सत्यपाल राजपूत, रायपुर। छत्तीसगढ़ सरकार प्रदेश के भविष्य को संवारने के लिए करोड़ों रुपये पानी की तरह बहा रही है, ताकि प्रदेश से चमकते हुए सितारे निकलें, छत्तीसगढ़ का नाम रोशन करें, लेकिन जो शिक्षा विभाग से तस्वीरें निकल कर आ रही हैं, वो बिल्कुल शिक्षा विभाग के दावे और आंकड़ों को चकनाचूर कर रही हैं. शिक्षा विभाग की लापरवाही तले छात्रों का भविष्य अंधकारमय हो रहा है. विभाग की नाकामियां की वजह से शिक्षक ही नहीं हैं. कई स्कूल ऐसे हैं, जो भगवान भरोसे हैं, जहां छात्र खुद शिक्षा की अलख जगा रहे हैं. वे ऊपर वाले के भरोसे पढ़ाई कर रहे हैं, दर्जनों स्कूलों में तो विद्यार्थी ही नहीं हैं, लेकिन शिक्षा विभाग चैन की नींद सो रहा है. विभाग कभी इस गंभीर मसले को हल करने की जहमत नहीं उठाई.
LALLURAM.COM ने शिक्षा विभाग की लापरवाही को लेकर बड़ा खुलासा किया है. इस मुद्दे को लेकर ज़िम्मेदार अधिकारी क्या कह रहे हैं, यह बताने से पहले आपको उन आंकड़ों से रू-ब-रू कराते हैं, जिसकी वजह से आज देश का भविष्य छत्तीसगढ़ का भविष्य के साथ शिक्षा के नाम पर छलावा हो रहा है. LALLURAM.COM के पास मौजूद दस्तावेज के मुताबिक़ एक दो नहीं, बल्कि हज़ारों स्कूल हैं, जहां एक शिक्षक हैं, विद्यार्थी हैं, तो शिक्षक नहीं, जिन स्कूलों में शिक्षक हैं, तो विद्यार्थी नहीं हैं.
लापरवाही का बड़ा ख़ुलासा
LALLURAM.COM ने छत्तीसगढ़ स्कूल शिक्षा विभाग के दावों और लापरवाही को लेकर पड़ताल की, जिसमें शिक्षा विभाग के दावों की पोल खुल गई. प्रदेश में एक-एक शिक्षक के भरोसे 4 हजार 350 स्कूल संचालित हो रहे हैं. 457 स्कूलों में एक भी शिक्षक नहीं हैं, इससे हैरानी की बात ये है कि प्रदेश के 83 स्कूलों में एक भी विद्यार्थी नहीं, मानो स्कूलों में ताले जड़ दिए गए हैं. विद्यार्थी विहीन स्कूलों में 78 शिक्षक तैनात हैं. अब बड़ा सवाल ये है कि बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने के लिए ज़िम्मेदार कौन है?
ज़िलेवार देखिए आंकड़ा
स्कूल शिक्षा सचिव डॉ कमलप्रीत सिंह ने कहा कि एकल शिक्षक, शिक्षक विहीन, बग़ैर शिक्षा स्कूल के समाधान के लिए निर्देश दिए गए हैं. बहुत ही जल्द इस समस्या का समाधान किया जाएगा. 14,580 शिक्षकों की जो भर्ती जारी है. इसके लिए ऐसे स्कूलों की लिस्ट मंगाई गई है. जहां-जहां ये समस्या है, वहां इन शिक्षकों को प्राथमिकता दी जाएगी.
बहरहाल, क्या कभी आप सोच सकते हैं, एक शिक्षक के भरोसे पूरा स्कूल का संचालन किया जा सकता है ? बग़ैर शिक्षक स्कूलों की क्या कल्पना की जा सकती है ? विद्यार्थियों के बग़ैर स्कूल का अब क्या अस्तित्व हो सकता है ? ऐसी स्थिति के बाद भी शिक्षा विभाग मौन है. सरकार करोड़ों रुपये खर्च कर है, फिर भी शिक्षा व्यवस्था बदहाल कैसे हो सकता है ?. क्या शिक्षा में गुणवत्ता का अभियान सफ़ेद हाथी साबित रहा है ?. ये सभी सवाल शिक्षा विभाग की उन नाकामियों के लिए हैं, जो अब तक ठीक नहीं कर पाया.
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