रायपुर. ‘मंजीलें उन्हें ही मिलती है जिनके सपनों में जान होती है. पंखों से कुछ नहीं होता हौसलों से उड़ान होती है.’ इस बात को सच साबित कर दिखाया है अफगानिस्तान की शाइस्ता वाइज़ ने. उन्होंने अकेले उड़ान भर दुनिया का चक्कर लगाने का फैसला किया और इस इरादे को मन में पाल इस अफगानिस्तानी पायलट ने सोमवार को अपनी यात्रा का ट्रांस-अटलांटिक हिस्सा शुरू किया.
सोवियत युद्ध के आखरी दिनों में शाइस्ता अफगान में एक शरणार्थी शिविर में जन्मी थीं. फिर 1987 में वो परिवार के साथ अमेरिका आकर बस गयीं. 29-वर्षीय शाइस्ता वाइज़ (Shaesta Waiz) ने कम उम्र में ही उड़ने का सपना देख लिया था और फिर जुट गयी अपने सपने को पूरा करने में. जिस वक्त उसने उड़ने का लाइसेंस हासिल किया, वह सबसे छोटी उम्र की सर्टिफाइड सिविलियन महिला पायलट बनी. उन्होंने शनिवार को फ्लोरिडा में डेटोना बीच से उड़ान भरी थी. अपने बीचक्राफ्ट बोनान्ज़ा ए36 विमान से उन्होंने लगभग 25,800 किलोमीटर का रूट बनाया है. इस रूट में कुल 18 मुल्क आएंगे, जिनमें स्पेन, मिस्र, भारत, सिंगापुर और ऑस्ट्रेलिया भी शामिल हैं. वाइज़ का सफर इस साल अगस्त में फ्लोरिडा लौटने पर पूरा होगा. वाइज़ अपनी उड़ान के दौरान 30 बार रुकेंगी, और उनकी इस उड़ान को अंतरराष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (International Civil Aviation Organization या इंटरनेशनल सिविल एविएशन ऑर्गेनाइज़ेशन या आईसीएओ) सहायता दे रहा है.
अब शाइस्ता उड़कर होने वाले आज़ादी के एहसास को अन्य युवतियों के साथ बांटना चाहतीं हैं. उड़ान के दौरान मॉन्ट्रियल में कुछ देर रुकी शाइस्ता ने कहा, “जब मुझे अपनी चाहत – उड़ान – का एहसास हो गया, मैंने खुद को ही चुनौती देना शुरू कर दिया. मैंने पढ़ना भी शुरू किया. गणित में मेरा प्रदर्शन बेहतर हो गया. मैंने दुनिया को अलग नज़रिये से देखना शुरू किया. आसमान को भी अलग ही नज़र से देखने लगी. सबसे अहम है कि आप अपनी चाहत का पता लगा लें, और फिर उसी दिशा में बढ़ते रहें.”
शाइस्ता वाइज़ का कहना है, “अगर आप विज्ञान, तकनीकी, इंजीनियरिंग और गणित में मेहनत करते हैं, और फिर देखने की कोशिश करें कि ये आपके करियर में किस तरह योगदान दे सकते हैं, तो बेहद उत्साहजनक अवसर दिखाई देते हैं. हमें उम्मीद है कि इन कार्यक्रमों के दौरान हम छोटे बच्चों को दिखा सकेंगे कि ये करियर उनके लिए क्या-क्या ला सकते हैं… और उम्मीद की जा सकती है कि वे इन्हीं करियरों को अपनाएं, क्योंकि यहां भी काबिल लोगों की ज़रूरत है.”