विक्रम मिश्र, लखनऊ । उत्तर प्रदेश विधानसभा भर्ती में हुई कथित घोटाले और गड़बड़ी के सभी स्याह चेहरे आखिर सामने आ ही गए। लल्लूराम डॉटकॉम की पड़ताल में समाजवादी पार्टी की सरकार रही हो या योगी सरकार में रहे मंत्री और विधानसभा अध्यक्ष सभी ने अपने रिश्तेदारों और चहेतों को नौकरियां दिलवाई थी। आपको बता दें कि, उत्तर प्रदेश विधानसभा और विधान परिषद में खाली 186 पदों पर हुई भर्ती प्रक्रिया में गड़बड़ी का मामला है। इस घोटाले को माननीय कोर्ट का फैसला भी अब कटघरे में है। प्रशासनिक अमले में इसे हाई कोर्ट की ओर से घोटाले का नाम दिए जाने लगा है। यूपी विधानसभा की 186 पदों पर हुई नियुक्ति में हर चौथा अभ्यर्थी की नियुक्ति में किसी वरिष्ठ नेता या अधिकारी का नाम सामने आ रहा है। नियुक्तियां कम से कम 15 आरओ के पदों से जुड़ी हुई है। जबकि 27 एआरओ और जूनियर पद पर भी नियुक्ति हुई है। जिसमे की गड़बड़ी सामने आई है।

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नियुक्तियों पर उठ रहे थे सवाल

बता दें कि, समीक्षा अधिकारी एक राजपत्रित पद के बराबर है जिसका वेतन ग्रेड 47,600 से 1,51,100 रुपये है। एआरओ का वेतन मैट्रिक्स 44,900 से 1,42,400 रुपये होता है। नियुक्तियों पर उठ रहे सवालों ने सरकार की मंशा और नीति को भी कटघरे में खड़ा कर दिया है। लल्लूराम डॉटकॉम की पड़ताल में विस्तृत रिपोर्ट पाठकों के समक्ष है। हाई कोर्ट में भर्ती को लेकर विवरण पेश किया गया था, जिसके तहत उत्तर प्रदेश परिषद सचिवालय की ओर से 17 और 27 सितंबर 2020 को 99 पदों के लिए विज्ञापन प्रकाशित किया गया था। विवाद के कारण प्रारंभिक परीक्षा दो बार आयोजित की गई थी। जबकि मुख्य परीक्षा 27 और 30 दिसंबर 2020 को आयोजित किया गया। इस परीक्षा का परिणाम 11 मार्च 2021 को आया था। विधानसभा सचिवालय की ओर से दिसंबर 2020 में 87 पदों के लिए विज्ञापन दिया गया। 24 जनवरी 2021 को प्रारंभिक परीक्षा का आयोजन किया गया। 27 फरवरी 2021 को मुख्य परीक्षा और 14 मार्च 2021 को टंकण टेस्ट का आयोजन किया गया। इस परीक्षा का परिणाम 26 मार्च 2021 को जारी किया गया। इन परीक्षाओं में करीब 2.5 लाख अभ्यर्थी शामिल हुए।

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घोटाले के मेन प्लेयर कौन थे

रिकॉर्ड से पता चलता है कि विधानसभा में सृजित पदों के भर्ती की जिम्मेदारी ब्रॉडकास्टिंग इंजीनियरिंग एंड कंसल्टेंसी सर्विसेज यानी बेसिल को दिया गया था। जबकि विधान परिषद ने राभव को अपनी भर्ती का काम सौंपा था। जांच के दौरान सचिवालय प्रशासन से पूछने पर उन्होंने परीक्षा प्रक्रिया की गोपनीयता का हवाला देते हुए अदालत में फर्म का नाम नहीं बताया। आपको जानकर हैरानी होगी कि, परिणाम कभी भी जनता के सामने घोषित नही किये गए। और न तो परिणामों की तारीख की भनक किसी को लगने दी गई। जबकि मामला बढ़ते देख विधानसभा सचिवालय ने हाईकोर्ट को बताया कि अंतिम परिणाम प्रतिवादियों की आधिकारिक वेबसाइट uplegiassemblyrecruitment.in पर अपलोड करने की जकनकारी दी थी।

