मातृत्व सुख पाना हर महिला का सपना होता है. हर पिता चाहता है कि छोटी-छोटी नन्ही उंगलियां उसका हाथ थामे. तोतुली जुबान से घर गुलज़ार हो. बच्चे की किलकारी, हंसी ठिठोली से घर का आंगन खुशियों से भर जाता है. नन्हे कदमों के पीछे भागते भागते दादा दादी थक जाते हैं लेकिन बच्चे की एक मुस्कान से वो भी अपनी थकान भूल जाते हैं. छोटे बच्चे किसे अच्छे नहीं लगते, उनका मुस्कुराना, तालियां बजाना, उनकी मासूमियत भर हंसी किसी का भी मन मोह ले. जो रो दें तो पूरा घर इकट्ठा हो जाए, वो लोग भी उन बच्चों को सुलाने के लिए उन्हें बाहों में लेकर रात भर जागरण करने से परहेज नहीं करते, जिनके लिए नींद दुनिया की सबसे ज्यादा कीमती चीज है. बच्चे होते ही ऐसे हैं कि दुश्मन का भी मन मोह लें. लेकिन जब किसी मां-बाप को यह पता चलता है कि उसका बच्चा मूक-बधिर है तो उनके पैरों तले उस वक्त तो जमीन जैसे खिसक ही जाती है. पहले ऐसे बच्चों का इलाज संभव नहीं था लेकिन मेडिकल साइंस ने आज इतनी तरक्की कर ली है कि अब इन बच्चों का इलाज भी संभव हो गया है. लेकिन ये इलाज काफी महंगा होने की वजह से गरीब तबके के लोग अपने बच्चों का इलाज नहीं करा पाते थे. प्रदेश की सरकार ने इन बच्चों के माता पिता का दर्द समझा और बाल श्रवण योजना के तहत इनका इलाज कराया.

मुख्यमंत्री बाल श्रवण योजना अप्रैल 2010 से संचालित की जा रही है. अब तक प्रदेश के लगभग 800 से ज्यादा बच्चे छत्तीसगढ़ शासन की मुख्यमंत्री बाल श्रवण योजना का फायदा उठा चुके हैं. कोक्लियर इम्प्लांट सर्जरी के छह हफ्ते बाद से बच्चों की स्पीच थेरेपी शुरू की जाती है. इन बच्चों को राजधानी रायपुर के शासकीय अंबेडकर अस्पताल में स्थित स्पीच थेरेपी सेंटर में वाणी विशेषज्ञों द्वारा प्रशिक्षित किया जाता है. कुछ ऐसे बच्चे जो स्पीच थेरेपी के लिए नहीं आ पाते तो, उनके माता-पिता से लगातार संपर्क स्थापित कर उन्हें स्पीच थेरेपी के महत्व के बारे में समझाया जाता है, ताकि वे अपने बच्चे को स्पीच थेरेपी सेंटर में लाएं. मुख्यमंत्री बाल श्रवण योजना के तहत छत्तीसगढ़ के शून्य से 7 वर्ष तक के ऐसे बच्चे जो सुन नहीं पाते, उनका इलाज किया जाता है. इसके लिए गरीबी रेखा के नीचे के परिवारों को अधिकतम 6 लाख रुपये और अन्य परिवारों को अधिकतम 4 लाख रुपए की आर्थिक सहायता दी जाती है.

स्पीच थेरेपी के प्रशिक्षकों ने बताया की कॉक्लियर इम्प्लांट सर्जरी के बाद बच्चों को स्पीच थेरेपी सेंटर में लाना बहुत जरूरी है. बच्चों को अपने आसपास के परिवेश में ढलने के लिए कम से कम 3 साल तक स्पीच थेरेपी का प्रशिक्षण देना अनिवार्य है. वर्तमान में 60 बच्चों को 6-6 बच्चों के बैच में बांटकर एक-एक घंटे का प्रशिक्षण दिया जा रहा है. इसमें बच्चों के माता-पिता को भी शामिल गया है, ताकि वे बच्चों को घर पर भी अभ्यास करवाएं. इसके लिए बच्चों के घर पर रहने के दौरान प्रशिक्षकों द्वारा सभी बच्चों के अभिभावकों को फोन पर भी जानकारी दी जाती है.

