रायपुर. संसदीय सचिव मामले में याचिकाकर्ता पूर्व मंत्री मोहम्मद अकबर ने कहा कि संसदीय सचिव मामले की याचिका को हाईकोर्ट ने निराकृत किया, न कि मामले को खारिज किया गया है. उन्होंने कोर्ट ने अंतरिम आदेश की पुष्टि है. अकबर ने कहा कि कोर्ट ने संसदीय सचिव के पावर पर पहले ही रोक लगा रखा है. आगे भी संसदीय सचिवों को मिलने वाली सभी सुविधाओं पर रोक लगी रहेगी. अब ये संसदीय सचिव मंत्री के रूप में कार्य नहीं कर पाएंगे, साथ ही कोर्ट ने सदस्यता समाप्ति के मामले पर कहा कि सुप्रीम कोर्ट का निर्णय अलग परिस्थितयों में था और यहां की परिस्थितियां अलग है.

अकबर ने सीएम रमन को नसीहत देते हुए कहा कि मुख्यमंत्री को कोर्ट के फैसले की सही जानकारी नहीं है, उन्हें पहले पूरी जानकारी ले लेनी चाहिए फिर बयान देना चाहिए. उन्होंने कहा कि सीएम कहते हैं कि विपक्ष के पास काम नहीं है, वो बहुत काम कर रहे हैं इएलिये लोक सुराज में 27 लाख आवेदन आ गए. वहीं धरम लाल कौशिक के बयान पर जवाब देते हुए कहा कि विपक्ष सकारात्मक राजनीति कर रहा है, इसलिए कोर्ट का फैसला आया है. कौशिक जी को पहले फैसले की पूरी जानकारी ले लेनी चाहिए. उसके बाद बयान जारी करना चाहिए. कोर्ट ने सरकार को राहत नहीं दी, बल्कि संसदीय सचिवों की सभी सुविधाओं पर रोक लगाई है.

सरकार ने प्रदेश में 11 संसदीय सचिवों की नियुक्ति की थी. कोर्ट के फैसले के बाद संसदीय सचिव बहाल रहेंगे इस मामले को लेकर कांग्रेस नेता मोहम्मद अकबर और आरटीआई एक्टिविस्ट राकेश चौबे ने याचिकाएं लगाई थीं. गौरतलब है कि बिलासपुर हाईकोर्ट ने अपने फैसले में संसदीय सचिवों की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका पर हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस राधाकृष्णन और जस्टिस शरद गुप्ता की खंडपीठ ने आज फैसला सुनाया है. कोर्ट ने कहा कि संसदीय सचिव बतौर मंत्री कार्य नहीं कर पाएंगे.

ये हैं संसदीय सचिव

राजू सिंह क्षत्रिय, तोखन साहू, अंबेश जांगड़े, लखन लाल देवांगन, मोतीलाल चंद्रवंशी, लाभचंद बाफना, रूपकुमारी चौधरी, शिवशंकर पैकरा, सुनीति राठिया, चंपा देवी पावले और गोवर्धन सिंह मांझी संसदीय सचिव है.