रायपुर. संत कबीर दास ने अपना पूरा जीवन काशी में बिताया लेकिन जीवन का अंतिम समय मगहर में बिताया था. मगहर संत कबीर नगर जिले में छोटा सा कस्बा है. मगहर के बारे में कहा जाता था कि यहां मरने वाला व्यक्ति नरक में जाता है. कबीर दास ने इस प्रचलित धारणा को तोड़ा और मगहर में ही 1518 में देह त्यागी. मगहर के पक्ष में यह तर्क दिया जाता है कि कबीर ने अपनी रचना में इसका उल्लेख किया है, ”पहिले दरसन मगहर पायो, पुनि कासी बसे आई” यानी काशी में रहने से पहले उन्होंने मगहर देखा.

कबीर का अधिकांश जीवन काशी में व्यतीत हुआ. वे काशी के जुलाहे के रूप में ही जाने जाते हैं. ऐसी मान्यता है कि मृत्यु के बाद कबीर दास के शव को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया था. हिन्दू कहते थे कि उनका अंतिम संस्कार हिन्दू रीति से होना चाहिए और मुस्लिम कहते थे कि मुस्लिम रीति से. ऐसा कहा जाता है कि जब उनके शव पर से चादर हटाई गई, तब लोगों ने वहां फूलों का ढेर पड़ा देखा. बाद में आधे फूल हिन्दुओं ने ले लिए और आधे मुसलमानों ने. मुसलमानों ने मुस्लिम रीति से और हिंदुओं ने हिंदू रीति से उन फूलों का अंतिम संस्कार किया.

मगहर में कबीर की समाधि है. गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मगहर में आज कबीर दास की समाधि पर चादर चढाई और पुष्प अर्पित किये. उसके बाद उन्होंने 24 करोड़ रुपये की लागत से बनने वाली संत कबीर अकादमी का शिलान्यास किया. शिलान्यास के बाद मोदी ने एक जनसभा में कहा कि, कबीर अपने कर्म से वन्दनीय हो गये. कबीर धूल से उठे थे लेकिन माथे का चंदन बन गये.

साहेब बंदगी को लेकर मान्‍यताएं
साहेब बंदगी के संबंध में कबीर मठ के महंत विचारदास ने बताया कि क‍वि की इस संबंध में तीन मान्‍यताएं हैं – साहेब, सदगुरु कबीरदास के लिए प्रयोग किया जाता है. बंदगी का अर्थ तमोगुण, रजोगुण के बंधन से मुक्‍त करके सतोगुण की ओर ले जाना है. हे साहेब हमें सांसारिक बंधनों से मुक्‍त करें. तमोगुण के तहत, तामसिक वृत्‍त‍ि आती हैं इसमें मांस-मदिरा, पीड़ितों को सताने की भावना, रजोगुण में भोग करने की प्रवृत्‍त‍ि, सतोगुण में सात्‍व‍िक वृत्‍त‍ि अर्थात दूसरों का कल्‍याण करने की भावना आती है. अर्थात हे सदगुरु साहेब हमें तमोगुण, रजोगुण के बंधन से मुक्‍त करके सतोगुण की ओर ले चलें. संसार में तीन प्रकार के दुख होते हैं. इमें दै‍‍हिक, दैविक, भौतिक तापा हैं. दैहिक का अर्थ शारीरिक कष्‍ट से है, वहीं दैविक का अर्थ प्राकृतिक आपदा तथा भौतिक दुख का तात्‍पर्य चोरी होना, हादसा होना है. अर्थात हे सदगुरु कबीर साहेब हमें इन दुखों से दूर करें.