गरियाबंद. छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले में स्थित उदंती टायगर रिजर्व में ओडिशा से आए लोगों की घुसपैठ की शिकायत पर रायपुर से लल्लूराम डॉट कॉम की टीम ने जाकर दो दिनों तक ग्राउंड ज़ीरो का जायज़ा लिया.लल्लूराम डॉट कॉम की टीम ने जो जांच की, उसकी रिपोर्ट कड़ियों में प्रकाशित कर रही है. आज इसकी तीसरी रिपोर्ट प्रकाशित की जा रही है.
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दरअसल, जब टीम हल्दीकछार पहुंची तो वहां पीपलखुंटा वन प्रबधंन समिति के सदस्य पहुंच चुके थे. पीपलखुंटा के लोगों का आरोप था कि धनौरा के लोगों ने जो आरोप वन प्रबंधन समिति पर लगाए हैं, वो गलत हैं. लेकिन कुछ देर बातचीत में वो ऐसी बातें बता बैठे, जो उदंती के राज़ खोलने वाला था.
जिस इलाके में पहुंचे वहां कई ग्राउंड के आकार के एरिया के जंगल काटे गए थे. वन विभाग के अधिकारी एचएल रात्रे ने बताया कि इस मामले में वन विभाग ने तुरंत कार्रवाई की. लिहाज़ा किसी कर्मचारी या अधिकारी की लापरवाही की बात सामने नहीं आई है. रात्रे ने बताया कि यहां खेती या घर के लिए 2-3 दिन में कटाई हुई है.रात्रे का कहना है कि 3 हैक्टेयर के क्षेत्र में कटाई का मामला सामने आया है.
वहीं रायपुर से आए वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारी और जांच दल के प्रमुख देवाशीष दास ने मौके का मुआयना करने के बाद कहा कि ये अतिक्रमण करने के इरादे से की गई कटाई लगती है. उन्होंने कहा कि वे इस बात की जांच करेंगे कि जो कार्रवाई की गई वो कितनी उपयुक्त थी. उन्होंने कहा कि जांच इस बात की भी होनी है कि जिन 26 लोगों पर कार्रवाई की गई क्या वही अतिक्रमणकारी हैं या कोई और भी कोशिश कर रहा है.
उन्होंने बताया कि यहां स्टाफ की कमी है. जिसे दूर करने की प्रक्रिया चल रही है. गौरतलब है कि इस इलाके में तीन बीट में केवल एक बीटगार्ड है.
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फॉरेस्ट के अधिकारी कह रहे थे कि सारी कटाई दो-तीन दिन में हुई है. जबकि पीपलखुंटा गांव के रहने वाले रतन का कहना है कि अवैध कटाई जेठ यानी मार्च से चल रही है.अन्य गांववालों ने वन विभाग की इस बात को झुठलाया कि कटाई दो-तीन दिन पहले ही हुई है. गांव वालों का कहना है कि गर्मियों से लगातार कटाई का काम चल रहा है.
इसके बाद हम थोड़ा आगे और बढ़े तो हमें साल के पेड़ कटे मिले. देखकर ऐसा लग रहा था कि यहां सालों से कटाई बेरोकटोक चल रही है. कुछ पेड़ सूखे थे तो कुछ पेड़ ताजे़ कटे हुए. कुछ पेड़ों पर कुल्हाड़ी के निशान भी थे.
यहीं जब हमने डिप्टी रेंजर ध्रुव से बात की. जिसे वन विभाग ने हटाया है. तो उनका कहना था कि कटाई 5 -6 हैक्टेयर में हुई है. उन्होंने कहा कि कार्रवाई की गई लेकिन वे फिर आ गए. उन्होंने गांव वाले की शिकायत को वन विभाग के अधिकारियों ने नहीं लिया.
यहां एक बार फिर हमने एचएल रात्रे से बात की तो उनका कहना था कि कटाई का मकसद जंगल साफ करके वहां खेती करना था ताकि आने वाले समय में वनाधिकार पट्टा मिल सके. उन्होंने हिसाब समझाया कि 26 लोगों ने रोज़ के पांच पेड़ काटे होंगे तो पूरे करीब सवा दो सौ पेड़ों को काटने में 2 दिन का वक्त लगा होगा.
वहीं उदंती टायगर रिजर्व के डिप्टी डायरेक्टर विष्णु ने कार्रवाई में देरी की बात स्वीकार की. उनका कहना है कि ये खबर हमें मिली तो हमने कार्रवाई की. यहां 19 और 20 सितंबर को कार्रवाई की गई जिसमें 26 लोगों को गिरफ्तार किया गया. जब हमने पूछा कि क्या इसमें किसी कर्मचारी की लापरवाही है. इस पर उन्होंने प्राथमिक तौर पर ऐसी किसी बात से इंकार किया. लेकिन जब हमने जवाबदेही को लेकर सवाल पूछा तो वे स्टॉफ की कमी की बात कहने लगे.
मौजूद गांव वालों से जब पूछा गया कि क्या उदंती में अब भी ओडिशा के कुछ लोगों ने डेरा डाल रखा है. इस पर गांव वालों ने बताया कि बगल की बीट में सागौन के जंगल हैं. जहां ओडिशा वालों ने कब्जा कर रखा है. वे सागौन के जंगल काटते हैं और वहीं झोपड़ी बनाकर रह रहे हैं. ये बात जब हमने माइक पर पुछने की कोशिश की तो सभी गांववाले खामोश हो गए.
