संपादकीय आलेख : अभी तो मश्के सितम कर रहे हैं अहले सितम, अभी तो देख रहे हैं वो आजमा के मुझे- बादल सरोज
संपादकीय विशेष आलेख : हमसे हमारा स्वदेश और हमारी वे स्वाधीनताएँ छीनी जा रहीं जिन्हें पूज्य लोकमान्य तिलक ने हमारा जन्मसिद्ध अधिकार कहा था और हम बेखबर हैं
संपादकीय आलेख : जो जनता के कोष के प्रति अपने सत्ता-स्वार्थों और महत्व स्थापना के लिए स्वेच्छाचार बरतता है, वह कभी भी भारतीय शास्त्रों के अनुसार अच्छा शासक नहीं हो सकता- विजय बहादुर सिंह