अमरीका के वर्तमान राष्ट्रपति और दूसरी बार चुने जाने के लिए रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप की हार एक राहत भरी ख़बर है। अमरीकी राष्ट्रपति को दुनिया का सबसे ताक़तवर व्यक्ति माना जाता है। लेकिन कितना दुर्भाग्यपूर्ण और डरावना था कि वही राष्ट्रपति दुनिया की सबसे बड़ी विभाजनकारी ताक़त‌ में तब्दील हो गया था। ट्रंप ने न केवल अमरीका में विभाजन की उर्ध्वाधर रेखा खींची बल्कि दुनिया के कई हिस्सों में ऐसी ही विभाजनकारी ताक़तें उन्हें आदर्श के रूप में देखने लगीं। एकाएक दुनिया उन्मादी दिखने लगी।

ट्रंप दुनिया के सबसे अधिक झूठ बोलने वाले राजनेता के रूप में देखे गए। हालांकि झूठ बोलने के मामले में उनको चुनौती देने के लिए कई राजनेता कतार में हैं। भारतीय इस‌ तथ्य को ठीक तरह से समझ सकते हैं।

ट्रंप की विदाई के बाद दुनिया के अलग अलग हिस्सों में बहुत कुछ बदलेगा। इसकी शुरुआत इज़राइल से होने के‌‌ संकेत मिल रहे हैं। कहा जा रहा है कि ट्रंप के गहरे दोस्त नेतन्याहू पर पद छोड़ने के लिए दबाव बनना शुरु हो गया है। रूस के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन के‌ अगले साल रिटायर होने की ख़बरें पिछले दो दिनों में ही आई हैं। हालांकि इसका‌‌ खंडन भी आ गया है। और इसे अमरीकी घटनाक्रम से जोड़कर न देखे जाने की‌ सलाह भी है।

कहा जा रहा है कि अगली ख़बर ब्राज़ील के जैर बॉल्सोनारो, फ़िलीपीन्स के ड्यूतेर्ते और तुर्की के आर्दोगान के बारे में आनी चाहिए।

आश्चर्यजनक नहीं था‌ कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी डोनाल्ड ट्रंप से‌ अभिभूत दिखे। इतने प्रभावित कि कभी गुटनिरपेक्ष देशों की‌ अगुवाई करते‌ रहे भारत के प्रधानमंत्री उनका चुनाव प्रचार कर आए। वे वहां भी ‘अबकी बार‌ ट्रंप सरकार’ का नारा लगा आए। हालांकि यह प्रेम एकतरफ़ा ही‌ अधिक था‌। जब ज़रूरत पड़ी तो ट्रंप हाइड्रोक्लोरोक्विन दवा के‌ लिए मोदी सरकार को धमकाने से नहीं चूके और न भारत को ‘फ़िल्दी’ कहने में उन्हें कोई झिझक हुई। आने वाले दिनों में अमरीका का नया प्रशासन भारत और भारत के ट्रंप समर्थक प्रधानमंत्री का नए सिरे से आकलन करेगा। हो सकता है कि भारतीय कूटनयिकों को ख़ासी मशक्कत करनी पड़े और कश्मीर से लेकर चीन तक बहुत से विषयों पर सफ़ाई देनी पड़े।

चाहे जो हो, दुनिया का एक बड़ा हिस्सा ट्रंप की हार को अराजकता, झूठ, दंभ और विभाजन की राजनीति पर लगे विराम की तरह देखेगा। उन्हें यह स्वाभाविक डर था कि ट्रंप की जीत शेष दुनिया के समान विचारधारा वाले राजनीतिकों को एक तरह की वैधता दे‌ देता और वे अपने अपने देशों में और अधिक निरंकुश हो जाते।

ट्रंप की हार निरंकुशता और अराजकता के हिमायती ताक़तों को हतोत्साहित करेगी, यह तो तय है।

(विनोद वर्मा की फेसबुक वॉल से सभार )