ऑपरेशन सिंदूर के समय भारत-पाकिस्तान युद्ध में पाकिस्तान को तुर्की ने सैन्य समर्थन दिया था। इसके बाद से ही तुर्की के खिलाफ भारत में विरोध चरम पर है। भारी संख्या में तुर्की की यात्रा पर जाने वाले भारतीयों ने अपनी बुकिंग्स कैंसल कर दी हैं। देश भर के कई बड़े व्यापारियों ने भी अपने व्यापारिक रिश्तों को तुर्की से ख़त्म करने का ऐलान कर दिया है। इसी बीच JNU के बाद अब दिल्ली स्थित जामिया मिल्लिया इस्लामिया ने भी तुर्की सरकार के साथ हुए किसी भी तरह के समझौते को फिलहाल निलंबित करने की घोषणा की है।

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विश्वविद्यालय ने जारी किया अधिकारिक बयान

विश्वविद्यालय ने अधिकारिक बयान जारी करते हुए यह फैसला राष्ट्रीय सुरक्षा को देखते हुए तत्काल रूप से लिया जा रहा है। एक्स पर पोस्ट करते हुए लिखा, “राष्ट्रीय सुरक्षा कारणों से, जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नई दिल्ली और तुर्की गणराज्य की सरकार से संबद्ध किसी भी संस्थान के बीच किसी भी समझौता ज्ञापन (MoU) को तत्काल प्रभाव से अगले आदेश तक निलंबित कर दिया गया है। जामिया मिल्लिया इस्लामिया राष्ट्र के साथ मजबूती से खड़ा है।”

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JNU पहले ही तोड़ चुका है समझौते

बता दें कि जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) ने पहले ही सार्वजनिक तौर पर राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी चिंताओं के चलते तुर्की के इनोनू (Inonu) विश्वविद्यालय के साथ अपने अकादमिक सहयोग को स्थगित कर दिया है। यह फैसला दोनों संस्थानों के बीच हुए समझौता ज्ञापन (MoU) की दोबारा समीक्षा के बाद लिया गया। जेएनयू के कुलपति शांतिश्री धुलिपुरी पंडित ने कहा कि ‘हमने इनोनू विश्वविद्यालय के साथ अपने समझौते को तोड़ दिया है, समझौते के लिए छह महीने पहले नोटिस देना जरूरी है, जिसकी शुरुआत हो चुकी है। ऑपरेशन सिंदूर के मद्देनजर हम अपने सशस्त्र बलों के साथ खड़े हैं।’

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दिल्ली यूनिवर्सिटी ने की MOU की समीक्षा

दिल्ली यूनिवर्सिटी ने भी कड़ा एक्शन लेते हुए तुर्किए के शिक्षण संस्थानों के साथ सभी MOU की समीक्षा की है। बताया जा रहा है कि एक बार समीक्षा होने के बाद डीयू की ओर से कोई फैसला लिया जाएगा।

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कानपुर यूनिवर्सिटी ने भी रद्द किए MOU

भारत में तुर्की के खिलाफ बढ़ते विरोध के बीच कानपुर विश्वविद्यालय ने भी तुर्की के इस्तांबुल विश्वविद्यालय के साथ साइन किया गया एमओयू रद्द कर दिया है। दरअसल, सीएसजेएमयू के कुलपति विनय पाठक ने इस्तांबुल विश्वविद्यालय को पत्र लिखा है। इस लेटर में लिखा गया है कि यह फैसला तुर्की की ओर से एक ऐसे राष्ट्र के समर्थन के बाद लिया गया है, जो भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के लिए खुले तौर पर शत्रुतापूर्ण है। हमारा विश्वास है कि पाकिस्तान के रणनीतिक सहयोगी के साथ सीधे या मौन रूप से जुड़े किसी संस्थान को विश्वसनीय अकादमिक सहयोगी के रूप में नहीं माना जा सकता है।

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