- नई दिल्ली. मौजूदा साल का बजट एक फरवरी को पेश किया जाएगा. सरकार की मंशा अपनी आय बढ़ाने पर है. तो क्या सरकार कृषि पर भी टैक्स लगा सकती है. दरअसल, पिछले साल नीति आयोग ने सरकार को सलाह दी थी कि कृषि को टैक्स के दायरे में लाया जाए. हालांकि सरकार ये भी कह रही है कि वो इस बजट में कृषि को ख़ास प्राथमिकता देने की ज़रुरत है.
नीति आयोग के सदस्य बिबेक देबरॉय ने पिछले साल कहा था कि एक सीमा के बाद कृषि से होने वाली आय पर भी कर लगाया जाना चाहिए. मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन ने भी देबरॉय की बातों से सहमति जताई. लेकिन सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों से इस पर तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिली.
सरकार की आय का क़रीब एक-तिहाई हिस्सा कॉर्पोरेट टैक्स और इनकम टैक्स से आता है. अगर इसमें एक्साइज, कस्टम और सर्विस टैक्स को भी जोड़ दें तो यह 60 फ़ीसदी से अधिक हो जाता है.सरकार की बाक़ी कमाई सार्वजनिक क्षेत्र की ईकाइयों जैसे रेलवे, सार्वजनिक उपक्रमों से लाभ, ग़ैर कर स्रोतों से होने वाली आय से होती है.
यानी टैक्स सरकार की कमाई का बड़ा ज़रिया है. इसीलिए कृषि को भी इस दायरे में लाए जाने की चर्चा उठी. बज़ट सामने होने की वजह से एक बार फिर यह चर्चा गरम है. हालांकि कृषि पर टैक्स की बहस पुरानी है और जब भी इसकी चर्चा हुई है, सरकार ने इसका खंडन किया है
ब्रिटिश राज के दौरान 1925 में भारतीय कराधान जांच समिति ने कहा था कि कृषि से होने वाली आय पर टैक्स छूट का कोई ऐतिहासिक या सैद्धांतिक कारण नहीं है. केवल प्रशासनिक और राजनीतिक कारणों से कृषि को टैक्स से दूर रखा गया है. आज की तारीख में भी ये दोनों बातें अमूमन सही हैं. समिति ने कृषि पर टैक्स की सिफ़ारिश नहीं की.
देश की आज़ादी के बाद पहली बार साल 1972 में बनाई गई केएन राज समिति ने भी कृषि पर टैक्स की सिफ़ारिश नहीं की. यहां तक कि केलकर समिति ने भी 2002 में कहा था कि देश में 95 फ़ीसदी किसानों की इतनी कमाई नहीं होती कि वो टैक्स के दायरे में आएँ. मतलब साफ़ है कि पांच फ़ीसदी किसानों को टैक्स के दायरे में लाया जा सकता है. और यही सबसे बड़ी वजह है देबरॉय और सुब्रमण्यन के सलाह की.
लेकिन आयकर अधिनियम 1961 की धारा 10 (1) के तहत भारत में कृषि से होने वाली आय कर मुक्त है. क्या कृषि को टैक्स के दायरे में लाया जाना चाहिए इस पर कृषि मामलों के विशेषज्ञ देवेंद्र शर्मा का कहना है कि उन 70 फ़ीसदी किसानों को टैक्स के दायरे में लाने की बार-बार बात क्यों उठती है जिनकी 2016 के आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक औसतन सालाना आय 20 हज़ार रुपये है. और यह स्थिति देश के 17 राज्यों के किसान परिवारों की है यानी देश के आधे से अधिक हिस्से में किसानों की मासिक आय 16 सौ रुपये से कुछ ही अधिक है. ऐसे किसानों को टैक्स के दायरे में क्यों लाया जाना चाहिए?
लेकिन दिक्कत ये भी है कि खेती से होने वाली आय पर टैक्स नहीं लगने से इसका फ़ायदा उन बड़े किसानों के पहुंचता है जो संपन्न हैं या फिर उन बड़ी कंपनियों को जो इस सेक्टर में लगी हैं. देखते हैं बजट में इस पर क्या निर्णय आता है.