पूना मारगेम– संवाद, संवेदनशीलता और विकास से हिंसा का प्रभावी समाधान बन कर सामने आया है. छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के नेतृत्व से अस्तित्व में आए पूना मारगेम से बस्तर में हिंसा हारी है, और विश्वास जीता है. छत्तीसगढ़ लंबे समय तक नक्सलवाद की चुनौती से जूझता रहा है. बस्तर, बीजापुर, दंतेवाड़ा, सुकमा और अबूझमाड़ जैसे क्षेत्र कि हिंसा, भय और अविकास की पीड़ा के प्रतीक बन गए थे. आज वही बस्तर शांति, विश्वास और विकास की ओर बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है. इसका सबसे बड़ा कारण है – राज्य सरकार की दूरदर्शी और मानवीय नीति ‘पूना मारगेम’.
‘पूना मारगेम’ केवल एक सरकारी योजना नहीं, बल्कि एक विचारधारा, एक विश्वास और एक वैकल्पिक भविष्य का मार्ग है. यह नीति इस सच्चाई को स्वीकार करती है कि हिंसा का अंत केवल हिंसा से नहीं, बल्कि संवाद, संवेदनशीलता और समावेशी विकास से होता है.

पूना मारगेम का अर्थ और दर्शन
स्थानीय गोंडी बोली से निकला शब्द ‘पूना मारगेम’ का आशय है— नया रास्ता. इस नाम से ही इसकी नीतियाँ स्पष्ट हो जाती हैं. ‘पूना मारगेम’ उन भटके हुए युवाओं और कैडरों के लिए नया रास्ता खोलता है, जिन्हें कभी बंदूक उठाने के लिए मजबूर किया गया था. इस नीति के तीन मूल स्तंभ हैं जिसमें पहला संवाद और संवेदनशीलता पर आधारित है इसमें बंदूक के जवाब में बंदूक नहीं बल्कि बातचीत और भरोसा पर ज़ोर दिया जा रहा है.
इस नीति में सरकार और प्रशासन उन लोगों की पीड़ा सुनता है, जो वर्षों तक डर, भ्रम और शोषण में जीते रहे. दूसरा स्तम्भ है विकास जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, बिजली, रोजगार और संचार शामिल हैं ये सभी नक्सलवाद के विरुद्ध सबसे सशक्त हथियार हैं. क्योंकि जब विकास पहुंचता है तो हिंसा की जमीन अपने आप कमजोर पड़ जाती है और ‘पूना मारगेम’ का तीसरा स्तम्भ है हिंसा का प्रभावी समाधान इसके तहत आत्मसमर्पण और पुनर्वास यह सिद्ध करते हैं कि मानवीय दृष्टिकोण बंदूक से कहीं अधिक प्रभावी है.

मुख्यमंत्री विष्णु देव साय का नेतृत्व: दृढ़ता और करुणा का संतुलन
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के नेतृत्व में राज्य ने नक्सल उन्मूलन की दिशा में एक नया अध्याय लिखा है. उनका दृष्टिकोण स्पष्ट है – “कठोरता वहां, जहां जरूरी हो और करुणा वहां, जहां बदलाव की संभावना हो.” मुख्यमंत्री साय ने सत्ता संभालते ही यह स्पष्ट कर दिया कि नक्सलवाद का अंत केवल सुरक्षा बलों की कार्रवाई से नहीं होगा बल्कि जनविश्वास जीतकर ही स्थायी शांति लाई जा सकती है. ‘पूना मारगेम’ इसी सोच का मूर्त रूप है.
साय सरकार की सफ़ल नीतियों से हुआ ऐतिहासिक आत्मसमर्पण और हुई बस्तर में नई सुबह
राज्य शासन की सतत नक्सल उन्मूलन नीति के परिणामस्वरूप बस्तर संभाग में ऐतिहासिक सफलता मिली, जब 210 माओवादी कैडरों ने एक साथ हिंसा का मार्ग त्यागकर समाज की मुख्यधारा में लौटने का निर्णय लिया. यह आत्मसमर्पण केवल संख्या का नहीं, बल्कि राज्य सरकार के मनोवैज्ञानिक और वैचारिक जीत का प्रतीक है.समर्पण करने वालों में मुख्य रूप से शामिल रहे एक सेंट्रल कमेटी सदस्य,चार डीकेएसजेडसी सदस्य और 21 डिविजनल कमेटी सदस्य जैसे वरिष्ठ कैडर शामिल थे. इसमें 153 अत्याधुनिक हथियारों—AK-47, SLR, INSAS और LMG—का समर्पण यह दर्शाता है कि प्रयास कितना प्रभावी था.

