संदीप अखिल, रायपुर। श्री हनुमान “महावीर ” क्यों ? श्री हनुमान जयंती के पावन अवसर पर श्री राम चरितमानस के वीर और महावीर को समझने का प्रयास करते हैं। वीर कौन इस विषय के गंभीर रहस्य को अनावृत करने के लिए आइए चलते हैं लंका की युद्ध भूमि में। श्री राम की सेना खड़ी है। युद्ध का अंतिम चरण है। रावण अपने ऐश्वर्यमयी रथ पर युद्ध करने आता है। रावण को देखकर रामा दल का कोई योद्धा नल, नील, द्विविद मयंद अंगद, सुग्रीव कोई विचलित और अधीर नहीं हुए। सिर्फ विभीषण अधीर हुआ।
॥ रावण रथी विरथ रघुवीरा, देख विभीषण भयेऊ अधीरा॥ श्री राम के शरण में जाने के बाद भी विभीषण का अधीर होना कोई साधारण घटना नहीं थी। उसने श्री राम से कहा–॥ नाहिन रथ नहि पद त्राणा, केहि विधि जितव वीर बलवाना। विभीषण ने रावण को वीर और बलवान कहते हुए मानों राम दल के युद्ध सामर्थ्य पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया। श्री राम ने विभीषण से कहा विभीषण मेरे विचार से जो समाज संस्कॄति मान्यताओं की ध्वस्त करने वाली दुर्बल, जर्जर और बैडोल आकृति ही रावण है। तुम्हारी दृष्टि में रावण वीर और बलवान कैसे है। तुम तो लंका के आघोषित राजा थे। रावण के लड़ने और कुंभ कर्ण को सोने से फुरसत नहीं थी। लंका का राज्य तुम्हीं करते थे। रावण ने कहा भी है। ॥ करत राज लंका सठ त्यागी॥ आप वीर की परिभाषा बताएं कि रावण के वीर होने का क्या मानक हैं। तब विभीषण कहा प्रभु सबेरे लंका से कैलाश जाता है। यह साधारण सामर्थ्य नहीं है। श्री राम ने कहा भारत में जो चलता है उसे वीर नहीं धावक कहते हैं।॥ अधिक चलै जो वीर ना होई॥ फिर विभीषण ने कहा प्रभु जब ये चलता है, तो पृथ्वी ऐसे प्रकंपित होती है जैसे कोई मतवाला हाथी मौज में छोटी सी नाव पर पैर रख दे तो जल में जैसा प्रकंपन होता है। उस प्रकार पृथ्वी कांपती है।
॥ जासु चलत डोलत इमि धरनी, चढ़त मत गज़ जिमि लघु तरनी॥ श्री राम ने कहा विभीषण तुम्हारे भाई के चलने से पृथ्वी कांपती है, मेरे भाई के बोलने से पृथ्वी कांपती है।॥ लखन सकोप वचन जब बोले, डगमानि महि दिग्गज डोले॥ तब विभीषण ने कहा प्रभु यह फूल के जगह अपने सिर को ही शिव जी को अर्पित करता है। ऐसा तो कोई वीर ही कर सकता है। श्री राम ने कहा यदि सिर या शरीर के कोई अंग काटना वीरता का मानक है तो जितने बड़े-बड़े जादूगर हैं। जो रोज़ मंचों पर अपना शरीर काटकर लोगों का मनोरंजन करते हैं वे सब वीर हो जाएंगे। ॥ इन्द्र जाल कह कहैं ना वीरा, काटै निजकर सकल शरीरा॥ विभीषण मौन हो गया। कहा आप ही बताएं प्रभु वीर कौन है। जब हम वीर को समझेंगे तब महावीर को समझ पायेंगे।श्री राम ने समृद्ध भारत के आध्यात्म के तत्व बोध का पहला पृष्ठ मानों सावर्जनिक करते हुए कहा- ”विभीषण यह संसार ही शत्रु है और जो संसार को जीत लेता है, वही वीर है। ॥ महा अजय संसार रिपु, जीत सकै सो वीर॥ विभीषण यह संसार संबंधों के प्रपंच के सामने बड़े-बड़े पुरुषार्थी योद्धाओं ने अपने शस्त्र डाल दिए हैं। अपनों से ही पराजित हुए हैं। जो संसार को जीत ले वही वीर है। संक्षिप्त मे श्री राम ने किसे अपने श्री मुख से वीर कहा है। जो वीर की रक्षा कर दे, वही महावीर हो सकता है। इस देश की संप्रभुता की तीन मुख्य सत्ता है। इस देश के नारी शक्ति का सतीत्व, संतों के सदविचार मां भारती के संवाहकों का अभिषेक।॥ तीन बचावत देश को सती, संत और शूर। तीन डुबोवत देश को कपटी कायर क्रूर॥ विराट राष्ट्र ही राम है। संस्कॄति ही सीता है। इस देश के संतत्व ही हमारे जीवंत मूल्य बोध हैं। इन तीनों की जो रक्षा कर दे। या तीनों जिसे सन्मानित कर दें, आदर दें, वही महावीर है। श्री राम ने लखन की वीर नहीं कहा। जिसने अपनी तरुणार्थ को समर्पित कर दिया। ऐसा कौन समर्पित श्री राम का सेवक है। जिसने अपनी भूमिका से इस देश के सतीत्व की रक्षा की आशीर्वाद पाया। संतों का कृपा प्रसाद मिला। और समर भूमि किसी राष्ट्र भक्त योद्धा के प्राणों की रक्षा की। सती, संत, शूर॥ जो इन तीनों को अपनी निष्ठा से सन्मानित कर आशीर्वाद पा ले। वह भारतीय संस्कॄति का महावीर हो सकता सकता है। बहुत संक्षिप्त में श्री हनुमन लाल जी समुद्र लांघकर विश्व की शांति सीता के दर्शन किए आशीर्वाद प्राप्त किया। ॥ अजर अमर गुण निधि सुत होहू, करहि बहुत रघुनाथक होहू॥ यह भारत के सतीत्व के उदात्त धवल आंचल का आशीर्वाद है। फिर अन्याय एवं अधर्म के विरुद्ध चलने वाले राम रावण युद्ध मे योद्धा लखन लालजी का संजीवनी लाकर अलभ्य दुर्लभ साहस का परिचय दिया। श्री राम ने मुक्त कंठ से प्रशंसा की। ॥ सुन सुत तोर उरिण मै नाहीं, कर विचार देखऊ मन माही॥ राष्ट्र संस्कॄति संवाहको का, सीमाओं पर अपने प्राण न्योछावर करने वाले योद्धाओं का ऋणी होता है।
इस प्रकार सती, संत, शूर की रक्षा करने वाले श्री महावीर हनुमान को सबकी ओर से नमन ।।।