New Rent Agreement-2025: न्यू रेंट एग्रीमेंट-2025 या कहें नया किराया समझौता-2025 जल्द ही आने वाला है। मोदी सराकर ने इस पर काम शुरू कर दिया है। इस नेय रेंट एग्रिमेंट का मकसद किराये के कॉन्ट्रैक्ट को आसान बनाना है। साथ ही मकान मालिक और किरायेदार के बीच के झगड़ों को कम करना है। इस एक समान फॉर्मेट से यह पक्का हो जाएगा कि न तो मकान मालिक और न ही किरायेदार कोई भी अनुचित शर्त जोड़ सकेंगे या आखिरी मिनट में कोई अचानक नई बात सामने रख सकेंगे।
मॉडल टेनेंसी एक्ट और हाल के बजट फैसलों के आधार पर, होम रेंट रूल्स 2025 कई बड़े बदलाव ला रहे हैं। ये नियम मकान मालिक और किरायेदार के बीच किराये के समझौतों को तय करने, हस्ताक्षर करने और लागू करने के तरीके को बदल देंगे।
नए नियमों से किराया बढ़ाने की प्रक्रिया भी अब आसान और व्यवस्थित हो जाएगी। अब किराया साल में केवल एक बार ही बढ़ाया जा सकता है और इसके लिए मकान मालिक को किरायेदार को 90 दिन पहले नोटिस देना अनिवार्य होगा। सीए नितिन कौशिक के अनुसार, इस कदम से “अचानक साल के बीच में होने वाली बढ़ोतरी के झटके खत्म हो जाएंगे और किराये की बातचीत में असली पारदर्शिता आएगी। साफ-सुथरे वित्तीय रिकॉर्ड को बढ़ावा देने के लिए, सरकार ने यह भी जरूरी कर दिया है कि ₹5,000 प्रति माह से अधिक का कोई भी किराया केवल डिजिटल माध्यमों (जैसे UPI, बैंक ट्रांसफर, आदि) से ही चुकाया जाए। नकद लेन-देन, जो अक्सर विवादों और टैक्स समस्याओं का कारण बनता था, अब धीरे-धीरे बंद हो रहा है। कौशिक ने कहा कि “यह नियम दोनों पक्षों को सुरक्षा देता है और एक स्पष्ट डिजिटल रिकॉर्ड बनाने में मदद करता है।
रिहायशी संपत्तियों के लिए डिपॉजिट की सीमा सिर्फ दो महीने
नए नियमों के तहत, रिहायशी संपत्तियों के लिए डिपॉजिट की सीमा सिर्फ दो महीने के किराये तक सीमित कर दी गई है। यह पहले के 6 से 10 महीने के किराये के पुराने नियम से बहुत बड़ा बदलाव है। सिक्योरिटी डिपॉजिट के मामले में अब हकीकत सामने आई है, यह किरायेदारों के लिए बहुत बड़ी राहत है और वैश्विक किरायेदारी मानकों की ओर एक कदम है।
महंगे किराये पर TDS
जो घर ₹50,000 प्रति माह से अधिक किराये पर दिए जाते हैं, उन पर अब टीडीएस लगेगा, यह नियम प्रीमियम सेगमेंट को मौजूदा टैक्स नियमों के दायरे में लाता है। वहीं झगड़ों को जल्दी निपटाने के लिए, नियमों में किराया कोर्ट और ट्रिब्यूनल स्थापित करने का प्रावधान है। इन निकायों को 60 दिनों के भीतर मामलों का निपटारा करना अनिवार्य है। उम्मीद है कि इससे किराये के झगड़ों से जुड़े सालों तक चलने वाले कानूनी मुकदमों में भारी कमी आएगी। विशेषज्ञों का कहना है कि इन सुधारों का दूरगामी प्रभाव पड़ेगा, डिपॉजिट की सीमा तय करके, डिजिटल भुगतान को अनिवार्य करके, और समझौतों को मानकीकृत करके, सरकार का लक्ष्य है कि लाखों लोगों के लिए किरायेदारी को अधिक सुलभ और कम तनावपूर्ण बनाया जाए।
रजिस्ट्रेशन अनिवार्य: इस सुधार का सबसे अहम हिस्सा यह है कि अब सभी किराये के समझौतों को दो महीने के अंदर रजिस्टर कराना जरूरी होगा।
जुर्माना: अगर रजिस्ट्रेशन नहीं कराया गया तो ₹5,000 का जुर्माना लगेगा, यह नियम उन मौखिक या बिना रजिस्टर्ड समझौतों को कम करेगा जिनके कारण अक्सर कानूनी झगड़े होते हैं।
सिक्योरिटी डिपॉजिट की सीमा: सबसे महत्वपूर्ण सुधारों में से एक सिक्योरिटी डिपॉजिट को तय करना है, जो कि बड़े शहरों में किरायेदारों के लिए हमेशा से एक बड़ी परेशानी रही है।
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