लक्ष्मीकांत बंसोड़, बालोद। चलिए आज हम आपको एक ऐसी जगह ले चलते हैं जहां पुरातत्व विभाग व शासन प्रशासन की उदासीनता के चलते वर्षों पुरानी दुर्लभ प्राचीन मूर्तियां खंडित होने के साथ-साथ चोरी होने लगी है., ग्रामीणों के कथन अनुसार जो भी शख्स इस स्थान से मूर्ति चोरी कर ले जाते हैं, उनके घर परिवार में कुछ ऐसी अनहोनी घटनाएं होती है. ऐसे में मजबूरन उन्हें मूर्ति को वापस उसी स्थान पर छोड़ना पड़ता है.

वैसे छत्तीसगढ़ में अनेकों रहस्य हैं, जिनके बारे में आज तक कोई नहीं जानता कि वह कब की कहां से और कैसे आया. सालों से चली आ रही परंपरा के अनुसार, ग्रामीण आज भी पूजा अर्चना करते आ रहे, इन्हीं में से एक छत्तीसगढ़ प्रदेश के बालोद जिला स्थित डौंडी ब्लाक के ग्राम पंचायत नर्राटोला की है, इस गांव में पहुंचने से ठीक पहले खुले आसमान और पेड़ो के नीचे गांव की सरहद के पास झाड़ियों में अनेकों रहस्यों से भरा प्राचीन मूर्तियां हैं, जिनमें देवी देवताओं के साथ-साथ राजा महाराजाओं का स्वरूप बना हुआ है. कई मूर्तियां दुर्लभ है, जिसकी बनावट बेहद अलग व बारीकी से हुई है. लोगों का कहना है कि इस जगह पर बाराती आए हुए थे, जो देखते ही देखते मूर्तियों में तब्दील हो गए. हालांकि, इसका कोई प्रमाण नहीं है.

ग्रामीण बताते कि कुछ साल पूर्व इस क्षेत्र में एक तालाब खोदा गया, इस दौरान लोहे का हँसिया व सब्बल निकला. आज भी इस स्थान के आसपास कहीं भी जमीन की खुदाई की करने पर कुछ ना प्राचीन वस्तु या मूर्तियां निकलती हैं. ग्रामीणों का मानना है कि जो भी इस जगह से चोरी-छुपे मूर्तियां लेकर जाता है, उसके घर-परिवार में कुछ न कुछ अनहोनी घटनाएं घटित होती है, जिसके चलते मूर्तियों को वापस इसी स्थान पर लाकर छोड़ना पड़ता है.

नर्राटोला गांव के ग्रामीणों के लिए यह आस्था का केंद्र है, और हर तीज त्यौहार में यहां आकर पूजा-अर्चना किया करते हैं. इस जगह की एक और विशेषता है कि इस जगह जिसकी शादी नहीं होती है, वे आकर अपना नाम-पता कागज में लिख के छोड़ देते हैं, तो जल्द ही उनकी शादी हो जाती है. यहां महिलाओं का जाना सख्त मना है.

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अब तक आस्था से आज तक सुरक्षित इन मूर्तियों को लेकर अब ग्रामीणों को चिंता सताने लगी है. ग्रामीण मानते हैं कि हमारे धरोहरों को संरक्षित और सुरक्षित करने की जरूरत है. लेकिन इस पर न तो पुरातत्व विभाग ध्यान दे रहा है, और न ही शासन-प्रशासन. मामले में क्षेत्रीय विधायिका व मंत्री अनिला भेड़िया के प्रतिनिधि का कहना है कि शासन-प्रशासन से चर्चा कर संरक्षण के लिए हरसंभव प्रयास किया जाएगा. सवाल यह है कि आखिर कब जाकर शासन-प्रशासन इन प्राचीन धरोहरों की सुध लेगा.

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