नागपंचमी के ही दिन अनेकों गांव और कस्बों में कुश्ती का आयोजन होता है. जिसमें आसपास के पहलवान भाग लेते हैं. लेकिन नाग पंचमी और कुश्ती के बीच क्या रिश्ता है, यह आज भी वैसा ही अनुत्तरित सवाल है कि नाग सचमुच दूध पीता है या नहीं? अलबत्ता हर नाग पंचमी पर हिंदी की वो अमर कविता जरूर याद आती है- ‘चंदन चाचा के बाड़े में…उतरे दो मल्ल अखाड़े में.‘ यह कविता आज भी मन को नाग की तरह सरसराती है और अखाड़े में उतरे पहलवान की माफिक जोर मारती है.

हालांकि नाग के चरित्र और पहलवान की तासीर में भी कोई सीधा रिश्ता नहीं है. एक डसता है, दूसरा दांव चलता है. नाग देवता होकर भी अविश्वसनीय है तो पहलवान मनुष्य होते हुए कुश्ती जीतकर विश्वास अर्जित करता है. एक नियति है, दूसरा खेल है. नाग का काटा पानी भी नहीं मांगता, कुश्ती में चित हुआ पहलवान फिर अपने फन पर पानी चढ़ा सकता है.

पंचमी ‍तिथि मल्ल विद्या के लिए भी अनुकूल क्यों है

भारत में नाग पंचमी जितनी पुरानी है, शायद कुश्ती के जोर भी उतने ही पुराने हैं. एक जमाने में अखाड़े पहलवान तैयार करने की नर्सरी हुआ करते थे. यानी कुश्ती हमारे कल्चर में बसी है. इतना सब कुछ होने के बाद भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हम पहलवानी में बहुत आगे नहीं हैं. भविष्य पुराण में इस कथा का तो उल्लेख है कि इस देश में नाग को पूजने की परंपरा क्यों शुरू हुई और नाग दंश से बचने का यही एक धार्मिक उपाय है, लेकिन यह उल्लेख शायद ही कहीं मिलता है कि नाग के लिए आरक्षित पंचमी ‍तिथि मल्ल विद्या के लिए भी अनुकूल क्यों है? अखाड़ों में नागो की पूजा शायद ही होती हो. अखाड़े में जोर करने वाले ब्रह्मचर्य को मानते हैं और इस मायने में उनके देवता हनुमान हैं. हनुमान और नागो का रिश्ता केवल इतना है कि हनुमान राम के भक्त हैं और राम भगवान विष्णु के अंशावतार हैं. विष्णु शेष नाग की शैया पर विश्राम करते हैं. लेकिन यहां भी कुश्ती जैसी कोई स्थिति बनती हो, ऐसा नहीं लगता.

विश्व कुश्ती दिवस 23 मई को मनाया जाता है

वैसे हमारी परंपरा में ‘नागपंचमी’ अखाड़ों का दिन भी है, लेकिन वैश्विक स्तर पर 23 मई ‘विश्व कुश्ती दिवस’ है, जो 1904 में पहली दफा ग्रीको रोमन कुश्ती चैम्पियनशिप के आयोजन के रूप में शुरू हुआ. अब दुनिया में फ्री स्टाइल और ग्रीको रोमन शैली ही कुश्ती की मान्य प्रतियोगिताएं हैं. आप भले अपनी कुश्ती को प्राचीन गौरव से जो़ड़ते रहें, लेकिन दुनिया वही मानती है, जिसे ज्यादातर देश मान्य करते हैं. अच्छी बात यह है कि अखाड़ों की मिट्टी से शुरू हुआ यह सफर अब वैश्विक स्तर की गद्दों पर लड़ी जाने वाली कुश्तियो में भी अपना रंग दिखाने लगा है.

Threads App पर lalluram.com को फॉलो करने के लिए https://www.threads.net/@lalluramnews इस लिंक पर क्लिक करें, ताकि आपको देश दुनिया की पल-पल की खबरें मिलती रहेंगी.

छतीसगढ़ की खबरें पढ़ने के लिए करें क्लिक 
English में खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें