अजयारविंद नामदेव, शहडोल। मध्य प्रदेश के एक ओर जहां गरीबों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं देने और 24 घंटे निःशुल्क एंबुलेंस उपलब्ध कराने का दावा किया जाता है। वहीं शहडोल जिला अस्पताल की व्यवस्थाओं ने एक बार फिर सरकारी दावों की हकीकत सामने ला दी है। जहां मरने के बाद भी गरीबों को सम्मान तक नसीब नहीं हो रहा। ऐसा ही कुछ रविवार को हुआ जहां जिला अस्पताल में एक महिला की मौत के बाद शव वाहन घंटों नहीं मिलने से परिजन लाचार होकर अस्पताल परिसर के बाहर शव के साथ बैठे शव वाहन का इंतजार करते रहे।  

मौत के बाद नहीं मिली एंबुलेंस

रविवार को ग्राम रूपला ग्राम टैंघा निवासी महिला अगस्या कुशवाहा की उपचार के दौरान मौत हो गई। लेकिन मौत के बाद भी परिजनों को इंसानियत के नाम पर सबसे बड़ी ठोकर मिली। शव वाहन सेवा पूरी तरह ठप रही। परिवार शव वाहन के इंतजार में अस्पताल के बाहर पांच घंटे तक इंतजार करता रहा। लेकिन प्रशासन की मशीनरी संवेदनहीन बनी रही। परिजनों को मजबूरी में शव अस्पताल परिसर के बाहर रखना पड़ा। यही नहीं, जिस एंबुलेंस पर बड़े-बड़े अक्षरों में 24 घंटे निःशुल्क सेवा लिखा है, वह महज दिखावा साबित हुई। 

जीते जी इलाज नहीं मिला और मरने के बाद सम्मान

परिजनों का कहना है कि गरीब आदमी को न जीते जी इलाज मिला और न मरने के बाद सम्मान। सरकार करोड़ों का बजट खर्च कर योजनाओं के बड़े-बड़े दावे करती है, लेकिन जमीनी स्तर पर गरीब आदमी आज भी बेबस और लाचार है।

अस्पताल के बगल में अधिकारियों के आवास 

अस्पताल के ठीक बगल में कलेक्टर और अधिकारियों के आवास हैं। फिर भी परिवार की पीड़ा सुनने कोई आगे नहीं आया। प्रशासन की यह बेरुखी सिर्फ सिस्टम की विफलता ही नहीं, बल्कि मानवता पर करारा तमाचा है।

सुविधा के दावों पर गहरा सवाल 

यह घटना सरकार की स्वास्थ्य सेवाओं और निःशुल्क एंबुलेंस सुविधा के दावों पर गहरा सवाल खड़ा करती है। क्या गरीब परिवारों को इसी तरह अपमान और उपेक्षा झेलनी पड़ेगी या फिर शासन-प्रशासन इस लापरवाही पर कोई ठोस कदम उठाएगा।

अफसरों के वादे

वहीं इस मामले में  मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ राजेश मिश्रा का कहना था कि जल्द ही शव वाहन उपलब्ध कराया जा रहा है। सिविल सर्जन डॉ. शिल्पी शराफ का कहना था कि वह भोपाल में हैं। जल्द ही शव वाहन उपलब्ध कराया जाएगा।

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