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विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित के निजी सचिव को विधान परिषद में एक नया पद विशेष कार्यकारी अधिकारी बनाकर नियुक्ति की गई थी। इस संबंध में दीक्षित ने कहा कि इस बारे में उन्हें किसी प्रकार की जानकारी नहीं है। जबकि स्वास्थ्य का हवाला देकर उन्होंने फोन रख दिया। इतना ही नही जुगाड़ की परंपरा को निभाते हुए तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष के निजी सचिव ने अपने भाई का भी विधानसभा में समीक्षा अधिकारी के पद पर चयन कराया गया। यूपी के तत्कालीन संसदीय कार्य विभाग के प्रमुख सचिव जेपी सिंह के पुत्र और पुत्री दोनों ही विधानसभा में हुई नियुक्ति के दरम्यान सेट हो गए। हालांकि आरओ पद पर चयनित होने वाले अपने बच्चों के सम्बंध में जय प्रकाश सिंह ने लल्लूराम डॉटकॉम को बताया कि उनके पुत्र और पुत्री इस पद के लिए योग्यता परीक्षा पास करके चयनित हुए है।

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प्रमुख सचिव ने भी बहती गंगा में लगाई डुबकी

विधानसभा के वर्तमान प्रमुख सचिव प्रदीप दुबे ने भी बहती गंगा में चार रिश्तेदारों की नियुक्ति करवाकर डुबकी लगा ली। प्रदीप दुबे के दो रिश्तेदार आरओ और एआरओ विधानसभा और दो अन्य रिश्तेदार आरओ परिषद में नियुक्त हो गए थे। प्रमुख सचिव विधानसभा प्रदीप दुबे से जब इस बाबत पूछा गया तो उन्होंने कहा कि यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट में है, जिसपर मैं टिप्पणी नही कर सकता। दूसरी तरफ विधान परिषद के प्रमुख सचिव डॉ. राजेश सिंह के बेटे समीक्षा अधिकारी विधानसभा पद पर नियुक्ति दी गई थी। डॉक्टर राजेश सिंह से बातचीत बड़ी मुश्किल से हो पाई उन्होंने प्रमुख सचिव विधानसभा प्रदीप दुबे की बातों का हवाला देकर फोन काट दिया। अधिकारियों के बाद नेता कहाँ पीछे रहने वाले पूर्व मंत्री महेंद्र सिंह और तत्कालीन एमएलसी के भतीजे को सहायक समीक्षा अधिकारी विधान परिषद के पद पर नियुक्त किया गया। उत्तर प्रदेश के तत्कालीन उप लोकायुक्त रहे दिनेश कुमार सिंह के पुत्र समीक्षा अधिकारी पद पर चयनित हुए थे।

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भाजपा से पहले सपा में भी रिश्तेदारी ने खाई थी रेवड़ी

पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और योगी आदित्यनाथ के पूर्व विशेष कार्याधिकारी अजय कुमार सिंह के पुत्र को आरओ पद पर चयनित किया गया। विधानसभा पद पर नियुक्त किया गया।विधान परिषद के अतिरिक्त निजी सचिव धर्मेंद्र सिंह के बेटे और भाई को विधानसभा सहायक समीक्षा अधिकारी पद पर नियुक्ति दी गई थी। इनके सम्बंध समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता शिवपाल सिंह यादव से है।पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के करीबी सहयोगी जैनेंद्र सिंह यादव उर्फ नीटू यादव के भतीजे को समीक्षा अधिकारी पद पर नियुक्ति हुई।

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जिस फर्म को भर्ती का जिम्मा उनकी पत्नी ही समीक्षा अधिकारी बनी

राभव के मालिक राम प्रवेश यादव की पत्नी को भी विधान परिषद में समीक्षा अधिकारी के पद पर नियुक्ति मिलने की जानकारी मिली है। डेटा प्रोसेसिंग के डायरेक्टर रामबीर सिंह के रिश्तेदारों को सहायक समीक्षा अधिकारी पद चयनित किया गया। टीएसआर डेटा प्रोसेसिंग के डायरेक्टर सत्य पाल सिंह के सगे भाई को सहायक समीक्षा अधिकारी पद पर चयन हुआ था। उत्तर प्रदेश विधानसभा में भर्ती में धांधली के मामले में 2021 से हाई कोर्ट में कई याचिकाएं दायर थी। जिसके बाद 18 सितंबर 2023 सीबीआई जांच का आदेश दिया। जिसमे चौकाने वाली जानकारी सामने आई, दोनों निजी फर्मों के मालिक इससे पहले भी भर्ती प्रक्रिया को प्रभावित करने के जुर्म में जेल जा चुके थे। कोर्ट ने कहा कि समीक्षा अधिकारी और सहायक समीक्षा अधिकारी पदों पर हुई नियुक्ति घोटाले से कम नहीं है। इस प्रकार के कृत्य से जनता का विश्वास कम होगा।