नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने नोएडा प्राधिकरण के खिलाफ कड़ा रुख अपनाते हुए कहा कि प्राधिकरण के चेहरे ही नहीं, उसके मुंह, नाक, आंख सभी से भ्रष्टाचार टपकता है. सुपरटेक के नोएडा एक्सप्रेस स्थित एमराल्ड कोर्ट प्रोजेक्ट मामले में अथॉरिटी के अपने अधिकारियों के बचाव करने और फ्लैट खरीदारों की खामियां बताने पर शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी करते हुए फैसला सुरक्षित रख लिया.
बुधवार को जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की पीठ के समक्ष सुनवाई के दौरान प्राधिकरण के वकील रविंदर कुमार ने अथॉरिटी व अपने अधिकारियों का बचाव करते हुए कहा, इस प्रोजेक्ट में किसी नियम का उल्लंघन नहीं किया गया है. साथ ही वह खरीदारों की कमियां गिनाने लगे. पीठ ने कहा, यह दुखद है कि आप डेवलपर्स की ओर से बोल रहे हैं. आप निजी अथॉरिटी नहीं, पब्लिक अथॉरिटी हैं. वहीं, सुपरटेक के वकील विकास सिंह ने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जिन दो टावरों को गिराने का आदेश दिया है, उनमें नियमों की अनदेखी नहीं की गई है. उन्होंने खरीदारों की नीयत पर सवाल उठाते हुए कहा कि जब 2009 में उन टावरों का निर्माण शुरू हो गया था, तो उन्होंने तीन वर्ष बाद हाईकोर्ट का दरवाजा क्यों खटखटाया? खरीदारों से लड़ाई लड़ रहे आप इस पर जस्टिस शाह ने कहा, अथॉरिटी को तटस्थ रुख अपनाना चाहिए. ऐसा लग रहा है कि आप बिल्डर हैं. आप उनकी भाषा बोल रहे हैं. ऐसा लग रहा है कि आप फ्लैट खरीदारों से लड़ाई लड़ रहे हैं.
जवाब में कुमार ने कहा कि वह तो महज अथॉरिटी का पक्ष रख रहे हैं. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दो टावर गिराने का दिया आदेश था. दरअसल 2014 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस हाउसिंग सोसायटी में एफएआर के उल्लंघन पर दो टावरों को गिराने का आदेश दिया था. साथ ही इससे जुड़े अथॉरिटी के अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने का भी निर्देश दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने हालांकि सुपरटेक की याचिका पर हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी थी.