बीजापुर में 34 माओवादियों का आत्मसमर्पण: पूना मारगेम की निरंतर सफलता
16 दिसंबर 2025 को बीजापुर जिले में 84 लाख रुपए के इनामी 34 माओवादी कैडरों ने आत्मसमर्पण कर संविधान में आस्था जताई. यह साबित करता है कि ‘पूना मारगेम’ कोई एकदिवसीय पहल नहीं, बल्कि लगातार मजबूत होती प्रक्रिया है. मुख्यमंत्री साय ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यह उपलब्धि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की दृढ़ इच्छाशक्ति के अनुरूप चल रहे प्रयासों का परिणाम है.
मुख्यमंत्री साय के दिशा निर्देश पर हो रहा है पुनर्वास से पुनर्जीवन तक का शानदार सफ़र
‘पूना मारगेम’ के तहत आत्मसमर्पित लोगों को पुनर्वास सहायता राशि दी जा रही है. उनको आवास सुविधा से भी नवाज़ा जा रहा है. आत्मसमर्पितों को कौशल विकास प्रशिक्षण के साथ उनको स्वरोजगार से जोड़ने की योजनाएं बनाई जा रही है. इस तरह आत्मसमर्पितों को सामाजिक पुनर्समावेशन जैसी सुविधाएं दी जा रही हैं. यह केवल आर्थिक सहायता नहीं, बल्कि सम्मान के साथ नया जीवन देने की प्रतिबद्धता है.

संविधान का सम्मान: लोकतंत्र की जीत
जगदलपुर पुलिस लाइन में हुए आत्मसमर्पण कार्यक्रम में कैडरों का स्वागत मांझी-चालकी परंपरा से किया गया. उन्हें संविधान की प्रति और लाल गुलाब भेंट किए गए इसके पीची का संदेश यह था कि अब बंदूक नहीं, संविधान सर्वोच्च है. संविधान की शपथ लेना यह दर्शाता है कि लोकतंत्र केवल किताबों में नहीं, बल्कि जमीन पर भरोसे के साथ स्थापित हो रहा है.
सुरक्षा बल, प्रशासन और समाज के शानदार समन्वय का परिणाम है नक्सलवाद से मुक्ति
नक्सलवाद के ख़िलाफ़ राज्य सरकार की इस सफलता पुलिस और अर्धसैनिक बल, स्थानीय प्रशासन, सामाजिक संगठन और जनजातीय नेतृत्व के संयुक्त प्रयास का परिणाम है. मुख्यमंत्री साय के नेतृत्व में यह समन्वित मॉडल नक्सलवाद के विरुद्ध सबसे मजबूत हथियार बनकर उभरा है.बस्तर की तस्वीर बदल चुकी है जहां कभी डर के कारण स्कूल बंद रहते थे, आज स्कूल फिर से खुल रहे हैं, सड़कें बन रही हैं, गाँव-गाँव तक मोबाइल नेटवर्क पहुंच रहा है, स्वास्थ्य सेवाएं सुदृढ़ हो रही हैं और पर्यटन की संभावनाएं बढ़ रही हैं.
बस्तर में होने वाला यह बदलाव इस बात का प्रमाण है कि विकास ही स्थायी समाधान है.‘पूना मारगेम’ ने यह सिद्ध कर दिया है कि विकास का सिद्धांत केवल नारा नहीं, बल्कि व्यवहारिक नीति है. मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ आज देश के सामने नक्सलवाद से निपटने का मानवीय, संवेदनशील और प्रभावी मॉडल प्रस्तुत कर रहा है.यह नीति न केवल हिंसा का अंत करती है, बल्कि विश्वास, सम्मान और भविष्य का निर्माण भी करती है. बस्तर में उठती शांति की यह नई सुबह आने वाले समय में पूरे देश के लिए प्रेरणा बनेगी.
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