Amravati Amareshwar Shiv Temple : तेलुगु देशम पार्टी (TDP) के प्रमुख चंद्रबाबू नायडू ने बुधवार को अपने शपथ ग्रहण से पहले मंगलवार को बड़ा ऐलान किया. उन्होंने अमरावती को आंध्र प्रदेश की राजधानी बनाने की घोषणा करते हुए पिछले कई सालों की बहस खत्म कर दी. उन्होंने अमरावती को एकमात्र राजधानी बनाने की बात कही है.

अमरावती को ‘पीपुल्स कैपिटल’ नाम मिला है और इसका डिजाइन सिंगापुर की तर्ज पर तैयार हुआ है. आपको बता दें कि अमरावती का सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से काफी महत्व है. इस प्राचीन शहर को स्वयंभू शिवलिंग वाले मशहूर अमरेश्वर मंदिर से अमरावती नाम मिला.

मंदिर से मिला अमरावती नाम (Amravati Amareshwar Shiv Temple)

अमरावती क्षेत्र में सातवाहन वंश ने हिंदू धर्म को बढ़ावा दिया था. उन्होंने यहां अमरेश्वर मंदिर बनाया, जिसके आधार पर पहली बार शहर को अमरावती नाम मिला. यह शहर प्राचीन और मध्यकाल में तेलुगू साम्राज्य का केंद्र रहा है. ईसा पूर्व दूसरी सदी से लेकर 16वीं शताब्दी तक यह सातवाहन वंश, इक्ष्वाकू, चालुक्य, तेलुगू चोल, पल्लव, काकातिया और रेड्डी राजाओं के शासन में रहा. 16वीं सदी के मध्य तक यह कर्नाटक के विजयनगर साम्राज्य का हिस्सा रहा था.

अमरेश्वर मंदिर

अमरावती में कृष्णा नदी के तट पर बना अमरेश्वर मंदिर शिव भक्तों के बीच अपनी खास पहचान रखता है. इस खास मंदिर के बारे में मान्यता है कि नदी के तट पर 32 फीट का शिवलिंग अपने आप जमीन से निकला है. धीरे-धीरे ये स्वयंभू शिवलिंग जमीन से 9 फीट ऊपर तक दिखाई देने लगा है और इसका बाकी हिस्सा जमीन के अंदर ही है. इसके बाद यहां मंदिर बनवाया गया और आजकल शिव भक्तों की काफी भीड़ अमरेश्वर मंदिर में जुटती है. परंपरा के मुताबिक पास स्थित कृष्णा नदी में स्नान करके ही इस मंदिर में जाना चाहिए.

क्या है अमरावती का इतिहास

सातवाहन वंश के शासन के पहले अमरावती बौद्ध धर्म का केंद्र था. यहां सम्राट अशोक के समय (269 से 232 ईसा पूर्व) बने स्तूप और बौद्ध मठ के अवशेष मौजूद हैं. इसके बाद आए राजवंशों ने यहां जैन धर्म को खूब बढ़ावा दिया और शहर का नाम श्रीधन्यकातक हो गया. इसका मतलब है ‘सहनशीलता का नगर’. 18वीं शताब्दी में वासीरेड्डी वंश के आखिरी राजा वैंकटाद्री नायडू ने शहर को अमरावती नाम दिया था. बाद में 1750 में अमरावती को फ्रांस को दिया गया. फिर 1759 में यह अंग्रेजों के मद्रास प्रेसिडेंसी के अधीन हो गया.