबिंद हो सकते हैं .स्कूली बच्चों में दृष्टि दोष की शिकायत देखने में आती है इसलिए अगर कोई बच्चा बहुत नजदीक से किताबें पड़ता है, या बहुत नजदीक जाकर टेलीविजन देखते हैं या ब्लैक बोर्ड से दूर जाने पर धुंधलेपन की शिकायत करता है,तिरछा देखता है, तो उसका नेत्र परीक्षण और उपचार आवश्यक है जिसे आवश्यकतानुसार विटामिन की दवाएं उचित पोषण एवं चश्मे से दूर कर दिया सकते हैं युवावस्था में दृष्टि दोष, काम करते समय होने वाली छोटे दुर्घटनाएं तथा दोष मिलते हैं .वृद्धावस्था में कुछ अतिरिक्त बीमारियां भी जुड़ जाती हैं जैसे मोतियाबिंद, कांच बिंदु, रेटीना की बीमारियां, ब्लड प्रेशर एवं डायबिटीज से जुड़े हुए रेटीना के प्रॉब्लम,बढ़ती उम्र के हिसाब से होने वाले पर्दे के विघटन जैसी बीमारियां होती हैं जिनका उपचार किया जाना संभव संभव है. याद रहे दृष्टि अनमोल है,आप अपनी आंखों से प्रेम करें,सावधानी रखें.ताकि आपकी दृष्टि आजीवन सलामत रहे.

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