लखनऊ. उत्तर प्रदेश में राजनीति किस तरह अफसरशाही को चलाती है. इसका नमूना देखना हो तो एक चिट्ठी पर नजर डालिए, मामला खुद-ब-खुद समझ आ जाएगा.
दरअसल गोरखपुर औऱ फूलपुर में हुए लोकसभा उपचुनाव में भाजपा की हार ने पार्टी औऱ सरकार दोनों की जमकर फजीहत कराई. सरकार अपने खिलाफ आए नतीजों से गुस्से में थी औऱ गुस्सा निकालने के लिए उसके पास जिम्मेदार अफसरों की लिस्ट थी. फिर क्या था, सरकार ने ताश के पत्तों की तरह प्रशासनिक अधिकारियों को फेंट दिया. पहले दर्जनों आईएएस अफसरों को बदला गया. उसके बाद बारी थी पुलिस अफसरों को बदलने की.
इन आईपीएस अधिकारियों को किस तरह नेताओं की पसंद औऱ नापसंद पर तैनात किया गया. इसका नजारा देखना हो तो एक चिट्ठी सारी कहानी कह देती है. अभी सरकार ने पचास के करीब आईपीएस अफसरों को बदला. जिनमें एक उमेश कुमार सिंह भी हैं. सिंह गोंडा जिले के पुलिस अधीक्षक थे लेकिन बिजनौर के विधायक महोदय ने मुख्यमंत्री से सिफारिश की कि इन आईपीएस महोदय को उनके जिले में तैनात कर दिया जाय. फिर क्या था, मुख्यमंत्री ने अपनी पार्टी के विधायक जी की बात को फुल तवज्जो देते हुए उमेश कुमार सिंह को गोंडा से बिजनौर जिले रवाना कर दिया. जहां भेजने की डिमांड विधायक जी ने रखी थी.
मामला सोशल मीडिया पर वायरल होते ही तूल पकड़ने लगा. विधायक जी को लगा कि मामला उल्टा न पड़ जाय इसलिए उन्होंने चिट्ठी को ही फर्जी बताना शुरु कर दिया. वैसे जानकारों का कहना है कि चिट्ठी की भाषा औऱ विधायक जी के साइन एकदम दुरुस्त हैं. साथ ही उनके सजातीय आईपीएस का उनके ही जिले में तबादला होना बहुत कुछ कहता है. भले ही योगी सरकार पारदर्शी कामकाज के कितने दावे करे लेकिन असलियत वाकई में सरकारी दावों से बहुत अलग है.