रायपुर। छत्तीसगढ़ के कांकेर से 250 किमी की पदयात्रा कर बड़ी संख्या में आदिवासी रायपुर पहुंचे हैं. जिसमें जिले के 58 गांव के आदिवासी शामिल हैं. उनकी मांग है कि 53 गांवों को नारायणपुर जिले में शामिल किया जाए. राज्यपाल अनुसुईया उइके ने खुद इंडोर स्टेडियम में आदिवासियों से मुलाकात करने पहुंची. उन्होंने कहा कि आदिवासी आज भी वंचित है. सरकार के काम-काज का हिसाब रखें.
आदिवासियों से मुलाकात के बाद राज्यपाल अनुसुईया उइके ने कहा कि हमारा हक और अधिकार छीना जा रहा है. हमारी मांगों को पूरा नहीं किया जा रहा है. कांकेर कलेक्टर ने 53 गांवों को नारायणपुर में शामिल करने के लिए राज्य सरकार को सूची दिया है. राज्यपाल ने कलेक्टर को निर्देश दिया था. अब सरकार से जल्द इन गांवों को नारायणपुर में शामिल करने की बात कही जाएगी.
जनजातिय समुदाय को अधिक से अधिक शासकीय योजनाओं की दें जानकारी : राज्यपाल अनुसुईया उइके
राज्यपाल ने माना है कि आदिवासी मूल अधिकारों से अभी भी वंचित हैं. उन्होंने कहा कि मैं समझ सकती हूं कि आदिवासियों की पीड़ा कितनी है. मैं आदिवासी हूँ. मैं बखूबी समझती हूँ. बस्तर में नक्सल समस्या क्यों है यह भी सवाल है ? भोले-भाले आदिवासियों का फायदा उठाया जा रहा है. पढ़े-लिखे आदिवासी सरकार के काम-काज का हिसाब रखें. हिसाब रखें कि गांवों में कितना पैसा आ रहा, कितना खर्च हो रहा है, कितना काम हो रहा है ?
उन्होंने कहा कि बस्तर की पीड़ा को मैं जानती हूँ. मुझे इस बात का बहुत ही दुख है कि 2007 से आप लोग लगातार अपनी मांगों को लेकर संघर्ष कर रहे हैं. मैं जानती हूं कि आदिवासी आर्थिक रूप से सक्षम नहीं है. वे कठिन परिस्थितियों में जीवन जीते हैं. मुझे लगता है कि इस समस्या का हल काफी पहले हो जाना था. इसी तरह से बीजापुर के आदिवासी भी अपनी समस्या को लेकर मिले थे. बीजापुर के कुछ गांव हैं, जो दंतेवाड़ा के करीब हैं. वहां के ग्रामीण भी चाहते हैं कि उन्हें दंतेवाड़ा में शामिल किया जाए. मुझे करीब 2 साल हो गए छत्तीसगढ़ में राज्यपाल के रूप में काम करते हुए. बस्तर के साथ-साथ छत्तीसगढ़ की अति पिछड़ी जनजाति हैं उनका अधिकार छीन लिया गया.
राज्यपाल उइके ने कहा कि युवा बेरोजगारों को बैकलॉग का लाभ नहीं मिल रहा है. इस पर मैंने सरकार को पत्र लिखा था, जिसके बाद बैकलॉग के पद भरे गए. बस्तर में बहुत से स्कूल हैं, जो शिक्षकविहीन है, वहां स्थानीय पढ़े-लिखें लोगों की भर्ती की जाए. इस पर भी सरकार ने निर्णय लिया. इसी तरह से तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के पदों पर भर्ती के लिए कनिष्ठ चयन बोर्ड का गठन किया गया. पट्टाविहीन लोगों के लिए भी मैंने पत्र लिखा है उस पर भी अमल हुआ. मैं आदिवासी हूँ तो मैं यह बखूबी समझती हूं कि आदिवासियों का दर्द क्या है?
उन्होंने कहा कि आदिवासी लोग सीधे सहज और सरल होते हैं. उनका सब लोग फायदा उठाते हैं. झारखण्ड, ओडिशा, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ सभी जगहों के आदिवासियों की समस्या को मैंने करीब से देखा है. आदिवासियों में अब जागरूकता बहुत ज्यादा है. आदिवासियों को पेसा कानून, पांचवीं अनुसूची की जानकारी हुई है. आदिवासियों के लिए ग्राम सभा को सबसे ऊपर रखा गया. ग्राम सभा ही सबसे बड़ी सभा है. छत्तीसगढ़ में 80 ग्राम पंचायतों को तोड़कर 34 नगर पंचायत बना दिया गया है. आदिवासी अधिकारों का बहुत हनन हुआ है. छत्तीसगढ़ में नक्सल समस्या क्यों है इसे समझने की जरूरत है.
read more- Health Ministry Deploys an Expert Team to Kerala to Take Stock of Zika Virus
- मध्यप्रदेश की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- उत्तर प्रदेश की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- लल्लूराम डॉट कॉम की खबरें English में पढ़ने यहां क्लिक करें
- खेल की खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
- मनोरंजन की खबरें पढ़ने के लिए करें क्लिक