सदफ हामिद, भोपाल। शहंशाह-ए-तरन्नुम के नाम से जाने वाले, सदी के महानाय, सुरों के सरताज रफी साहब की आज पुण्यतिथि है. मोहम्मद रफी को गुजरे आज करीब 40 बरस पूरे हो गए हैं. रफी साहब का भोपाल शहर से खास सरोकार रहा. वे दो बार भोपाल के बाले अली कॉन्सर्ट करने भी आए. रफी साहब से भोपाल के लोगों का भी खास लगाव है और आज रफी साहब के ऐसे ही दिवाने से आपकी मुलाकात कराने जा रहे हैं, जिन्होंने रफी साहब के पुराने से पुराने कलेक्शन को संभालकर रखा है. 29 भाषाओं में रफी साहब ने गीत गाए, जिन्हें राजधानी के फारूक मंसूर ने संजोया है.
घर को बनाया संग्रहालय
फारूक मंसूर ने अपने घर में मोहम्मद रफीक की याद में संग्राहलय बनाया है. जिसमें रफी साहब की यादों का पिटारा है.1985 से लेकर अब तक उन्होनें रफी साहब के गाने, नज्में और किताबों का हजारों से कलेक्शन है, और कई रिजेक्ट गाने, दुर्लभ इंटरव्यू भी उनके पास मौजूद हैं. जो किसी संग्राहलय में नहीं मिलेंगे.
घर और बेटे का नाम भी रखा रफी
फारूक मंसूर, भोपाल के जहांगीराबाद के तंग गलियों में रहते हैं. वे मोहम्मद रफीक के इतने दीवाने हैं कि उन्होनें अपने बेटे और अपने आशियाने का नाम भी रफी साहब के नाम पर रखा है. और उनके फोटो से अपने घर का कोना-कोना सजाया है.
31 जुलाई 1980 को रफी साहब ने लिया था विदा
आपको बता दें कि मोहम्मद रफी ने अपने निधन से पहले एक गाना रिकॉर्ड किया था जिसके बोल थे ‘शाम फिर क्यों उदास है दोस्त’. किसी को भी नहीं पता था कि ये उनकी जिंदगी का आखिरी गीत होगा. 31 जुलाई 1980 को रफी साहब को हार्ट अटैक आया था जिसके चलते उनका निधन हो गया था. जिस दिन उनका निधन हुआ उस दिन मुंबई में जोरों की बारिश हो रही थी, लेकिन फिर भी उनकी अंतिम यात्रा में लाखों लोग शामिल हुए थे. उस दिन अभिनेता मनोज कुमार ने कहा था, ‘सुरों की मां सरस्वती भी अपने आंसू बहा रही है आज’. रफी साहब चले गए लेकिन जाते जाते संगीत प्रेमियों के लिए अपने वो गीत छोड़ गए जिन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकेगा.
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