रायपुर। हरेली पर्व सभी छत्तीसगढ़ियों का त्यौहार है. हमारे किसान भाइयों का त्योहार है. हम सभी यह बात को जानते है कि हमारा छत्तीसगढ़ राज्य कृषि आधारित राज्य है. हमारी सभी उपलब्धियां और विकास कृषि पर निर्भर है. इसलिए हमारे बड़े-बुर्जुग इस त्योहार को बड़े ही उत्साह और खुशी के साथ मनाते थे. हमारे छत्तीसगढ़िया किसानी वार्षिक कलेण्डर के हिसाब से हरेली वर्ष का सबसे बड़ा और पहला त्योहार है. हरेली से शुरू होकर हमारे तीज-त्योहार सालभर चलते हैं और फागुन में होली का त्योहार साल का हमारा आखिरी त्योहार होता है.

संदीप अखिल, स्टेट न्यूज़ कार्डिनेटर, लल्लूराम डॉट कॉम

प्रदेश सरकार बधाई के पात्र है. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की पहल स्तुत्य है. छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद पहली बार ऐसी सरकार बनी है, जो छत्तीसगढ़ के लिए, यहां के किसानों के लिए, अपने लोक-संस्कृति के लिए, अपनी लोक-परम्पराओं के लिए समर्पित होकर पूरे ईमानदारी के साथ काम कर रही है. छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद 19 वर्षों में पहली बार हमारे हरेली त्यौहार को मौजूदा सरकार ने महत्व दिया. हरेली तिहार में राज्य सरकार एक दिन की सरकारी छुट्टी दे रही है. मुख्यमंत्री के इस सोच के पीछे छत्तीसगढ़ के प्रति उनके सम्मान का भाव प्रदर्शित हुआ है.

वस्तुतः वर्तमान सरकार छत्तीसगढ़ियों की सरकार है. किसानों की सरकार है. आदिवासी वनवासियों की सरकार है. हमारे पिछड़ा वर्ग के लोगों की सरकार है. छोटे-बड़ों को साथ लेकर चलने वाली सरकार है. हरेली त्यौहार में सरकारी छुट्टी घोषित करना सरकार की भावना को बताती है कि यह सरकार अपने संस्कृति, अपने लोक-परम्परा, अपने खान-पान, अपने रीति-रिवाज, अपने तीज-त्यौहार के सम्मान करने वाली सरकार है. हरेली त्यौहार में छुट्टी घोषित होने से पूरा देश में एक संदेश गया कि अब छत्तीसगढ़ियों का स्वाभिमान जाग गया है. हम दूसरों का सम्मान करना, अपना धर्म मानते है, पर इसके साथ ही हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि अपनों का अपमान भी हमसे न हो, हम अपने रीति-रिवाज, अपने तीज-त्यौहार का सम्मान करें. यही आज की सबसे बड़ी जरूरत है.

हरेली त्यौहार किसानों के खुशिहाली का प्रतीक है. आज के दिन किसान अपने हल और खेती किसानी के सभी समानों को साफ करके उसकी पूजा करते हैं. इससे तो एक बात तो प्रमाणित होती है कि हमारी कृषि, हमारी सबसे बड़ी पूजा है. हरेली के दिन हम अपने पशुओं को तालाब, नदी में नहला धुला के अपने घर लाते हैं फिर उसकी पूजा करते हैं. बाद में उनको लौंदा खिचड़ी बना के खिलाते हैं. ऐसे करने के पीछे हमारी ये भावना होती है कि त्यौहार में किसान केवल अपने लिये ही पकवान नहीं बनाते, बल्कि पशुओं के लिए भी पकवान बनाते हैं.

आज भी हमारे गांव में एक यह भी परंपरा है कि हरेली के दिन गाय के कोठा में कंडा से अर्जुन के ग्यारह नाम लिखते हैं. इसके पीछे मान्यता यह है कि ऐसे करने से जानवरों को बरसाती बीमारी नहीं होती है. साथ ही यह भावना इस बात का भी संदेश देती है कि छत्तीसगढ़ियां किसान अपने खान-पान और स्वास्थ्य के लिए जितना गंभीर रहते हैं. उससे भी ज्यादा अपने पशुधन के रक्षा के लिए भी गंभीर रहते हैं.

ये बड़ी खुशी की बात है कि राज्य सरकार की महत्वाकांक्षी योजना ‘‘गो-धन न्याय योजना‘‘ लागू हुई है. जिसके तहत सरकार निर्धारित दाम पर गोबर की खरीदी करेगी. ये योजना के लागू होने से राज्य के किसान भाई-बहन को गो-पालन में आर्थिक लाभ मिलेगा. साथ ही गांव में रोजगार के अवसर भी बढ़ेगा और किसान को अतिरिक्त आय भी होगी. ‘‘गो-धन न्याय योजना‘‘ के लागू होने से जहां एक ओर हमारा पर्यावरण संरक्षित होगा. वहीं दूसरी ओर आवारा घुमने वाले गाय व अन्य पशुओं के संख्या में भी कमी आएगी. राज्य सरकार जैविक खाद के मार्केटिंग की व्यवस्था भी करेगी. कुल मिलाकर इस योजना से हमारे छत्तीसगढ़ राज्य में किसान भाई-बहनों को पूरा लाभ मिलेगा.

हम सब मिलजूल कर अपनी बेहतरी के लिए आगे बढ़े. हमारे छत्तीसगढ़ की एक परम्परा यह भी है कि इस दिन अपने घर के दरवाजे में नीम की डंगाल लगायी जाती है. हमारी इस परम्परा का वैज्ञानिक आधार यह है कि वर्षा ऋतु आरंभ होते ही वातावरण में विषाणु, जीवाणु और कीटाणुओं का प्रकोप बढ़ जाता है. नीम की पत्तियों में बहुत से औषधी गुण हैं और यह पत्तियां रोगाणुाओं के प्रभाव को कम करती है. पुराने समय में जब कीटानाशकों का अविष्कार नहीं हुआ था. उस दौर में रोगाणुओं से लड़ने के लिए हमारे पूर्वजों की एक कारगर विधि इस परम्परा से जुड़ी हुई है.

हरेली के दिन किसान अपने घर की दिवारों में गोबर से स्वास्तिक और साखिया का निशान बनाते है. इस परम्परा के पीछे भी कुशलता और खुशहाली का भाव छुपा हुआ है. बच्चों के लिए गेड़ियां बनायी जाती है. बांस से बनने वाली गेड़ियां बच्चों के लिए एक रोचक खेल भी होती हैं. यह हमारी लोकसंस्कृति का एक महत्वपूर्ण उदाहरण भी है. आज के दिन हम सब छत्तीसगढ़वासियों का यह कर्तव्य होता है कि हम अपने लोकसंस्कृति के संरक्षण के लिए सदैव तत्पर बनें रहें.

जय छत्तीसगढ़

लेखक- संदीप अखिल (स्टेट हेड न्यूज़ कार्डिनेटर लल्लूराम डॉट कॉम)