सत्यपाल राजपूत, रायपुर। दिल्ली में देशभर के किसानों के आंदोलन को लेकर कृषि मंत्री ने बड़ा बयान दिया है. मंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार किसानों को पूंजीपतियों और कॉरपोरेट के गुलाम बनाने की साजिश कर रही है. कानून वापस नहीं होने पर ईस्ट इंडिया कंपनी की कानून फिर याद दिलाएगी. किसानों के साथ लगातार बातचीत बेअसर साबित हुई है. केंद्र सरकार कानून खत्म करना नहीं चाहती. किसानों के आंदोलन को लेकर कृषि मंत्री ने कई महत्वपूर्ण बातें कही है, जो इस प्रकार-
तीनों कृषि कानून का क्यों हो रहा विरोध? प्रदेश के कृषि मंत्री रवि चौबे ने कहा कि केंद्र सरकार ने तीन कृषि क़ानून बनाया है. इन तीनों क़ानून में एक पक्ष हमारा किसान है दूसरा पक्षकार केवल और केवल पूंजीपति है. पहले क़ानून में पूंजीपतियों को कॉन्ट्रेक्ट किसानी करने का अधिकार दिया है. दूसरे क़ानून में पूंजीपतियों को स्टॉक लिमिट कर जमाखोरी करने का भी इजाज़त दिया और तीसरे क़ानून में पूंजीपतियों को प्राइवेट मंडी खोलने की इजाज़त दिया. ऐसे में किसान जाएगा कहा. किसानों को खिलौना बना दिया जाएगा. इसी के लिए किसान आंदोलित है. दिल्ली में बैठे हुए अब तो पूरा हिन्दुस्तान में आंदोलन फैलता ही जा रहा है.
किसान आंदोलन को प्रदेश सरकार ने क्यों दिया खुलकर समर्थन ? क्या चाहते हैं किसान ?
किसान आंदोलन को समर्थन देते हुए मंत्री ने कहा कि हमें लगता है कि केंद्र सरकार को तीनों क़ानून को वापस लेना चाहिए. साथ ही कहा कि छत्तीसगढ़ और केंद्र में चल रहे आंदोलन दोनों में थोड़ी भिन्नता है किसान मिनिमन प्राइस सपोर्ट की गारंटी चाहते हैं मिनिमम सपोर्ट प्राइस में सिर्फ़ पंजाब और हरियाणा में ख़रीदी होती है, प्राइवेट सेक्टर को प्राइवेट मंडी खोलने का अधिकार दे दिया है. इससे मिनिमम सपोर्ट प्राइस मिलने का भी संशय है, इसलिए किसान आंदोलन की तरफ़ बढ़ रह़े हैं. छत्तीसगढ़ में मिनिमम सपोर्ट प्राइस से ज़्यादा राशि दे रहे हैं, इसलिए छत्तीसगढ़ के किसानों के सामने ये संकट नहीं है अन्य राज्य के किसान इस संकट से भी जूझ रहे हैं.
छत्तीसगढ़ में केंद्र के तीनों कृषि कानून क्या रहेगा प्रभाव ?
इस आंदोलन का सिर्फ छत्तीसगढ़ के किसान समर्थन नहीं करते बल्कि हम और हमारी सरकार भी इसका समर्थन करते हैं इसलिए हमने एक दिन का विशेष सत्र बुलाकर केंद्र के क़ानून को निष्प्रभाव करके क़ानून भी बनाया है. हमने अपने मंडी एक्ट में संशोधन भी किया है कि ये किसानों के हितों को लेकर छत्तीसगढ़ की सरकार उनके साथ खड़ी है.
किसान आंदोलन के दस दिन बाद भी क्यों नहीं हो रही सुनवाई ?
मंत्री रविंद्र चौबे ने कहा कि ऐसे नहीं की बातचीत नहीं हो रही है, केंद्रीय कृषि मंत्री से किसानों का चर्चा लगातार हो रही है उनकी बाध्यता है कि वो क़ानून समाप्त नहीं करना चाहते और किसान ये क़ानून को समाप्त करना चाहते हैं. रास्ता तो निकालना पड़ेगा और हम अभी भी मांग करते हैं कि केंद्र सरकार हठ धर्मिता छोड़कर अपने तीनों क़ानून वापस लेना चाहिए.
पूर्व सीएम डॉ रमन सिंह के ट्वीट पर कृषि मंत्री का क्या है राय ?
डॉक्टर रमन सिंह राजनीति में अप्रासंगिक हो चुके हैं. अपने कार्यकाल में किसानों को स्वयं ने धोखा दिया है. पहली बार 270 देने का वादा, दूसरी बार तीन सौ रूपए बोनस की गारंटी और तीसरी बार इक्कीस सौ रुपये में धान ख़रीदी करने का वादा ऐसे करके तीनों बार डॉक्टर रमन सिंह ने छत्तीसगढ़ के किसानों को धोखा दिया है. उन्होंने किसानों का अहित किया है. इसलिए डॉक्टर रमन सिंह को अब किसानों के बारे में बोलने के लिए नैतिक अधिकार लगभग अब समाप्त हो चुका है. कृषि कानून वापस नहीं लिया गया तब क्या होगा ?देश के किसानों के लिए ये तीनों क़ानून ईस्ट इंडिया कंपनी की याद दिलाएगी. किसानों को कॉर्पोरेट हाउस और पूंजीपतियों का ग़ुलाम बना देगी और बनाने की साज़िश हो रही है लेकिन छत्तीसगढ़ में अब ये क़ानून लागू नहीं होने देंगे.