रायपुर. छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले से 24 किमी दूर जंगलों के बीच ऊंची पहाड़ी पर मां खल्लारी विराजमान है. माता के दर्शन के लिए भक्तों को करीब 850 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती है. नवरात्र में यहां श्रद्धा और भक्ति का सैलाब उमड़ पड़ता है. अपनी मनोकामना लिए भक्त यहां लंबी कतारें लगाकर मां का दर्शन करते हैं. ऐसा माना जाता है मां खल्लारी भक्तों की हर मनोकामना पूरी करती है. जो दंपति संतान सुख से वंचित है वह संतान प्राप्ति मनोकामना के साथ यहां आते हैं. छत्तीसगढ़ के अलावा अन्य राज्यों व विदेश से भी यहां लोग दर्शन के लिए पहुंचते हैं.

बताया जाता है कि द्वापर युग में लाक्ष्यागृह की घटना के बाद पांडव इसी पहाड़ी में लंबे समय तक रुके. यह भी प्रमाणित है कि भीम और हिडिंबा ने इसी पहाड़ी पर मां खल्लारी को साक्षी मानकर विवाह रचाया था. भीम के विशाल पदचिन्ह आज भी है. स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, यहां भीम की रसोई, जिसे भीम चूल्हा कहा जाता है और भीम की नाव के स्थान भी मौजूद हैं, जो पांडवों के यहां ठहरने की कहानी को जीवित रखते हैं. इस स्थल को भीमखोज के नाम से भी जाना जाता है.


चौथी शताब्दी में हुआ है मंदिर का निर्माण
खल्लारी मंदिर के आसपास ऐसे कई स्थल हैं, जिनका इतिहास महाभारत काल से भी जुड़ा हुआ है. उपलब्ध शिलालेखों से यह जानकारी मिलती है कि यह मंदिर 1415 के आसपास बना है. यह स्थान तात्कालीन हैहयवंशी राजा हरि ब्रह्मदेव की राजधानी थी. ये स्थान प्राचीन काल में खल वाटिका के नाम से जाना जाता था. बताया जाता है कि राजा ब्रह्मदेव के शासनकाल में चौथी शताब्दी में 1415 में देवपाल नाम के मोची ने माता का मंदिर बनवाया था. राजा हरि ब्रह्मदेव ने खल्लारी को अपनी राजधानी बनाया तो उन्होंने इसकी रक्षा के लिए मां खल्लारी की मूर्ति की स्थापना की थी.

माता के स्थापना की कहानी
स्थानीय जनश्रुतियों की मानें तो प्राचीन काल में माता महासमुंद के डेंचा गांव से निवास करती थी और वहां से खल्लारी में लगने वाले बाजार में कन्या का रूप धारण करके आती थी. माता का रूप लावणी देखकर एक बंजारा मोहित हो गया और वह माता को प्राप्त करने के लिए उनका पीछा करने लगा. बंजारे से बचने के लिए माता पहाड़ी पर आ गई, लेकिन बंजारा वहां भी पहुंच गया. तब माता ने बंजारे को श्राप देकर पाषाण में परिवर्तित कर दिया और स्वयं वहां विराजमान हो गई. इसके बाद माता खल्लारी ने तारकर्ली के राजा ब्रह्मदेव को सपने में वहीं पर मंदिर बनाने को कहा.

भीम का पांव भी है दर्शनीय
यहां भीम का पांव भी दर्शनीय है. वहीं उत्तर दिशा की तरफ एक मूर्तिविहीन मंदिर है. इसे लाखागुड़ी या लाखा महल भी कहा जाता है. किवदंती है कि महाभारत काल में दुर्योधन ने पांडवों को षड्यंत्रपूर्वक समाप्त करने के लिए जो लाक्षागृह बनवाया था, वह यहीं पर बनवाया था. इसके अंदर एक गुफा भी है. जो गांव के बाहर की तरफ निकलती है.
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