विधि अग्निहोत्री, रायपुर/सोनहत। 

जननी हूँ मैं शक्ती हूँ मैं, लड़ूं तो काली और दुर्गा हूँ.
पूजो तो लक्ष्मी और सरस्वती हूँ, मैं ही मदर मैरी और यशोदा हूँ.

पर ऐ वैश्या से वधू चुनने के अधिकारी, तुम्हारे घर में मेरा स्थान क्या ?
पायदान की जगह दी मुझे घर में, जब मन किया उपभोग किया मेरा.

कायनात की सारी ताकत लगा दी हमें रोकने, टोकने और दबाने में.
छलनी किया शरीर हमारा, तोड़ दिये सारे सपने, काट दिये सारे पर.

अब अपमान का घूंट न पियेंगीं हम, जब तक है साहस डटकर लड़ेंगी हम,
ले लो इम्तेहान हमारा, पर जब बारी हमारी होगी, तो हार तुम्हारी होगी…

जब बारी हमारी होगी तो हार तुम्हारी होगी इसी हिम्मत को लेकर शबाना ने लड़ी अपनी ज़िंदगी की लड़ाई और तोड़ आई सारी ज़ंजीरों को. यह कहानी शबाना परवीन की है. यह महिला एक आम महिला ही है अगर कोई फर्क है तो वो है हिम्मत का. दरअसल शबाना घरेलू हिंसा की शिकार थी और उसने भी सब कुछ सहना सही समझा यह सोच कर कि हो सकता है कुछ समय बाद पति की मानसिकता शायद बदल जाए.

छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले के सोनहत की रहने वाली शबाना का बचपन भी आम लड़कियों की तरह था. वह पढ़ने में भी सामान्य थी. 12वीं की पढ़ाई के बाद शबाना आगे कॉलेज की पढ़ाई करना चाहती थीं. लेकिन शायद किस्मत को कुछ और ही मंजूर था शबाना के माता-पिता ने उसकी शादी करने का फैसला लिया और शबाना ने भी इसे अपनी किस्मत समझ स्वीकार कर लिया.

हर लड़की की तरह शादी को लेकर शबाना के कुछ सपने थे कुछ उम्मीदें थीं लेकिन हुआ इसका उलटा. शादी के कुछ समय बाद ही पति ने शबाना के साथ मारपीट शुरू कर दी. इसकी वजह दहेज का लालच थी. दहेज के लालच में आकर शबाना का पति उसे रोज़ पीटा करता. उसे घर से दहेज लाने को कहता पर शबाना के घर के आर्थिक स्थिति बेहद कमज़ोर थी.  शादी के कुछ साल बाद ही माता पिता का भी देहांत हो गया था. घर में दो भाईयों के अलावा और कोई नहीं था. भाईयों के पास भी रोजगार का कोई ठोस साधन नहीं था. एक भाई सिलाई का काम करता तो दूसरा ठेका मजदूरी कर अपना पेट पालता था. गरीबी की वजह से दोनों की शादी भी नहीं हो पा रही थी. भाईयों के हालात ऐसे नहीं थे कि वे और दहेज दे पाते. इसलिए शबाना पति द्वारा किए जा रहे सारे जुल्मों सितम को चुप-चाप सहते रही.

पति के दरिंदगी की सारी हदें उस वक्त पार हो गई जब शबाना गर्भवती थी और पति ने उसे इतना पीटा की बच्चे की गर्भ में ही मौत हो गई. पति के जुल्मों सिकम के इंतिहा होने से अब शबाना की हिम्मत टूटने लगी थी. फिर भी हर भारतीय नारी की तरह उसे भी एक उम्मीद थी कि शायद बच्चे के जन्म के बाद पति का व्यवहार बदल जाए. शबाना ने कुछ साल बाद एक बेटी को जन्म दिया उसने सोचा था कि पति और ससुराल वाले खुश होंगें, पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. शबाना के साथ मारपीट का सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा था बेटी के सामने उसे पीटा जाता. शबाना को अब अपनी बेटी की परवरिश इस माहौल में करना नामंज़ूर था. आखिरकार उसने हिम्मत कर पति को तलाक दिया और अपनी बेटी को लेकर अपने मायके सोनहत आ गई. शबाना को सिलाई-कढ़ाई का काम आता था लिहाजा वह भाईयों पर बोझ नहीं बनना चाहती थीं तो उसने जनशिक्षण संस्थान में लोगों को सिलाई-कढ़ाई सिखाने का काम शुरु कर दिया. शबाना को इससे थोड़ी-बहुत आमदनी होने लगी. शबाना खुद का कोई व्यवसाय करना चाहती थी. इसलिए उसने जनशिक्षण संस्थान बैकुंठपुर में 6 महिने का पार्लर का कोर्स किया और एक साल तक निजी पार्लर में काम करने लगी.

इसी बीच शबाना के पड़ोस में रहने वाली एक आंगनबाड़ी कार्यकर्ता से महिला एवं बाल विकास विभाग की छत्तीसगढ़ महिला सहायता कोष के अंतर्गत संचालित सक्षम योजना के बारे में पता चला. शबाना ने इस योजना के लिए महिला एवं बाल विकास विभाग में आवेदन किया. जल्दी ही शबाना को एक लाख रूपयों का लोन 25 प्रतिशत छूट के साथ मिला. इस लोन से शबाना ने ब्यूटी पार्लर खोला. इससे होने वाली आमदनी से शबाना ने अपने भाईयों का घर बसाने में भी मदद की.

आज शबाना आत्मनिर्भर है और पार्लर से उसकी अच्छी पहचान भी बन गई है. वह अपनी बेटी की परवरिश भी अच्छे से कर रही है. उसे पढ़ाकर अपने पैरों पर खड़ा करना चाहती है. शबाना बताती हैं कि इस योजना ने उसका जीवन बदलने में बहुत मदद की. उसने बताया कि इस योजना के तहत राज्य की विधवा, परित्यक्ता और 35-45 आयु वर्ग की अविवाहित महिलाओं को आसान ब्याज दर पर सरकार द्वारा स्वयं का व्यवसाय शुरू करने के लिए एक लाख रूपए तक का ऋण प्रदान किया जाता है.

आज शबाना महिला समूह से भी जुड़ी हुर्इं हैं. महिलाओं पर होने वाले अन्याय के विरूध्द आवाज उठाने और उन्हें न्याय दिलाने के लिए वे दीनबंधु समाज सेवी संस्था से भी जुड़ी हैं. इसके अलावा वे शासन द्वारा संचालित विभिन्न योजनाओं के तहत महिलाओं को साक्षर बनाने के लिए समय-समय पर नि:शुल्क सेवाएं देती हैं.

(ये कविता विधि अग्निहोत्री की नारी शुन्य से संभावना की ओर नामक मैग्जीन से ली गई है)