रायपुर. हिंदू धर्म में दिवाली के पर्व का विशेष महत्व होता है. दिवाली से दो दिन पहले धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है. हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को धनतेरस मनाया जाता है. इस साल धनतेरस 2 नवंबर दिन मंगलवार को पड़ रहा है.
- नक्षत्र उत्तर फाल्गुनी 11:44 AM तक उपरांत हस्त
- वैधृति योग 06:13 PM तक, उसके बाद विष्कुम्भ योग
- करण तैतिल 11:31 AM तक, बाद गर 10:21 PM तक
चन्द्रमा कन्या राशि पर संचार करेगा
धनतेरस तिथि 2021- 2 नवंबर, मंगलवार
धन त्रयोदशी पूजा का शुभ मुहूर्त-
- शाम 5 बजकर 25 मिनट से शाम 6 बजे तक
- प्रदोष काल- शाम 05:39 से 20:14 बजे तक
- वृषभ लग्न – शाम 06:51 से 20:47 तक
- राहु काल 02:57 PM से 04:20 PM तक
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जब प्रभु धन्वन्तरि प्रकट हुए थे तब उनके हाथ में अमृत से भरा कलश थ. इस दिन भगवान धन्वन्तरि की पूजा करना बेहद शुभ माना जाता है. इस तिथि को धन्वन्तरि जयंती या धन त्रयोदशी के नाम से भी जानते हैं. इस दिन बर्तन और गहने आदि की खरीदारी करना बेहद शुभ होता है.
क्यों होती है महालक्ष्मी की पूजा ?
कहते हैं कि धनतेरस के दिन धन्वन्तरि देव और मां लक्ष्मी की पूजा करने से जीवन में कभी धन की कमी नहीं रहती है. इस दिन भगवान कुबेर की पूजा की भी विधान है.
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शुभ काल
अभिजीत मुहूर्त – 11:48 AM – 12:32 PM
अमृत काल – 04:25 AM – 05:53 AM
ब्रह्म मुहूर्त – 05:00 AM – 05:48 AM
आनन्दादि योग
प्रजापति (धाता) Upto – 11:44 AM सौम्य
सूर्य तुला राशि पर है
चन्द्रमा कन्या राशि पर संचार करेगा (पूरा दिन-रात)
त्रिपुष्कर योग – Nov 02 06:36 AM – Nov 02 11:31 AM
अशुभ काल
राहू – 2:57 PM – 4:20 PM
यम गण्ड – 9:23 AM – 10:46 AM
कुलिक – 12:10 PM – 1:33 PM
दुर्मुहूर्त – 08:50 AM – 09:34 AM, 10:53 PM – 11:44 PM
वर्ज्यम् – 07:31 PM – 09:00 PM
- कार्तिक त्रयोदशी से शुक्ल पक्ष की द्वितीया तक, पांच दिन पर्यन्त दीपावली महोत्सव जारी रहता है.
- कार्तिकमास के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी को धनतेरस कहते हैं. इस दिन भगवान धन्वन्तरि की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है.
- धन्वन्तरि की पूजा से आरोग्य और समृधी की प्राप्ति होती है.
- पुराणों में धन्वन्तरि को भगवान विष्णु का अंशावतार भी माना गया है.
- धनवन्तरी के अलावा इस दिन, देवी लक्ष्मी और धन के देवता कुबेर की भी पूजा करने की मान्यता है.
- धनतेरस के दिन कुबेर के अलावा यमदेव को भी दीपदान किया जाता है. मान्यता है कि इस दिन यमदेव की पूजा करने से घर में असमय मृ्त्यु का भय नहीं रहता है.
- कार्तिक स्नान करके प्रदोष काल में घाट, गौशाला, बावड़ी, कुआं, मंदिर आदि स्थानों पर तीन दिन तक दीपक जलाएं.
धन्वन्तरी पूजा विधि
सबसे पहले स्नान करके पूजन सामग्री के साथ पूजा स्थल पर पूर्वाभिमुख (पूर्व दिशा की ओर मुंह करके) आसन लगाकर बैठें. उसके बाद नीचे दी गई विधि अनुसार पूजा प्रारंभ करें-
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1. नीचे लिखे मंत्र का उच्चारण कर पूजन सामग्री और अपने शरीर पर जल छिड़कें
ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोअपी वा.
य: स्मरेत पुण्डरीकाक्षं स बाहान्तर: शुचि:
2. हाथ में अक्षत, फूल, और जल लेकर पूजा का संकल्प करें.
3. भगवान धनवंतरी की मूर्ती के सामने हाथ में अक्षत, फूल, और गंगाजल लेकर आवाहन करें.
सत्यं च येन निरतं रोगं विधूतं, अन्वेषित च सविधिं आरोग्यमस्य.
4. गूढं निगूढं औषध्यरूपं, धनवंतरिं च सततं प्रणमामि नित्य.
इसके बाद भगवान के आवाहन के लिए जल और चावल चढ़ाएं. फिर फल-फूल, गंध, अबीर, गुलाल पुष्प, रोली आदि से विधिवत पूजा करें. अब चांदी के सिक्के की पूजा करें. धूप, दीप, नैवैद्ध से पूजन करने के बाद निम्न मंत्र का जाप करें- धन्वन्तरी मंत्र “ॐ धन्वंतरये नमः का 108 बार जाप करें. इस मंत्र का जाप करने से भगवन धनवन्तरी बहुत खुश होते हैं, जिससे धन और वैभव की प्राप्ति होती है.
यमराज के लिए दीपदान
धनतेरस पर दीपदान का भी विशेष महत्व होता है. शाम को दीपदान जरूर करें. घर के मुख्य द्वार पर तिल के तेल का चारमुखी दीपक जलाएं. थाली में यमराज के लिए आटे के तेरह दीपक, सफ़ेद बर्फी, तिल की रेवड़ी या तिल मुरमुरे के लडडू, एक केला और एक गिलास पानी रखें. दीप जलाने का शुभ मुहूर्त शाम 5:30 से शाम 6:30 तक गोधुली बेला रहेगा. घर में अकाल मृत्यु का योग हो, तो वह टल जाता है क्योंकि यह दीपक मृत्यु के देवता यम को प्रसन्न करने के लिए जलाया जाता है.
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