आज शीतलाष्टमी है. राजस्थान में इस त्यौहार को बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. जयपुर से 70 किमी दूर चाकसू कस्बे में शील डूंगरी पर हजारों की संख्या में भक्त पहुंचते हैं. दो दिवसीय मेले की तैयारी प्रशासन द्वारा एक सप्ताह से की जा रही थी. शीतला माता के इस एतिहासिक मंदिर तक पहुंचने के लिए भक्त पदैल यात्रा भी करते हैं.

दो दिवसीय शील डूंगरी मेला शुरू

राजस्थान की राजधानी जयपुर से करीब 70 किमी की दूरी पर चाकसू कस्बे में शील डूंगरी पर स्थित है, मां शीतला का 5 सौ साल पुराना मंदिर. शीतलाष्टमी 15 मार्च से एक दिन पहले यानि आज मंगलवार को यहां दो दिवसीय लख्मी मेला शुरू हो गया है. मेले में हजारों की संख्या में लोग पहुंचते हैं. Read More – Sameer Khakhar का निधन, 70 साल की उम्र में हुई मौत …

कल घर-घर बने पकवान, आज लेगा भोग

चैत्र कृष्ण अष्टमी 15 मार्च को लोकपर्व बास्योड़ा मनाया जा रहा है. इस दिन सुबह शीतला माता को ठंडे पकवानों का भोग लगाने के लिए भक्तों की लंबी लाइन लगी है. इस दिन घर-घर ठंडे पकवान ही खाए जाएंगे. बास्योड़ा पर शीलता माता को ठंडा भोजन अर्पित कर चेचक आदि बीमारियों से परिवार को बचाने की प्रार्थना की जाती है.

रांधो-पुआ का पर्व मनाया

एक दिन पहले 14 मार्च को राजस्थान में रांधा-पुआ का पर्व मनाया जा रहा है. इस दिन घर-घर में कई तरह के पकवान बनाए जाते हैं. वही दूसरे दिन शीतलाष्टमी को शीतला माता के ठंडे पकवानों का भोग लगता है. घरों में पुआ-पुड़ी, पकौड़ी, दही, राबड़ी सहित विभिन्न पकवान बनाए है. Read More – मैनेजर को याद आए Satish Kaushik के आखिरी लफ्ज, एक्टर ने कहा था ”मैं मरना नहीं चाहता, मुझे बचा लो” …

माधो सिंह ने करवाया था मंदिर

मंदिर में लगे पुराने शिलालेखों के मुताबिक जयपुर के चाकसू कस्बे में शील डूंगरी माता मंदिर बेहद पुराना है. बताया जाता है कि शीतला के मंदिर का निर्माण जयपुर के महाराजा माधो सिंह ने करवाया था. मंदिर में मौजूद शिलालेखों के मुताबिक मंदिर करीब 500 साल पुराना है. शिलालेख में अंकित प्रमाणों के मुताबिक तत्कालीन जयपुर नरेश माधोसिंह के पुत्र गंगासिंह और गोपाल सिंह को चेचक रोग हो गया था. इसके बाद में वे शीतला माता की कृपा से रोग मुक्त हो गए थे. इस चमत्कार के बाद राजा माधोसिंह ने चाकसू की पड़ाड़ी (डूंगरी) पर मंदिर और बरामदे का निर्माण कराया था. मंदिर में मां शीतला की मूर्ति विराजमान है.

राजपरिवार ही लगाता है पहला भोग

राजपरिवार की ओर से करवाए गए इस मंदिर के निर्माण के बाद उनका यहां गहरा लगाव रहता है. लिहाजा अभी भी शीतलाष्टमी पर माता को सबसे पहले जयपुर राजघराने की ओर से भेजे गए प्रसाद का ही भोग लगाया जाता है. इसके बाद श्रद्धालु अपने घरों से लाए गए बासी पकवानों का भोग लगाकर माता के दरबार में जल का छिड़काव किया जाता है.