कुमार इंदर,जबलपुर। पूर्व बिशप पीसी सिंह द्वारा मिशनरी की जमीन पर अवैध तरीके से किए गए कब्जे को आज से खाली कराने का काम शुरू हो चुका है. इसी कड़ी में आज जिला प्रशासन की टीम ने सद्भावना भवन को अपने कब्जे में लेकर उसे सील कर दिया है. इसी तरह की कार्रवाई विकास आशा केंद्र, भारतीय खाद निगम और इंडियन ओवरसीज बैंक पर भी होना है.

प्रशासन का कहना है कि इन तीनों केंद्रों ने हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल कर खाली करने के लिए वक्त मांगा है. लिहाजा प्रशासन की तरफ से अभी इन्हें खाली नहीं कराया जा रहा है. वहीं प्रशासन की तरफ से सद्भावना भवन को सील करने की कार्रवाई के दौरान ईसाई समाज के काफी लोग जमा हुए थे. लोगों का कहना है कि किसी एक शख्स की गलती का खामियाजा सारे लोगों को भुगतना पड़ रहा है. ईसाई समाज के लोगों ने कहा कि प्रशासन से निवेदन करते हैं कि पेनाल्टी सहित जो भी पैसा है. वह देने के लिए तैयार है. लिहाजा प्रशासन उन स्थानों पर कब्जा करने की कार्रवाई को बंद कर उनकी लीज रिन्यू करने का काम करे.

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एक हफ्ते पहले दिया गया था नोटिस

प्रशासन की टीम ने मिशनरी की जमीन पर चल रहे व्यवसायिक गतिविधियों को खाली करने के लिए 1 सप्ताह पहले नोटिस दिया था. प्रशासन ने अपने नोटिस में साफ चेतावनी दी थी कि यदि 1 सप्ताह के अंदर लोग इन व्यवसायिक संस्थानों को खाली नहीं कराते करते हैं, तो उन पर प्रशासन की ओर से कार्रवाई कर कब्जा किया जाएगा.

क्या है पूरा मामला ?

दरअसल कई साल पहले शासन की ओर से मिशनरी समाज को स्कूल और चर्च के संचालन के लिए 1 लाख 70 हजार वर्ग फीट जमीन आवंटन की गई थी. जिसकी लीज साल 1999 में ही खत्म हो गई थी. तब से ना तो कोई जमीन की लीज रिन्यू कराई गई बल्कि स्कूल और चर्च के नाम पर मिली इस जमीन पर व्यवसायिक गतिविधि चलाई जा रही थी. जिसको पिछले दिनों शासन ने अपने कब्जे में लेते हुए इसे खाली कराने का नोटिस जारी किया था.

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एक अरब 36 करोड़ की है यह जमीन

मिशनरी संस्थान को मिली इस जमीन की कीमत एक करोड़ एक अरब 36 करोड़ 26 लाख रुपए से ज्यादा की है. जिस पर पूर्व बिशप पीसी सिंह ने अवैध तरीके से व्यवसायिक गतिविधि चला रहा रखी थी. जिसका पैसा सीधे पीसी सिंह के खाते में पहुंचता था. यही नहीं पूर्व बिशप पीसी सिंह ने मिश्रनरी की जमीन पर प्लाटिंग भी कर दी थी. जिसमें कई सारे लोग अवैध तरीके से मकान बनाकर रह रहे हैं. उन्हें भी प्रशासन ने खाली कराने की चेतावनी जारी की है.

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