महाकुंभ नगर. 27 जनवरी को महाकुंभ में भव्य धर्म संसद का आयोजन होने जा रहा है. जिसका संचालन अंतर्राष्ट्रीय कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर करेंगे. इस धर्म संसद में सनातन धर्म के सर्वोच्च धर्मगुरु चारों पीठों के शंकराचार्य और अन्य संतजनों के सम्मिलित होने की संभावना है. इन्हें निमंत्रण देने के लिए विशेष प्रयास किए गए हैं. धर्म संसद का उद्देश्य सनातन धर्म को जीवित रखना और उसके महत्व को समाज में जागरूक करना है.

बता दें कि महाकुंभ में देशभर के साधु-सन्यासी जुटे हैं. ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती के सानिध्य में परमधर्म संसद चल रही है. जिसमें कई विषय रखे जा चुके हैं. सोमवार को ही उन्होंने कहा कि हमारा ख़ान-पान ही नहीं, अन्न-जल तक प्रदूषित हो गया है. पूजा की सामग्री प्रदूषित है. मन्त्र-अनुष्ठान प्रदूषित हैं, भाषा-भाव और भङ्गिमा भी प्रदूषित हो रहे हैं. नए-नए देवता बनते जा रहे हैं. धर्म-अधर्म से मिश्रित हो रहा है. यदि अधर्म अपने स्पष्ट रूप में हमारे सामने आए तो बहुत सम्भव है कि हम उससे बच सकें पर जब वह धर्म के रूप में हमारे सामने आता है तो उससे बचना कठिन हो जाता है. भागवत जी में व्यास जी ने अधर्म की उन पांच शाखाओं का उल्लेख-विधर्म, परधर्म, आभास, उपमा और छल कहकर किया है. यही धार्मिक प्रदूषण है जो अधर्म को धर्म के रूप में प्रस्तुत कर हमें गर्त में ले जा रहा है.

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सनातिनियों को धार्मिक प्रदूषणों से बचने की आवश्यकता- शंकराचार्य

शंकराचार्य ने आगे कहा कि विधर्म माने धर्म समझकर करने पर भी जिससे धर्मकार्य में बाधा पड़ती हो. जैसे यहूदी, पारसी, ईसाई, इस्लाम आदि. परधर्म माने अन्य के द्वारा अन्य के लिए उपदिष्ट धर्म जैसे ब्रह्मचारी का गृहस्थ को, गृहस्थ का संन्यासी को. आभास स्वेच्छाचार जो धर्म सा लगता है जैसे अनधिकारी का संन्यास. उपमा माने पाखण्ड/दम्भ और छल माने शास्त्र वचनों की अपने मन से की गई व्याख्या या उनमें अपने मनमाना बदलाव कर देना. समस्त सनातनधर्मियों को सतर्क रहकर धर्म के सच्चे स्वरूप को समझते हुए धार्मिक प्रदूषणों से बचकर रहने की आवश्यकता है. परमधर्मसंसद् एक पुस्तिका के माध्यम से हिंदुओं तक इस बारे में समझ विकसित करने का प्रयास करेगी.