स्पीच थेरेपी सेंटर में वाणी विशषज्ञों द्वारा बच्चों को चरणबद्ध प्रशिक्षण दिया जाता है. पहले उन्हें आवाज की पहचान करना सिखाया जाता है, फिर आवाज को समझना और उपयोग करना सिखाया जाता है. बच्चों को विभिन्न सामूहिक गतिविधियों जैसे फैंसी ड्रेस चित्रकला और नृत्य आदि के माध्यम से भी प्रशिक्षित किया जाता है. साथ ही बच्चों की अभिरुचि समझने के लिए समय-समय पर विभिन्न प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती है.

वहीं स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही के कारण भी जन्मजात बाधिरता वाले बच्चे सुन पाने के वरदान से वंचित हो रहे हैं. बहरापन से पीडि़त एक 1 से 7 वर्ष तक के बच्चों को इस योजना के तहत् निशुल्क लाभ दिलाया जाता है जिसमें में बीपीएल व सामान्य दोनों श्रेणी के बच्चे लाभ प्राप्त कर सकते हैं. श्रवण बाधित बच्चे के कान के भीतर क्वाक्लियर मशीन लगायी जाती है. यह काफी महंगा ऑपरेशन हैं.

ये है मुख्यमंत्री बाल श्रवण योजना

जन्मजात बाधिरता एवं छोटे बच्चों में बाधिरता दूर करने तथा भाषा एवं वाणी का विकास करना मुख्यमंत्री बाल श्रवण योजना का उद्देश्य है. इस योजना के तहत् बीपीएल एवं सामान्य दोनों श्रेणी के एक से सात वर्ष तक के बच्चों का निशुल्क ऑपरेशन किया जाता है. राज्य शासन द्वारा इस योजना के तहत बीपीएल परिवार के बच्चों के लिए छ: लाख एवं सामान्य परिवार के लिए चार लाख रूपये की सहायता राशि स्वीकृत की जाती है.

इस तरह कर सकते हैं आवेदन 

इस योजना के तहत् आवेदन प्रक्रिया संपादित की जाती है. बच्चे में श्रवण बाधिता की पुष्टि होने के बाद आवेदन पत्र सिविल सर्जन के माध्यम से राज्य नोडल अधिकारी स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के सामने प्रस्तुत होता है. आवेदन पत्र के साथ सर्जरी की अनुशंसा होती है. इस योजना के लिए आवेदन पत्र जिला चिकित्सालय, राज्य नोडल अधिकारी, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण संचालनालय रायपुर तथा डॉ. भीमराव अंबेडकर रायपुर के क्वाक्लियर इंप्लांट केन्द्र से प्राप्त किये जा सकते हैं.

योजना से अंजान हैं लोग विभाग द्वारा योजना का सही ढंग से प्रचार प्रसार नहीं किये जाने के कारण लोग इस योजना से अंजान हैं. प्रचार का आभाव और लोगों की अनभिज्ञता हजारों बच्चों के बाधिरता उन्मूलन में बाधक साबित हो रहा है.

योजना के क्रियान्वयन व संचालन के लिए शासन द्वारा हजारों लाखों रूपये अनुमोदित किया जा रहा है. लेकिन इसके बावजूद भी योजना का प्रचार उस हिसाब से नहीं हो रहा है जिस गति से होना चाहिए. शहरी क्षेत्र के लोग भी इस योजना से अंजान हैं तो भला ग्रामीण अंचलों में इसकी क्या स्थिति होगी आप सभी वाकिफ है.

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