पुरुषोत्तम पात्र, गरियाबंद. जिले के राजीव गोद ग्राम कुल्हाड़ीघाट पंचायत में मनरेगा के 1 करोड़ का काम चल रहा है. फिर भी 28 परिवार के 49 मजदूर अपने 17 बच्चों के साथ पलायन कर गए, क्योंकि दलालों ने सबको 30-30 हजार नगद थमा दिया. पलायन करने वालो में स्कूल का स्वीपर और उसकी आंगनबाड़ी सहायिका पत्नी भी शामिल है.
मनरेगा योजना में काम देकर मजदूरी के लिए 15-20 दिन का चक्कर लगवाना जनजाति के लोगों को रास नहीं आ रहा. लाखों के योजना में धीरे-धीरे भुगतान पर एक मुश्त नगद राशि भारी पड़ गई. इंदागांव के अमली में हुए पलायन के मसले को प्रसाशन सुलझा नहीं पाई थी, कि अब कांग्रेसी नेताओं के लिए आस्था का केंद्र बन चुके राजीव गोद ग्राम कुल्हाड़ीघाट से 49 मजदूर के साथ 17 बच्चे पलायन करने का मामला सामने आया है.
पंचायत सचिव प्रेम ध्रुव ने लिखित पत्र में जनपद सीईओ रूप कुमार ध्रुव को यह जानकारी दी है. पत्र में बताया गया है कि पंचायत मुख्यालय कुल्हाड़ीघाट में 5 परिवार के 13 सदस्य के अलावा आश्रित ग्राम कठुआ में 2 सदस्य, भालुडिगी के 3 सदस्य, मटाल के 3 परिवार के 10 सदस्य, देवडोंगर में 2 परिवार के 5 सदस्य, गौरमूण्ड के 6 परिवार के 13 सदस्य, बेसराझर 6 परिवार 22 सदस्य तेलंगाना पलायन कर गए हैं.
सचिव ने बताया की पलायन करने वालों की सूची में गौरमूण्ड प्राथमिक स्कूल के स्वीपर चमार सिंह और वहीं आंगनबाड़ी में पदस्थ सहायिका पनकीन बाई भी पलायन कर गई है. हैरानी की बात है कि सभी दिसंबर माह से गांव छोड़ दिए हैं पर सरकारी कर्मी के नदारद होने की सूचना उनके विभाग के पास भी नहीं है.
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मामले में मैनपुर जनपद सीईओ रूप कुमार ध्रुव ने कहा कि कूल्हाड़ीघाट पंचायत में 1 करोड़ लागत से 49 काम स्वीकृत है. इनमें से 4 रोजगार मूलक काम पूर्ण भी हो गए. 481 जॉब कार्ड के 891 मजदूरों के हाथों में 100 दिन का काम भी पूरा दिया गया. 150 दिन के काम का लक्ष्य भी अधिकतर मजदूरों ने पूरा किया है. रोजगार मूलक कार्य के बेहतर क्रियान्वयन के लिए रोजगार सहायक को जिला प्रसाशन ने पुरस्कृत भी किया है. पैलायन के कारणों का पता लगाने टीम भेजी गई है. उच्चाधिकारियों से मार्गदर्शन लेकर आगे उचित कार्रवाई की जाएगी.
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नगद के झांसे में आकर फंस जाते है भोलेभाले जनजाति
ग्राम पटेल शत्रुघन मरकाम ने कहा कि सरकारी काम की कमी नहीं है. पंचायत में शुरू के 100 दिन की मजदूरी 15 से 20 दिन में खाते में आ जाती है, लेकिन 100 दिन के बाद का भुगतान लेने महीनों चक्कर काटना पड़ता है. मैनपुर ब्लॉक में जनजाति से जुड़े कुछ ऐसे लोग हैं, जो तेलंगाना के ईंट भट्ठे से जुड़े हुए हैं. यही दलाल गांव में घूम-घूम कर 30 हजार नगद थमा कर भोले-भाले ग्रामीणों को ले जाने में सफल हो जाते हैं. पटेल ने कहा कि 100 दिन के बाद राज्य सरकार के मद से मजदूरी भुगतान की प्रक्रिया जल्द होती तो पलायन में कमी आएगी.
बेटी की मौत से बेखबर मां, बेटा बोला-जानवरों सा सुलूक होता है
नगद के लालच में फंसने वालो में गौरमूण्ड की 41 वर्षीय सुखबति भी शामिल है. गांव में मौजूद 22 साल का बेटा सुकलाल ने बताया कि माह भर पहले 13 वर्षीय बहन बुधियारी की मौत हो गई है. पलायन कर के कन्हा गई है. मां और परिवार वालों को इसकी जानकारी नहीं है, इसलिए वे मौत की सूचना नहीं दे सके है. 2019 में सुकलाल मां के साथ पलायन किया था. तब घर में रह रहे पिता डूमरसिंह की मौत हो गई थी, तब भी उन्हें मौत का पता नहीं चल सका था.
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वहीं पलायन के अनुभव को साझा कर सुकलाल ने कहा कि एडवांस में जो 30 हजार दिया जाता है, वहीं नगद पूंजी होती है. बारिश के आने तक रोजाना 10 घंटा काम कराया जाता है. खाने के लिए सप्ताह में 300 रुपए एक मजदूर को, साथ ही कहने को 500 रुपए मजदूरी है. ऊपर की सारी कमाई दलाल खा जाता है, इसलिए इस बार वह नहीं गया.
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