शुभम नांदेकर, पांढुर्णा। मध्यप्रदेश के पांढुर्णा जिले को प्रदेश का एकमात्र मराठी जिला माना जाता है। महाराष्ट्र की सीमा पर स्थित इस जिले में पांढुर्णा और सौंसर तहसील मुख्यालयों में लगभग 85% नागरिक मराठी भाषा का उपयोग करते हैं। यही कारण है कि यहां की संस्कृति, बोलचाल और आयोजन महाराष्ट्र के मराठी रीति-रिवाजों और पंचांग के अनुसार होते हैं। यह क्षेत्र मध्यप्रदेश में अपनी विशेष मराठी पहचान बनाए हुए है, जो इसके सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।

मराठी पंचांग के अनुसार उत्सव

पांढुर्णा जिले में अधिकांश आयोजन महाराष्ट्र के मराठी पंचांग के अनुसार मनाए जाते हैं। पूरे सालभर यहां मराठी परंपराओं के अनुसार ही उत्सव और त्यौहारों की तिथियों का पालन होता है। इस विशेषता ने पांढुर्णा को मध्यप्रदेश के अन्य जिलों से अलग बना दिया है। यहां का माहौल और संस्कृति महाराष्ट्र से काफी हद तक मेल खाते हैं, और यह जिला महाराष्ट्र के सीमावर्ती होने के कारण महाराष्ट्र के रीति-रिवाजों से गहराई से जुड़ा हुआ है।

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लक्ष्मी पूजन और दीपोत्सव का आयोजन आज

आज शुक्रवार को पांढुर्णा जिले में मराठी पंचांग के अनुसार लक्ष्मी पूजन के साथ दीपोत्सव मनाया जा रहा है। इस पर्व को मनाने के लिए घरों में विशेष सजावट और दीपों का प्रज्वलन किया गया है। लक्ष्मी पूजन का महत्व इस क्षेत्र में गहरे तक रचा-बसा है और लोग इसे खुशी और उमंग के साथ मनाते हैं। दीपोत्सव के अवसर पर बाजारों में रौनक और घरों में दिवाली की विशेष तैयारियां देखने को मिल रही हैं।

जिले में दो दिन का दीपावली उत्सव

जहां पूरे मध्यप्रदेश में गुरुवार को दीपावली मनाई गई वहीं पांढुर्णा जिले में गुरुवार के साथ शुक्रवार को भी दीपावली का उत्सव मनाया जा रहा है। मराठी संस्कृति के अनुकरण के कारण यहां के नागरिक दो दिन तक दीपावली की खुशियां मनाते हैं। गुरुवार को मध्यप्रदेश की परंपराओं के अनुसार दीपावली मनाई गई, जबकि शुक्रवार को मराठी पंचांग के अनुसार लक्ष्मी पूजन के साथ दीपोत्सव की धूम मची हुई है। दो दिन के इस खास आयोजन ने जिले में आनंद और उल्लास का माहौल बना दिया है।

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स्थानीय विशेषता और पहचान

पांढुर्णा की यह विशेषता इसे प्रदेश के अन्य जिलों से अलग बनाती है। यहां मराठी संस्कृति का गहरा प्रभाव देखा जा सकता है और यह प्रभाव त्योहारों, भाषा और जीवनशैली में स्पष्ट झलकता है। महाराष्ट्र से सीमावर्ती इस जिले के लोग मराठी रीति-रिवाजों का पालन करते हुए अपनी परंपरा और संस्कृति को सजीव बनाए हुए हैं, जो जिले को एक विशिष्ट मराठी पहचान प्रदान करता है।

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