कुमार इंदर, जबलपुर। मध्यप्रदेश का टाइगर स्टेट का दर्जा बरकरार रहेगा या नहीं इस बात का फैसला आज हो जाएगा। 526 टाइगर के साथ टाइगर स्टेट का दर्जा के लिए आगे चल रहा मध्यप्रदेश। इस बार भी सबसे ज्यादा बाघों वाला राज्य रहेगा या नहीं इस बात का आज फैसला होगा। वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया(WII) आज टाइगर स्टेट वाले राज्यों की संख्या जारी करेगा। डब्ल्यूआईआई के आज जारी होने वाले आंकड़े से पता चल जाएगा कि, मध्यप्रदेश की टाइगर स्टेट की बादशाहत बरकरार रहेगी या नहीं। यदि साल 2018 में जारी बाघों की संख्या देखा जाए तो महज दो टाइगर के साथ मध्यप्रदेश को यह दर्जा हासिल है, मध्यप्रदेश कुल 526 टाइगर के साथ पहले पायदान पर है तो वहीं 524 बाघों के साथ कर्नाटक दूसरे नंबर है जबकि 442 बाघों के साथ उत्तराखंड तीसरे नम्बर पर है।
मध्यप्रदेश में कुल 7 प्रोजेक्ट टाइगर है
1.कान्हा किसली – यह मध्य प्रदेश का पहला प्रोजेक्ट टाइगर है ,जिसे 1974 में PROJECT TIGER में सम्मिलित किया गया, यह मंडला में स्थित है।
2.पेंच राष्ट्रीय उद्यान या इंदिरा प्रियदर्शनी उद्यान – 1983 प्रोजेक्ट टाइगर में सम्मिलित किया गया ,यह छिंदवाड़ा जिले में स्थित है!
3.बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान- 1993 प्रोजेक्ट टाइगर में शामिल किया गया यह उमरिया जिले में स्थित है!
4.पन्ना राष्ट्रीय उद्यान- 1995 प्रोजेक्ट टाइगर में शामिल किया गया यह छतरपुर एवं पन्ना ज़िले में स्थित है!
5.सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान- 2000 में प्रोजेक्ट टाइगर में शामिल किया गया यह होशंगाबाद में स्थित है!
6.संजय गांधी उद्यान- 2008 प्रोजेक्ट टाइगर में शामिल किया गया ,यह सीधी जिले में स्थित है!
7.रातापानी अभ्यारण – 2013 में प्रोजेक्ट टाइगर में शामिल किया गया यह रायसेन में स्थित है!
हर चार साल में आंकड़े
बता दें कि, वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया यानी कि डब्ल्यू आई आई हर 4 साल में भारत में सबसे ज्यादा बाघ वाले राज्यों का आंकड़ा जारी करता है। पिछली बार डब्ल्यू आई आई ने साल 2018 और उससे पहले साल 2014 में ये आंकड़ा जारी किया था। पिछले दो बार के जारी आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो वह कुछ इस तरह है।
साल 2018 में आकंडे …
मध्यप्रदेश 526
कर्नाटक 524
उत्तराखंड 442
महाराष्ट्र 312
साल 2014 में जारी आंकड़े
मध्यप्रदेश 308
कर्नाटक 408
उत्तराखंड 360
महाराष्ट्र 190
कोर एरिया कम होने के चलते बिगड़ रहे हालात
साल 2018 में जारी आंकड़ों के अनुसार देशभर में कुल 2967 बाघ हैं। आंकड़ों के अनुसार सबसे ज्यादा बाघों का संरक्षक यदि कोई राज्य बना तो वह है मध्यप्रदेश। 526 टाइगर के साथ बाघों का सबसे सुरक्षित स्टेट बना मध्यप्रदेश क्या इस बार भी वही दर्जा हासिल कर पाएगा या नहीं ये आंकड़े बताएंगे। पिछले 1 साल में जिस तरह से मध्यप्रदेश में बाघों की मौत हुई है। यदि बाघों की मौत का कारण देखा जाए तो उसमें सबसे अहम कारण बाघों की आपस में लड़ाई है और ये लड़ाई जंगल का कोर एरिया कम पड़ने के कारण हो रही है। देखने में आया है कि बाघों की संख्या तो लगातार बढ़ रही है लेकिन उनका कोर एरिया वही रह जाता है। जिसके चलते टाइगर की आपस में लड़ाई होती है और उसका नतीजा यह है कि, ये खुद एक दूसरे की जान लेने पर उतारू हो जाते हैं।
कुनबा बढ़ा लेकिन घर छोटा
देखा जाए तो एक बाघ को आराम से चलने फिरने के लिए औसतन 15 से 20 वर्ग किलोमीटर का इलाका चाहिए होता है लेकिन इन बाघों को औसतन उससे आधी जगह ही नसीब हो पाती है। जिसके चलते आए दिन इनमें टकराव की स्थिति बनी रहती है। प्रदेश के सारे टाइगर रिजर्व में बाघों के लिए संरक्षित कोर एरिया कुल 4773 किलोमीटर है जो बाघों की संख्या के लिहाज से करीब करीब आधा है। इस तरह बाघ कोर एरिया कम होने के चलते बफर जोन में निकल आते हैं और यही बफर जोन टाइगर की सुरक्षा के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन जाता है। क्योंकि बफर जोन में बाघों की सुरक्षा के उतने पुख्ता इंतजाम नहीं हो पाते जिसके चलते कई बार टाइगर की मौत हो जाती है।
2010 में हुई थी शुरुआत
साल 2010 में रूस के पीटर्सबर्ग में आयोजित इंटरनेशनल कांफ्रेंस में प्रत्येक वर्ष की 29 जुलाई को विश्व बाघ दिवस मनाने का निर्णय लिया गया। इस अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में बाघों की आबादी वाले 13 देशों ने हिस्सा लिया। सभी से 2022 तक बाघों की संख्या को दोगुना करने का लक्ष्य दिया है।
बाघों के घटने के कारण
बाघ का अवैध शिकार, जंगल की अधाधुंध कटाई, वन में खाने की कमी और इनके आवास को नुकसान पहुंचना इनके लुप्त होने के प्रमुख कारण हैं। इनकी खाल, नाखून और दांत के लिए सर्वाधिक शिकार किया गया। कड़े कानून के बावजूद शिकारी खाल के साथ पकड़े जाने की घटना देश भर से आती रहती है।
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