कर्ण मिश्रा,ग्वालियर। देशभर में शुक्रवार को राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस मनाया जा रहा है. सरकारे प्रदूषण नियंत्रण करने के तमाम प्रयासों के दावे और आंकड़े बता रही है, लेकिन इसके उलट मध्यप्रदेश के ग्वालियर में लगातार बढ़ते हुए वायु प्रदूषण ने सभी को परेशानी में डाल दिया है. वायु प्रदूषण बढ़ने का सबसे बड़ा कारण अभी तक दिल्ली के आसपास जलाई जा रही पराली, सड़कों पर दौड़ रहे वाहन और कचरे को माना जा रहा था, लेकिन असल वजह शहर की जर्जर और खराब सड़कों से उड़ती धूल सामने निकल कर आई है. जिसने शहर वासियों का जीना मुहाल कर दिया है. शहर में उड़ रही धूल से जहां सांस संबंधी मरीजों का दम घुट रहा है, तो वही जिम्मेदार निगम अधिकारी इसे रोकने के तमाम दावे कर रहे हैं और महापौर से लेकर मंत्री तक जनता की परेशानी के इतर अपनी अलग ही बयानबाजी में लगे हुए हैं.
दरअसल ग्वालियर का एयर क्वालिटी इंडेक्स 300 के ऊपर दर्ज किया गया है, जो सांस के मरीजों के लिए तो खतरनाक है ही वही अच्छे खासे आदमी को भी बीमार कर सकती है. हालात यह है कि शहर के लगभग हर इलाके में गली मोहल्ला कॉलोनी के साथ ही कई जगह प्रमुख सड़कें खुदी पड़ी है और उनसे उड़ने वाली धूल लोगों को परेशान कर रही है. स्थिति यह हो गई है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री सड़कों को लेकर नाराजगी जता चुके हैं. वही प्रदेश सरकार के जिम्मेदार ऊर्जा मंत्री प्रद्युमन सिंह तोमर ने तो अपने जूते चप्पल इसलिए त्याग रखे हैं कि शहर की खराब सड़कें जल्द दुरुस्त हो और जनता को राहत मिले तभी वह वापस जूते चप्पल पहनेंगे. लेकिन इसके बावजूद भी सड़के बन नहीं पा रही है. ऊर्जा मंत्री का कहना है कि वह जल्द सड़कों को दुरुस्त करवाएंगे और लेटलतीफी करने वाले अधिकारियों पर कार्रवाई भी करेंगे.
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खुदी पड़ी सड़कों को बनवाने और मरम्मत करवाने में जहां ऊर्जा मंत्री का अपना तर्क और अपना ही तरीका है, तो वही नवनिर्वाचित महापौर डॉ शोभा सिकरवार भी खराब खुदी पड़ी सड़कों से जनता को कब राहत दिलवा पाएंगी. उन्हें खुद पता नहीं है ऐसे में खुदी पड़ी सड़कों से उड़ रही धूल मिट्टी शहर को प्रदूषित कर रही है. शहर वासियों को इस से कब तक निजात मिलेगी पता नहीं है.
ग्वालियर में चल रहे निर्माण कार्य, खराब जर्जर टूटी सड़कें, कच्ची सड़कों के साथ टूटे हुए फुटपाथ से उठने वाली धूल का प्रबंधन नहीं है. सड़कों पर लगने वाली झाड़ू वाहनों के आवागमन और हवा के सहारे यह जमीन के ऊपर उड़ती है ठंड के मौसम में हवा में नमी आ जाती है. जब धूल के कण हवा से नमी लेते हैं तो इनका वजन बढ़ जाता है. इस वजह से यह अधिक ऊपर नहीं जा पाते एक निश्चित ऊंचाई पर पहुंचकर बना लेते हैं. यह परत तेज हवा या फिर सूरज की किरणों से ही टूट सकती है. ग्वालियर शहर तीन ओर से पहाड़ियों से घिरा हुआ है. इसलिए धीमी हवा प्रदूषण को कम नहीं कर पा रही है.
हालांकि नगर निगम कमिश्नर किशोर कन्याल का अपना वही अधिकारिक रटा हुआ जवाब है, जिसमें दावे कर रहे हैं कि उन्होंने अपने अफसरों को निर्देश दे रखा है कि जमीनी स्तर पर धूल मिट्टी के कणों को रोकने का प्रबंध करें. साथ ही उन्होंने मिट्टी के कणों को बैठाने के लिए शहर के कई इलाकों में फागिंग मशीन से पानी का छिड़काव करवाया है. वह अभी भी लगातार जारी है. बावजूद इन सबके शहर के डस्ट से उठने वाले प्रदूषण पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा है. वायु प्रदूषण अपनी खराब रेटिंग दर्ज करा रहा है.
चार महानगरों में प्रदूषण का स्तर इस प्रकार है
- भोपाल 248 AQI
- जबलपुर 189 AQI
- इंदौर 150 AQI
- ग्वालियर 332 AQI
ऐसे समझे हवा की गुणवत्ता
- अच्छा 0 से 50
- संतोषजनक 51 से 100
- चिंताजनक 101 से 200
- खराब 201 से 300
- गंभीर 301 से 500
ग्वालियर में वायु प्रदूषण को कम करने कुछ ठोस कदम उठाने होंगे
- नगर निगम सड़कों की मरम्मत कराए.
- सड़क के आसपास घास लगवाए.
- झाड़ू लगवाने के साथ वैक्यूम क्लीनर से धूल की सफाई कराये.
- कच्ची जमीन और पेड़ पौधों पर पानी का छिड़काव कराये.
- वार्ड स्तर पर निगरानी के साथ कचरा जलाने वालों पर कार्रवाई हो.
- नुक्कड़ नाटक सामाजिक संस्थाओं के जरिए शहर वासियों को जागरूक किया जाए.
गौरतलब है कि दीपावली के बाद से लेकर अभी तक ग्वालियर शहर की आबोहवा लगातार जहरीले होती जा रही है. जिसके पीछे की मुख्य वजह हमने आपको बताए. ऐसे में जिम्मेदारों को जल्द से जल्द ठोस कदम उठाते हुए इस पर तत्काल एक्शन लेना होगा. ऐसा न होने पर शहरवासियों को गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते है.
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