विनोद दुबे, रायपुर। रेलवे के रिजर्वेशन काउंटरों में दलालों का कब्जा तो था ही अब पार्सल विभाग के अंदर तक दलाल पहुंच गए.  दलालों पर रेलवे के अधिकारियों की मेहरबानियों का आलम ऐसा है कि पहले ये दलाल पार्सल विभाग के अंदर ही टेबल कुर्सियां लगाकर बैठते थे. बेखौफ इन दलालों ने अब पार्सल विभाग के परिसर के अंदर टिन शेड का निर्माण भी कर लिया है. इस तरह दलालों को सुविधाएं मुहैया कराने वाला रायपुर रेलवे स्टेशन देश का पहला ऐसा स्टेशन होगा जहां दलालों के लिए इतनी सुविधाएं हैं.
देश के ए वन कटैगरी में शामिल छत्तीसगढ़ का यह रायपुर रेलवे स्टेशन है. इस स्टेशन के पार्सल विभाग में पहुंचते ही यहां सक्रिय दलालों से आपका सामना होगा. टेबल की जगह बड़े पार्सल के ऊपर रखे ये रजिस्टर और रेलवे के फार्म देख रहे होंगे. पहले इस पार्सल की जगह टेबलें लगी रहती थी. इन्हें देखकर आप भी धोखा खा जाएंगे और इन्हें रेलवे का कर्मचारी समझ बैठेंगे. लेकिन ये रेलवे के कर्मचारी नहीं बल्कि दलाल हैं. ये यहां बैठकर सामान बुक करने के साथ ही सारी लिखा पढ़ी भी करते हैं. इनके पास वो रजिस्टर भी मौजूद है जिसमें वे दिनभर का सारा लेखा जोखा लिखते हैं. जैसे ही हम पार्सल विभाग में पहुंचे तो हमारा कैमरा देख वहां मौजूद दलालों में हड़कंप मच गया. देखते ही देखते एक-एक कर कई दलाल वहां से रफू चक्कर हो गए. कुछ दलाल ऐसे थे जो अपनी कुर्सियां तो छोड़ दिए थे लेकिन वे आस-पास वहां मौजूद लोगों के साथ खड़े हो गए. जब हम एक दलाल के पास पहुंचे और उनसे सवाल करना शुरु किए तो उन्होंने अपने मुंह पर उंगली रख दी. हम उनसे सवाल पूछ रहे थे लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया. वहां मौजूद एक और दलाल ने उसे वहां से जाने का इशारा कर दिया. जिसके बाद वह वहां से भागने लगा.
वहां मौजूद एक दूसरे दलाल से हमने बात की उसने बताया कि उनके पास कुछ गाड़ियों के पार्सल की लीज है जिसे वे गाड़ी से उतरवाते भी हैं और उन गाड़ियों में पार्सल बुक कर उन्हें भिजवाते भी हैं. लेकिन इन सबके बीच सबसे बड़ी बात जो निकल कर सामने आई कि इनके पास पार्सल बुक करने के रेलवे के फार्म मौजूद थे. जो कि उनके टेबल में रखे हुए थे. दलाल का कहना था कि वो फार्म वह खुद छपवाता है और उसे छपवाने के लिए पार्सल विभाग के बड़े बाबू ने कहा था. वहीं उसने यह भी बताया कि पार्सल विभाग के परिसर में जो टिन शेड का निर्माण किया गया है वह रेलवे एक साहब ने उन्हें बनाने के लिए कहा था. इसकी इजाजत उसी बड़े साहब ने दी थी लेकिन वह बड़ा साहब कौन है उसने यह नहीं बताया. उसका कहना था कि उस साहब का उसे नाम नहीं मालूम है. इस दलाल ने यह भी बताया कि वह रेलवे से अधिकृत एजेंट है लेकिन वहां बहुत से दलाल अवैध रुप से पार्सल बुक करते हैं. जाहिर हैं बगैर कर्मचारियों और अधिकारियों के मिलीभगत के ये सब नहीं हो रहा है. गौरतलब है कि रेलवे की जमीन में अगर कोई गरीब एक छोटी सी झोपड़ी भी बना लेता है तो रेलवे के अमले को उसे उजाड़ने में नेस्तानाबूद करने में वक्त नहीं लगता.
उधर इस पूरे मामले में जब हमने रेलवे के सीनियर डीसीएम तन्मय मुखोपाध्याय से बात की तो उन्होंने बताया कि जो दलाल हैं वे रेलवे से अधिकृत हैं और उन्हें लीज ट्रैफिक कहा जाता है. उन्होंने बताया कि रेलवे उस फार्म को उन्हें मुहैया कराता है, लेकिन जब उन्हें बताया गया कि दलाल खुद फार्म छपवा रहे हैं तो उन्होंने इसे गलत बताया. इसके साथ ही उन्होंने बताया कि रेलवे परिसर में उन लोगों को जगह देने का नियम है और कहीं भी कुछ भी गलत नहीं हो रहा है.