World Theatre day 2023: पूरे विश्व में हर वर्ष 27 मार्च को वर्ल्ड थिएटर डे यानी विश्व रंगमंच दिवस मनाया जाता है. विश्व रंगमंच दिवस (World Theatre Day) दुनियाभर के कलाकारों को समर्पित है. ये दिन थिएटर से जुड़े सभी कलाकार लोगों के लिए बहुत खास होता है.

World Theatre day यह दिन लोगों को रंगमंच के महत्व के बारे में शिक्षित और जागरूक करने के लिए मनाया जाता है. रंगमंच एक ऐसा माध्यम है जिसकी मदद से हम अपनी बात लाखों लोगों तक पहुंचा सकते है. रंगमंच मनोरंजन का सबसे पुराना माध्यम है. इस दिन की स्थापना वर्ष 1961 में इंटरनेशनल थिएटर इंस्टिट्यूट (ITI) ने की थी. 27 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय थिएटर समुदाय और ITI केंद्रों द्वारा मनाया जाता है. इस दिन अलग-अलग तरह के कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय थिएटर कार्यक्रम होते हैं. World Theatre Day के दिन लोगों को यह बताया जाता है कि रंगमंच समाज के विकास के लिए क्यों जरूरी है.

बॉलीवुड में कई नामी चेहरे थिएटर की देन (World Theatre day 2023)

मनोरंजन (Entertainment) के लिए पहले के समय सिनेमा नहीं हुआ करता था तब मनोरंजन के लिए लोगों के पास थियेटर ही मात्र एक विकल्प था. आज के समय में भी हम सबके लिए थिएटर का महत्व कम नहीं हुआ है. बॉलीवुड में कई नामी चेहरे थिएटर की ही देन है. जिसमें से

शाहरुख खान,मनोज बाजपेयी, नवाजुद्दीन सिद्दीकी, ओम पुरी, नसीरुद्दीन शाह, अनुपम खेर, शबाना आज़मी जैसे कई कलाकार हैं. जिन्होंने थिएटर में काम करने के बाद बॉलीवुड (Bollywood) में भी काफी तरक्की की.

World Theater Day का उद्देश्य

‘विश्व रंगमंच दिवस’ मनाने के कई महत्वपूर्ण उद्देश्य है, पूरी दुनिया के समाज और लोगों को रंगमंच की संस्कृति के विषय में बताना, रंगमंच के विचारों के महत्व को समझाना, रंगमंच संस्कृति के प्रति लोगों में दिलचस्पी पैदा करना है. इसके साथ ही थिएटर से जुड़े लोगों को सम्मानित करना है.

साथ ही विश्व रंगमंच दिवस (theatre day 2023) मनाने के कुछ अन्य उद्देश्य यह भी हैं कि जैसे दुनिया भर में रंगमंच को बढ़ावा देने, लोगों को रंगमंच की जरूरतों और महत्व से अवगत कराना, रंगमंच का आनंद उठाया और इस रंगमंच के आनंद को दूसरों के साथ शेयर करना, इन सभी उद्देश्यों की पूर्ति करने के लिए करने के लिए यह दिन पुरे विश्वभर में मनाया जाता है.

ये है World Theater Day का इतिहास

विश्व रंगमंच दिवस (world theatre day) के बारे में कहा जाता है कि भारत के महान कवि कालिदास ने भारत की पहली नाट्यशाला (Theatre) में ही ‘मेघदूत‘ की रचना कि थी. भारत की पहली नाट्यशाला अंबिकापुर जिले के रामगढ़ पहाड़ पर स्थित है, जिसका निर्माण कवि कालिदास जी ने ही किया था. आपको बता दें कि भारत में रंगमंच का इतिहास आज का नहीं बल्कि सहस्त्रों साल पुराना है.

आप इसके प्राचीनता को कुछ इस तरह से समझ सकते हैं कि, पुराणों में भी रंगमंच का उल्लेख यम, यामी और उर्वशी के रूप में देखने को मिलता है. इनके संवादों से ही प्रेरित होकर कलाकारों ने नाटकों की रचना शुरू की. जिसके बाद से नाट्यकला का विकास हुआ और भारतीय नाट्यकला को शास्त्रीय रूप देने का कार्य भरतमुनि जी ने किया था.

जानिए भरतमुनि जी के बारे में

भरतमुनि ने नाट्यशास्त्र नामक ग्रंथ लिखा. इनका समय विवादास्पद है. इन्हें 400 ई.पू. 100 ई. सन् के बीच किसी समय का माना जाता है. भरत बड़े प्रतिभाशाली थे. इतना स्पष्ट है कि भरतमुनि नाट्यशास्त्र के गहन जानकार और विद्वान थे. इनके द्वारा रचित ग्रंथ ‘नाट्यशास्त्र’ भारतीय नाट्य और काव्यशास्त्र का आदिग्रन्थ है. इसमें सर्वप्रथम रस सिद्धांत की चर्चा तथा इसके प्रसिद्ध सूत्र -‘विभावानुभाव संचारीभाव संयोगद्रस निष्पति:” की स्थापना की गई है. इसमें नाट्यशास्त्र, संगीतशास्त्र, छंदशास्त्र, अलंकार, रस आदि सभी का सांगोपांग प्रतिपादन किया गया है. कहा गया है कि भरतमुनि रचित प्रथम नाटक का अभिनय, जिसका कथानक ‘देवासुर संग्राम’ था. देवों की विजय के बाद इन्द्र की सभा में हुआ था.

आचार्य भरतमुनि ने अपने नाट्यशास्त्र की उत्पत्ति ब्रह्मा से मानी है क्योंकि शंकर ने ब्रह्मा को तथा ब्रह्मा ने अन्य ऋषियों को काव्यशास्त्र का उपदेश दिया. विद्वानों का मत है कि भरतमुनि रचित पूरा नाट्यशास्त्र अब उपलब्ध नहीं है. जिस रूप में वह उपलब्ध है, उसमें लोग काफ़ी क्षेपक बताते हैं भरतमुनि का नाट्यशास्त्र नाट्य कला से संबंधि प्राचीनतम् ग्रंथ है. इसके प्रसिद्ध सूत्र -‘विभावानुभाव संचारीभाव संयोगद्रस निष्पति:” की स्थापना की गई है. इसमें नाट्यशास्त्र, संगीत-शास्त्र, छन्दशास्त्र, अलंकार, रस आदि सभी का सांगोपांग प्रतिपादन किया गया है. भरतमुनि का नाट्यशास्त्र अपने विषय का आधारभूत ग्रन्थ माना जाता है.

कहा गया है कि भरतमुनि रचित प्रथम नाटक का अभिनय, जिसका कथानक ‘देवासुर संग्राम’ था, देवों की विजय के बाद इन्द्र की सभा में हुआ था. आचार्य भरत मुनि ने अपने नाट्यशास्त्र की उत्पत्ति ब्रह्मा से मानी है क्योंकि शंकर ने ब्रह्मा को तथा ब्रह्मा ने अन्य ऋषियों को काव्यशास्त्र का उपदेश दिया. विद्वानों का मत है कि भरतमुनि रचित पूरा नाट्यशास्त्र अब उपलब्ध नहीं है. जिस रूप में वह उपलब्ध है, उसमें लोग काफी क्षेपक बताते हैं.