रायपुर। दीपावली उत्सव की अंतिम बेला में महापर्व छठ की तैयारियों की शुरुआत हो जाती है. चार दिनों तक चलने वाले लोक आस्था के महापर्व छठ के बारे में अब देश ही नहीं बल्कि विदेश के लोग भी जानते हैं. आधुनिकता की दौड़ में शायद यही वो त्योहार है जो जरा भी नहीं बदला, शायद इसलिए ही इसे महापर्व कहा जाता है. इसे भी पढ़ें : इस बार खास होगा छत्तीसगढ़ का स्थापना दिवस, जिला मुख्यालयों में आयोजन के साथ शुरू होगी धान खरीदी…
इस साल छठ पूजा का महापर्व 28 अक्टूबर 2022 से शुरू हो रहा है. कार्तिक माह की चतुर्थी तिथि को पहले दिन नहाय खाय, दूसरे दिन खरना, तीसरे दिन डूबते सूर्य और चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. इस साल ये पर्व 28 अक्टूबर से शुरू होकर 31 अक्टूबर तक चलेगा. 28 अक्टूबर को नहाय खाय से पर्व की शुरुआत होगी, 29 अक्टूबर को खरना, 30 अक्टूबर को डूबते सूर्य को अर्घ्य और 31 अक्टूबर को उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ पर्व का समापन होगा.
सोना-चांदी नहीं बेटी मांगती छठी मइया से
छठ के पारंपरिक गीतों की बात करें तो कई ऐसे गीत हैं, जिनकी अपनी महत्ता है. उनके अंदर जीवन की सच्चाई भी छिपी है. छठ गीत में नारी सशक्तिकरण की बात करने के साथ ही सुशिक्षित समाज की बात कही गई है. गीत में व्रती छठी मइया से रुनकी-झुनकी हम बेटी मांगिले, पढ़ल पंडित दामाद, छठी मइया दर्शन देहूं न अपार की विनती करती है.
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आप ही बताइए क्या है कोई दूसरा ऐसा व्रत जहां समाज में संतुलन बनाए रखने के लिए पूजा होती हो. इन गीतों के मर्म को देखें तो समाज में पुत्रों के साथ पुत्री की महत्ता को स्थान दिया गया है. गीतों के जरिए व्रती समाज को यह भी संदेश देती हैं कि छठ जैसा महापर्व नारी शक्ति के बिना अधूरा है.
गीत के दूसरे पहलू को देखें तो व्रती लोक में विद्वान दामाद की कामना करती है. आज जिस स्वच्छता अभियान की बात होती है, सदियों से वह छठ पूजा की आत्मा है. छठ मनाइए और नदी बचाइए क्योंकि अगर नदी नहीं होगी तो छठ का गीत ‘घुटी भर धोती भींजे’ कैसे बजेगा.
अपनी मिट्टी से जुड़े रहने का पर्व है छठ
आधुनिकता के दौर में दुनिया हर पल बदल रही है, घर और जहां भर की जानकारी मोबाइल तक सीमित हो गई है. ऐसे में छठ भावी पीढ़ी को ये बताएगा कि घर अपार्टमेंट के फ्लैट को नहीं कहते, छठ उन्हें गांव ले जाएगा और अपनों से मिलवाएगा.
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