Jagannath Rath Yatra 2023: भक्त और भगवान का रिश्ता अटूट आस्था और विश्वास का होता है. भक्त हमेशा अपने भगवान से बड़ा होता है. यही सिद्ध करने के लिए भगवान जगन्नाथ का रथ अपने आप कुछ देर के लिए इस मजार पर रुक जाता है. ऐसा कहा जाता है कि भगवान जगन्नाथ का एक मुस्लिम भक्त था. जिसका नाम था सालबेग. इच्छा होते हुए भी दर्शन के लिए मंदिर में नहीं पहुंच सका. जगन्नाथ जी के उस भक्त की मृत्यु के बाद उसकी मजार बनाई गई. रथ यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ जी का रथ अचानक उस मजार पर रुक गया और कुछ देर के लिए आगे नहीं बढ़ा. उस समय लोगों ने उस भक्त की आत्मा की शांति के लिए भगवान जगन्नाथ से प्रार्थना की. उसके बाद रथ का पहिया आगे बढ़ा. तभी से यह परंपरा है कि हर साल भगवान जगन्नाथ का रथ भक्त सालबेग की मजार पर कुछ देर के लिए रोका जाता है.

हर साल उड़ीसा के पुरी में आयोजित होनेवाली जगन्नाथजी की रथ यात्रा के दौरान देखने को मिलती है. इस रथ यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथजी का रथ एक मुस्लिम की मजार पर रुकता है.

क्या है पूरी कहानी

जानकारी के मुताबिक, यह उस समय की घटना है जब भारत पर मुगलों का शासन था. सालबेग इस्लाम धर्म को मानता था, उसकी माता हिंदू और पिता मुस्लिम थे. सालबेग मुगल सेना में भर्ती हो गया. एक बार उसके माथे पर चोट लगने के कारण बड़ा घाव हो गया. कई हकीमों और वैद्यों से इलाज के बाद भी उसका जख्म ठीक नहीं हो रहा था. ऐसे में उसे मुगल सेना से भी निकाल दिया. परेशान और हताश सालबेग दुखी रहने लगा. तब उसकी माता ने उसे भगवान जगन्नाथजी की भक्ति करने की सलाह दी. सालबेग ने ऐसा ही किया. एक बार सालबेग ने सपना देखा कि जगन्नाथजी खुद उससे मिलने आए हैं और उसे घाव पर लगाने के लिए भभूत (पूजा-हवन के बाद बची हुई राख) देते हैं और सालबेग सपने में ही उस भभूत को अपने माथे पर लगा लेता है. जब सालबेग की नींद खुलती है तब उसे अहसास होता है कि वह तो सपना देख रहा था, लेकिन वह इस बात पर हैरान रह जाता है कि उसके माथे का घाव सचमुच ठीक हो चुका है.

भगवान की जय-जयकार करता हुआ और भावों से भरा हुआ सालबेग तुरंत जगन्नाथजी के मंदिर की तरफ उनके दर्शनों के लिए दौड़ पड़ता है. लेकिन मुस्लिम होने के कारण उसे मंदिर में प्रवेश नहीं मिलता. ऐसे में वह मंदिर के बाहर बैठकर ही भगवान की भक्ति करने लगता है. भगवान की भक्ति करते-करते सालबेग की मृत्यु हो जाती है. मृत्यु के बाद सालबेग की मजार जगन्नाथ मंदिर से गुंडिचा मंदिर के रास्ते में बनाई गई थी. सालबेग की मृत्यु के कुछ महीने बाद जब जगन्नाथजी की रथयात्रा निकली तो सालबेग की मजार के पास से रथ आगे ही नहीं बढ़ा. बस तभी से हर साल मौसी के घर जाते समय जगन्नाथजी का रथ सालबेग की मजार पर कुछ समय के लिए रोका जाता है.

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