दिलशाद अहमद, सूरजपुर। जब किसी क्षेत्र में कोई बड़ी परियोजना शुरू होती है, तो वहां के लोगों के दिलों में एक उम्मीद जागती है, उम्मीद इस बात की कि अब उनके गांव को भी बेहतर सड़कें मिलेंगी, बच्चों को शिक्षा मिलेगी और परिवार को स्वास्थ्य और रोजगार का लाभ मिलेगा। इसी उम्मीद में लोग अपनी ज़मीनें भी प्रशासन को सौंप देते हैं, यह सोचकर कि अब उनका जीवन बदलेगा। लेकिन हकीकत में वादों की वह लंबी फेहरिस्त अक्सर कागज़ों में ही दम तोड़ देती है, और जब परियोजना शुरू होती है, तब इन वादों की जगह ले लेती है – धूल, ध्वनि, नुकसान और नाराज़गी।

ऐसा ही कुछ हो रहा है छत्तीसगढ़ के सूरजपुर ज़िले में, जहां बिना ग्रामसभा की वास्तविक सहमति और स्थानीय जनता के व्यापक विरोध के बावजूद, प्रकाश इंडस्ट्रीज़ की कोल परियोजना (Prakash Industries coal mine) का काम पांच महीने पहले शुरू कर दिया गया। समय बीतने के साथ अब लोगों का जनआक्रोश फूट पड़ा है।

ग्रामसभा की अनुमति नहीं, विरोध के बावजूद जबरन शुरू हुई परियोजना

गोगांपा पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता जयनाथ सिंह केराम ने कहा कि “यह विरोध आज का नहीं है। जब से खदान का आवंटन हुआ है, ग्रामीण लगातार विरोध कर रहे हैं। ज़मीन चिन्हांकन से लेकर जनसुनवाई तक पूरी प्रक्रिया मनमानी और छलपूर्ण रही है।” उन्होंने बताया कि जनसुनवाई को जानबूझकर दूरस्थ क्षेत्र ‘कोरा’ में आयोजित किया गया ताकि प्रभावित गांव के लोग अपनी बात न रख सकें।
जयनाथ सिंह का आरोप है कि आज तक एक भी वास्तविक ग्रामसभा आयोजित नहीं की गई, और जब पांच महीने बाद औपचारिक ग्रामसभाएं की गईं, तब भी सिर्फ तीन पंचायतों में ही बैठकें हुईं, जबकि प्रभावित गांवों की संख्या पांच है। इन पंचायतों में भी लोगों ने भारी विरोध दर्ज कराया, जिसे ग्रामसभा के रजिस्टर में बाकायदा लिखा गया है।
ब्लास्टिंग से जीवन संकट में, पर्यावरण और बुनियादी ढांचे पर असर

स्थानीय ग्रामीण सुनील साहू ने बताया कि खदान में की जा रही भारी ब्लास्टिंग से आस-पास के गांवों के मकानों में कंपन और दरारें आने लगी हैं। “बरसात के मौसम में यदि यही स्थिति बनी रही तो घरों के ढहने का ख़तरा है। पांच किलोमीटर के दायरे में कई गांव प्रभावित हो सकते हैं।”
भारी वाहन यातायात से सड़कें टूट रही हैं, और चांपा तक जाने वाले रास्ते की हालत पहले से ही खराब हो चुकी है। ऊपर से, स्थानीय युवाओं को रोजगार नहीं मिल रहा है, जबकि बाहर से लोग काम पर लाए जा रहे हैं, जिससे ग्रामीणों में असंतोष गहराता जा रहा है।
वादों से पलटी कंपनी, प्रशासन मौन

स्थानीय निवासी शांतनु सिंह के अनुसार, कंपनी ने शुरुआत में बिजली बिल माफी जैसे बड़े-बड़े वादे किए थे, लेकिन एक भी वादा ज़मीन पर पूरा नहीं हुआ। “पांच महीने में न तो विकास हुआ, न रोजगार, न मुआवज़ा। राजस्व विभाग का कोई ज़िम्मेदार अधिकारी फील्ड पर नहीं आया है।”
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि कंपनी की मनमानी के पीछे प्रशासनिक अधिकारियों की संलिप्तता हो सकती है, तभी कोई भी नियंत्रण में नहीं है। “अब गांववालों ने संयुक्त संघर्ष समिति बनाने का फ़ैसला किया है, जो जल्द ही आंदोलन को निर्णायक मोड़ पर ले जाएगी।”
धांधली और मुआवज़े की अनदेखी से आहत ग्रामीण

प्रभावित ग्रामीण विश्राम सोनी का कहना है कि “मेरी ज़मीन खदान परियोजना में ली गई है, लेकिन मुझे आज तक मुआवज़ा नहीं मिला। जब भी पूछते हैं, अधिकारी कहते हैं ‘तुम्हारी तो ज़मीन थी ही नहीं।’ यह पूरी तरह से धांधली है।” उन्होंने कई बार अधिकारियों से गुहार लगाई, लेकिन न ग्रामसभा में, न कार्यालयों में कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई। “लगता है जैसे सिस्टम ने हमें भुला दिया है। आखिर कब तक हम यूं ही अनसुने बने रहेंगे?”
‘परियोजना शुरू से विवादों में थी’ : लक्ष्मी राजवाड़े

इस मामले को लेकर जब प्रदेश की महिला एवं बाल विकास मंत्री और क्षेत्रीय विधायक लक्ष्मी राजवाड़े से सवाल किया गया, तो उन्होंने स्वीकार किया कि “यह परियोजना शुरू से ही विवादों में रही है।”
उन्होंने कहा, “किसी प्रकार ऊपर से अनुमति लाकर यह परियोजना शुरू कर दी गई है। लेकिन मेरी प्राथमिकता है कि स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर मिलें और मैं पूरी तरह से उनके साथ खड़ी हूं। ब्लास्टिंग से होने वाले नुकसान की ज़िम्मेदारी संबंधित कंपनी को उठानी पड़ेगी। इस विषय में मैं स्वयं परियोजना के डायरेक्टर से मिलकर चर्चा करूंगी।”
सवाल अब यह है कि क्या प्रशासन और कंपनी इस जनआक्रोश को सिर्फ विरोध मानकर अनदेखा करते रहेंगे, या प्रभावितों की बात सुनकर संवाद और समाधान की प्रक्रिया शुरू करेंगे? ग्रामीणों की एकजुटता और आंदोलन की चेतावनी यह संकेत दे रही है कि अगर उनकी आवाज़ को फिर दबाया गया, तो यह विवाद जल्द ही एक बड़ा जनांदोलन बन सकता है।
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