फेक न्यूज़ का ज़हर नेहरूजी पर बेअसर था. उस ज़माने में, उस समय के तौर-तरीकों से नेहरूजी पर भी फेक न्यूज़ के तीर चलते. उनके खिलाफ योजनाबद्ध झूठा प्रचार होता. नेहरूजी आज होते तो वो भी राहुल, प्रियंका, सोनिया गाँधी की तरह दुष्प्रचार और मनगढंत बातों से छलनी किये जाते.

आज नेहरूजी अपने बचाव के लिए नहीं हैं पर आज भी सर्वाधिक फेक न्यूज़ और घृणित हमलों के शिकार हैं. नेहरूजी के खिलाफ प्रचार कुछ सालों से बढ़ा पर पहले भी बल्कि शुरू से दक्षिणपंथी लोगों की आँखों के कांटे बने रहे. समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और साम्प्रदायिकता के खिलाफ कड़े तेवर रखने वाले नेहरू भला कैसे बच सकते थे?

दरअसल , बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी में नेहरूजी ने कुलपति मदन मोहन मालवीय के आमंत्रण पर व्याख्यान दिया. उन्होंने अपना व्याख्यान साम्प्रदायिकता के खिलाफ रखा. नेहरूजी ने अपने भाषण में कुछ समय पहले डाक से मिले एक प्रस्ताव का ज़िक्र किया. यही विवाद का मुद्दा बना क्योंकि उन्हें भेजे गए प्रस्ताव के नक़ल की कॉपी फर्जी थी. ऐसा कोई प्रस्ताव वास्तव में था ही नहीं.

नेहरूजी ने अपनी आत्मकथा में लिखा है -“एक और मूर्खतापूर्ण भूल के लिए मुझे खेद है, जिसका मैं शिकार हो गया था. किसी ने डाक से हमें एक ऐसे प्रस्ताव की नक़ल भेजी, जो अजमेर में हिन्दू युवकों की एक सभा में पास हुआ बतलाया गया था. यह प्रस्ताव बहुत आपत्तिजनक था, जिसका मैंने अपने बनारस के भाषण में ज़िक्र किया था.

असल में ऐसा प्रस्ताव किसी संस्था के द्वारा पास नहीं हुआ था और हमें चकमा ही दिया गया था.” नेहरूजी का यही भाषण जब छपा तो बहुत हंगामा हुआ. उन पर निजी हमले हुए.

नेहरूजी ने लिखा है कि व्यक्तिगत हमले बढ़ते गए और विषय से संबंधित बिल्कुल न थे. इसके बाद नेहरूजी ने इसे चुनौती के तौर पर लेते हुए साम्प्रदायिकता पर तर्कपूर्ण लेख लिखे जो उस दौरान अख़बारों में खूब प्रसिद्ध हुए और हिन्दू -मुसलमान दोनों सम्प्रदायवादी निरुत्तर रह गए.

इस पूरे प्रकरण और विषय पर उन्होंने लिखा था ”ये एक बर्र का छत्ता था और हालाँकि मुझे बर्र के छत्ते में हाथ डालने की आदत है…” तो इस तरह नेहरूजी एक फर्जी प्रस्ताव, ख़बर के शिकार होकर फंसे पर पूरी हिम्मत, तर्क और विद्वता से जवाब देकर मुकाबला किया.

नेहरूजी जब फूलपुर से चुनाव लड़ रहे थे, तो उनके सामने लोहिया मैदान में थे. एक निर्दलीय भी अवतरित हुए. नाम था चिरऊ महाराज, जिन पर हरिशंकर परसाई ने विस्तार से लिखा है. चिरऊ महाराज दूध बेचते थे, बड़े ईमानदार और सेवा भावी थे.

चिरऊ महाराज पांच कनस्तर दूध बेचते और छठा कनस्तर गरीब बच्चों को मुफ़्त पिलाते. ये नेहरूजी के खिलाफ चुनाव लड़ने पहुंचे. इन्हे लोहियाजी ने बुलाया `और पूछा जवाहर लाल से क्या शिकायत है तो चिरऊ महाराज ने कहा वो गोहत्या बंद करवा दें तो नहीं लड़ेंगे, साथ ही लोहिया जी से कहा आप बैठ जाइये हम नेहरूजी से चुनाव जीत जायेंगे. लोहिया जी हँसने लगे और उन्हें दूध पिलाया.

वहीं कुछ लोगों को लगा चिरऊ महाराज बौड़म किस्म के हैं. उन लोगों ने चिरऊ महाराज के द्वारा नेहरूजी की चरित्र हत्या की कोशिश की. उन लोगों ने चिरऊ महाराज को उकसाया और नेहरूजी के चरित्र हनन की दृष्टि से चिरऊ महाराज से कहा वो पोस्टर तैयार कर देंगे बस चिरऊ महाराज तैयार हो जाएँ.

चिरऊ महाराज ने इस झूठ और नेहरूजी के चरित्र हनन को लेकर उन्हें फटकारते हुए अपने देशी लहज़े में उन्हें उतारा और बोले ‘ क्या बौड़म समझा है हमें ‘ इसके बाद उलटे उन्ही पर ऊँगली उठाई जो नेहरूजी के चरित्र पर हमला करना चाहते थे… चिरऊ महाराज के तेवर देखकर वो भाग खड़े हुए..

चिरऊ महाराज ने नेहरूजी के खिलाफ चुनाव लड़ा, उन्हें दस हज़ार वोट भी मिले… हार गए पर नेहरूजी के खिलाफ फैलाई जा रही फ़र्ज़ी, झूठी बातों का विरोध किया. तो उस दौर में नेहरूजी के खिलाफ जब मौका मिलता ऐसे लोग थे जो झूठ प्रसारित करते पर वो नेहरूजी थे जिन्हे बर्र के छत्ते में हाथ डालने की आदत थी.

…लड़ते थे और सम्मान ऐसा कि उनके प्रतिद्वंदी भी उनके खिलाफ किये जा रहे मिथ्या प्रचार, झूठ या फेक न्यूज़ को स्वीकार नहीं करते.