रेणु अग्रवाल, धार। मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के धार जिले में कारम बांध (Karam dam) के कई पीड़ितों को एक साल बाद भी मुआवजा नहीं मिला है। खेतों में केवल पत्थर और चट्टानें हैं, मिट्टी बह गई है। जिससे किसान खेती भी नहीं कर पा रहे हैं। उन्हें दूसरों के यहां मजदूरी करने जाना पड़ रहा है। कई लोगों के मकान भी बह गए थे।
दरअसल, जिले के कोठिदा गांव बना कारम बांध पिछले साल देशभर की सुर्खियां बना रहा। 11 अगस्त को कारम डैम की दीवार से रिसाव शुरू हो गया था। फूटने के डर से रातोंरात 18 गांव खाली कराए गए थे। लोग अपनी जान बचाने के लिए ऊंची जगहों पर शरण लिए हुए थे। 14 अगस्त शाम 6 बजे रिसती दीवार के एक हिस्से को काटकर पूरा पानी बहा दिया गया था। इससे लोगों की जिंदगी तो बच गई, लेकिन डैम के पानी के साथ आई बाढ़ में खेत और कई घर भी बह गए। खेतों में केवल पत्थर और चट्टानें हैं। साल भर बीतने के बाद भी कई लोगों को मुआवजा नहीं मिला और जिन्हें मिला उन्हें नाम मात्र का मुआवजा मिला है।
90 हेक्टेयर लोगों की निजी भूमि डूबी
बता दें कि 90 हेक्टेयर लोगों की निजी भूमि डूबी है। वहीं 75 हेक्टेयर सरकारी जमीन डूबी है। बांध निर्माण का काम एएनएस कंपनी को दिया था। बांध की लागत लगभग 300 करोड़ के करीब है। इस बांध को बनाने में 100 करोड रुपए से ज्यादा खर्च हो गए हैं। कंपनी ने जरूरत से ज्यादा पैसा ले लिया, लेकिन काम उतना नहीं किया।
धार कलेक्टर प्रियंक मिश्रा ने कहा कि बांध का पुनर्निर्माण होना है। हमारे सिंचाई विभाग के इंजीनियर देख रहे हैं, जब भी काम चालू करवाया जाएगा तब निर्माण के समय जो भी सेफ्टी कार्य होंगे उसे पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। वहीं बांध से जो लोग प्रभावित है उनमें से कुछ लोगों के मुआवजे के प्रकरण हमें बनाना है। मैं खुद इसकी मॉनीटरिंग कर रहा हूं। कुछ पट्टाधारी आ रहे हैं, कुछ ऐसे मकान के लोग क्लेम कर रहे हैं जिनके नाम सर्वे में छूट गए हैं। दोनों प्रकरण में हमारी जांच पूरी हो चुकी है। उसकी रिपोर्ट हम शासन को भेजेंगे। इसमें यदि हमारे पात्र लोग निकालते हैं तो उनके मुआवजे की व्यवस्था करवाएंगे, जो सरकार की नीति के हिसाब से बांटे जाएंगे।
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