बड़ा सवाल था कि जब ओडिशा के लोग आते हैं तो यहां के लोग खामोश क्यों रहते हैं इसकी शिकायत क्यों नहीं करते. इस सुखदेव नाम के ग्रामीण ने दो तीन कारण बनाए. उन्होंने बताया कि ओडिशा के लोग जब जंगल में अतिक्रमण करते हैं तो वे धनुष बाण के साथ आते हैं. मारने की धमकी देते हैं. उनकी संख्या भी ज़्यादा होती है और जब ये बात कोई वन प्रबंधन समिति के लोगों को बताता है तो समिति के सदस्य इसे गंभीरता से नहीं लेते.
सुखदेव ने ये भी आरोप लगाया कि इस बात की शिकायत उनलोगों ने वनाधिकारियों से की है लेकिन वे लोग भी ध्यान नहीं देते. गांववाले हमें उस जगह ले गए जहां ओडिशा के लोग झोपड़ी बनाकर रह रहे थे.
इस पर स्थानीय एक फॉरेस्टर ने बताया कि जिस जगह ये लोग ओडिशा के लोगों के बसे होने की बात कह रहे हैं कुछ समय पहले 16 लोगों के खिलाफ कार्रवाई की गई थी. लेकिन उसके बाद ज़मानत पाकर फिर से वे लोग बस गए हैं. उन्हें नोटिस दिया गया है. महत्वपूर्ण है कि जिन बीटों को लेकर शिकायत की गई है ये उसमें शामिल नहीं है.
गांव वालों का ये भी कहना था कि हर बार उनके आने की खबर नहीं हो पाती क्योंकि उनका गांव इस जगह से करीब 15 किलोमीटर दूर है. हम धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे थे लेकिन हर तरफ पेड़ कटे दिख रहे थे. करीब 1 किलोमीटर तक हम पहाड़ की ओर बढ़े. हमें चारों तरफ पैचेस में पेड़ कटे दिख रहे थे. लेकिन किसी भी जगह से पूरे के पूरे पेड़ को नहीं काटा गया था यानि बड़ी चतुराई से जंगल का डिफॉरेस्टेशन किया जा रहा था
इलाके के रेंजर का कहना है कि समय-समय पर ओडिशा के लोगों पर कार्रवाई करते हैं लेकिन वे ज़मानत पाकर फिर बस जाते हैं. रेंजर साहेब कार्रवाई का विवरण भी पेश किया. जिसमें 2008-2009 से अब तक 7 बार कार्रवाई का ज़िक्र है. 2008-2009 में वन विभाग ने दो बार कार्रवाई करके करीब 10-11 झोपड़ियां तोड़ी थी. 1243 कक्ष में इसी साल 50-60 झोपड़ियां तोड़ी गई थीं. जबकि एक दूसरे इलाके इंदागांव में 50-60 ओडिशा वालों की झोपड़ियां तोड़ी गई थीं. 2013-14 में 1225 कंपार्टमेंट नंबर में 5-7 मकान तोड़कर बेदखल किया गया था. 1239 चिपाड़ में साल 13-14 में 3 से 4 मकान तोड़े गए थे. 1210 कंपार्टमेंट में 20-22 मकान तोड़े गए थे.
वन विभाग के ये आंकड़े धनौरा गांव के उस आरोप की पुष्टि खुद कर रहे हैं कि सालों से उदंती में ओडिशा के लोग घुसपैठ कर रहे हैं और वन विभाग न तो सही समय पर जानकारी मिल पाती है न ही वो उन्हें रोकने में सफल रहा है.
करीब एक घंटे तक पीपलखुंटा के लोगों से उदंती के कंपार्टमेंट नंबर 1204 और 1206 के एरिया में बात हुई. लेकिन शिकायतकर्ता धनौरा गांव के लोगों का कोई पता नहीं था. मोबाइल का नेटवर्क काफी पहले मैनपुर में बंद हो चुका था लिहाज़ा फोन पर उनसे बातचीत का विकल्प भी खत्म हो चला था. अब एक ही चारा बचा था कि जंगल में ज़ोर-जोर से पुकारें. अगर वे आसपास होंगे तो जवाब देंगे.लेकिन ये कोशिश भी नाकाम हो गई. सूरज ढल रहा था. घड़ी में चार बज चुके थे. अगर और इंतज़ार करते तो जंगल मे फंसने का खतरा था. चूंकि इलाका नक्सल प्रभावित था. लिहाज़ा हमने जंगल से निकलकर धनौरा के लोगों से बात करने का फैसला किया.
जिस रास्ते गए थे उसी रास्ते हम वापिस आ गए और धनौरा के लोगों को फोन लगाया तो उनके फोन नेटर्क एरिया से बाहर थे. हमने तय किया कि खाना खाने तक इंतज़ार किया जाए, अगर इस बीच धनौरा के लोगं से बात हो जाती है तो उसके मुताबिक आगे का कार्यक्रम तय किया जाएगा अन्यथा रायपुर वापिस लौट आएंगे (क्रमश:)