बाधाएं आती हैं आएं
घिरें प्रलय की घोर घटाएं,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं,
निज हाथों में हंसते-हंसते,
आग लगाकर जलना होगा.
कदम मिलाकर चलना होगा.

अटल जी की ये कविता उनके व्यक्तित्व पर काफी कुछ प्रकाश डाल देती हैं. आजाद भारत का ऐसा सर्वमान्य नेता जिसका सही मायने में कोई व्यक्तिगत विरोधी नहीं हुआ कम से कम सार्वजनिक तौर पर तो नहीं ही हुआ. अपने बेमिशाल वाक्यपुटता, काव्यात्मक शैली की बेहद ही प्रभावशाली भाषण शैली हर किसीका मन मोहने में कामयाब रही. अटल जी का जिस तरह भाषा पर पकड़ रही है उसी तरह वे विरोधियों को साधने में कामयाब रहे. बिना पूर्ण बहुमत के करीब 25 पार्टियों को साथ लेकर सरकार का कार्यकाल पूरा करना उनकी जादुई व्यक्तित्व से ही संभव हो पाया था.

अटल जी से जुड़े कुछ किस्से

0 1977 में जब वाजपेयी विदेश मंत्री के रूप में अपना कार्यभार संभालने साउथ ब्लॉक के अपने दफ़्तर गए तो उन्होंने नोट किया कि दीवार पर लगा नेहरू का एक चित्र ग़ायब है. उन्होंने तुरंत अपने सचिव से पूछा कि नेहरू का चित्र कहां है, जो यहां लगा रहता था. उनके अधिकारियों ने ये सोचकर उस चित्र को वहां से हटवा दिया था कि इसे देखकर शायद वाजपेयी ख़ुश नहीं होंगे.वाजपेयी ने आदेश दिया कि उस चित्र को वापस लाकर उसी स्थान पर लगाया जाए जहां वह पहले लगा हुआ था.

 

0 एक बार न्यूयॉर्क में प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ वाजपेयी से बात कर रहे थे. थोड़ी देर बाद उन्हें संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करना था. उन्हें चिट भिजवाई गई कि बातचीत ख़त्म करें ताकि वो भाषण देने जा सकें. चिट देखकर नवाज़ शरीफ़ ने वाजपेयी से कहा, “इजाज़त है. फिर उन्होंने अपने को रोका और पूछा आज्ञा है.” वाजपेयी ने हंसते हुए जवाब दिया, “इजाज़त है.”

अटल बिहारी और पीवी नरसिम्हा राव

0 मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर याद करते हैं कि जब वो नेता प्रतिपक्ष थे तो इंदौर से उज्जैन कार से आए मेरे साथ। उज्जैन में कहने लगे कि गोपाल मंदिर ले चलो। तांगे में ले चलो कार में नहीं। कोई देख ना पाए। बंद तांगे होते हैं। कहने लगे भांग का घोंटा तीन ग्लास ले आओ। दो ग्लास मैं पीयूंगा और बादाम किशमिश डाल दो। एक ग्लास तुम पीना। इतना जोरदार भाषण दिया। मस्त आदमी। बहुत बड़े दिल के आदमी। उनसे हंसी मजाक कुछ भी कर सकते थे आप। इतना बड़ा आदमी आज हिन्दुस्तान में कोई नहीं है.

हर हाल में कविता के लिए वक्त

अटलजी ने एक तरफ कई दशकों तक भारतीय सियासत के सबसे सक्रिय नेता रहे, लगातार सभाओँ और बैठकों में व्यस्त रहे बावजूद इसके हमेशा उनमें एक कवि जिंदा रहा मौका पाते ही वे कविता लिखते थे और कवि सम्मेलनों में शिरकत करते थे.   अटलजी की ये कविता कम शब्दों में बहुत कुछ कह जाती है…

धर्मराज ने छोड़ी नहीं
जुए की लत है|
हर पंचायत में
पांचाली
अपमानित है|
बिना कृष्ण के
आज
महाभारत होना है,
कोई राजा बने,
रंक को तो रोना है.