भोपाल। मध्यप्रदेश में जबलपुर हाईकोर्ट की सख्ती के बाद डॉक्टरों ने अपनी अनिश्चितकालीन हड़ताल को खत्म कर दिया है. शासकीय चिकित्सा महासंघ ने सभी डॉक्टरों को काम पर लौटने के निर्देश दिए हैं. लेटर जारी कर कहा है कि हड़ताल खत्म कर तत्काल काम पर वापस लौटे. हाईकोर्ट ने डॉक्टर्स को हड़ताल खत्म करने के निर्देश दिए थे और हड़ताल को गलत बताया था. दरअसल मध्य प्रदेश के सरकारी अस्पतालों के 10 हजार से ज्यादा डॉक्टर अपनी मांगों को लेकर आज से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले गए थे. इन डॉक्टरों ने इमरजेंसी सेवा यहां तक कि पोस्टमॉर्टम भी करना बंद कर दिया है. जिससे स्वास्थ्य व्यवस्था बिगड़ गई है. जिसके चलते शिवराज सरकार को निजी अस्पतालों को निशुल्क इलाज करने के निर्देश देने पड़े.

मंत्रियों ने अस्पतालों का निरीक्षण किया

बुधवार रात 9 बजे चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग हमीदिया अस्पताल गांधी मेडिकल कॉलेज पहुंचे, जहां अस्पताल में व्यवस्थाओं को लेकर निरीक्षण किया. अस्पताल में व्यवस्थाओं को लेकर प्रबंधन और डॉक्टरों के साथ संवाद किया. हमीदिया अस्पताल के डीन और अधीक्षक भी मौजूद रहे. स्वास्थ्य मंत्री प्रभुराम चौधरी ने भी जेपी अस्पताल का निरीक्षण किया. अस्पताल में आए मरीजों से बातचीत की.

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हर हाल में डॉक्टरों की मांगों पर पहल करेंगे- सारंग

चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग का कहना है कि हमने सभी मांगे मान ली है. कुछ ही मांग बची है. वन प्लस थ्री की मांगे मानी है. सभी डॉक्टरों को हाईकोर्ट के निर्णय के बाद काम पर लौटना चाहिए. उनके निर्देश और गरीबों की इलाज के लिए काम पर लौटना चाहिए. हम डॉक्टरों के साथ हैं. हर हाल में डॉक्टरों की मांगों पर पहल करेंगे.

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ये हैं डॉक्टरों की प्रमुख मांगें

  • चिकित्सक महासंघ की सबसे प्रमुख मांग डायनेमिक एश्योर्ड करियर प्रोग्रेसिव स्कीम (डीएसीपी) है. इसके अंतर्गत डॉक्टरों को तय समय पर एक वेतनमान देने की मांग है. प्रदेश में पहली बार स्वास्थ्य, चिकित्सा शिक्षा विभाग के डॉक्टरों के अलावा जूनियर डॉक्टर भी हड़ताल में शामिल हो रहे हैं. इससे सबसे ज्यादा दिक्कत गंभीर रोगियों को होगी.
  • केंद्र एवं अन्य राज्यों की तर्ज पर ही मध्य प्रदेश के चिकित्सकों के लिए डीएसीपी का प्रावधान हो इससे राज्य सरकार पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ भी नहीं आएगा.
  • स्वास्थ्य विभाग, चिकित्सा शिक्षा विभाग एवं बीमा अस्पताल (ईएसआई) की विसंगतियां दूर हों.
  • चिकित्सकीय विभागों में तकनीकी विषयों पर प्रशासनिक अधिकारियों का हस्तक्षेप खत्म किया जाए.
  • राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत कार्यरत संविदा चिकित्सकों (एमबीबीएस) की मप्र लोक सेवा आयोग के माध्यम से की जाने चयन प्रक्रिया में प्राथमिकता दी जाए.

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