चंडीगढ़। पंजाब में 2017 के विधानसभा चुनावों में करारी हार के बाद अपने ‘डूबते जहाज’ को बचाने के लिए लड़ रहे सदियों पुराने क्षेत्रीय राजनीतिक संगठन शिरोमणि अकाली दल (शिअद) बड़े पैमाने पर करिश्माई प्रकाश पर निर्भर थे. 94 वर्षीय प्रकाश सिंह बादल, जिनके पैर 2019 में वाराणसी लोकसभा क्षेत्र के लिए नामांकन पत्र दाखिल करने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने छुए थे, लेकिन वे पंजाब में इस बार अपनी सीट भी बरकरार नहीं रख सके, जो उन्होंने लगातार पांच बार जीती थी.

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साथ ही अकाली दल पहली बार भाजपा से नाता तोड़कर परीक्षा दे रहा था, जिसके साथ उसने 1997 में राज्य के चुनावों के दौरान हाथ मिलाया था और 23 वर्षों तक उसका सबसे पुराना सहयोगी बना रहा. शिरोमणि अकाली दल के मुखिया बादल, एनडीए के संस्थापक सदस्य, जिन्होंने अलग होने से पहले हमेशा संबंधों को ‘नौ-मास दा रिश्ता’ कहा था, 117 सदस्यीय पंजाब के लिए मैदान में 94 साल के सबसे बड़े उम्मीदवार थे. इस विधानसभा चुनाव में प्रकाश सिंह बादल, उनके बेटे सुखबीर सिंह बादल, सुखबीर के बहनोई बिक्रम सिंह मजीठिया समेत उनके परिवार के 4 सदस्य हार गए.

प्रकाश सिंह बादल गुरमीत खुददियन से हारे चुनाव

1997 के बाद से लगातार पांच बार सीट जीतने वाले सबसे बड़े बादल लंबी से गुरमीत खुददियन से 11,357 मतों से हार गए, जबकि उनके बेटे और शिअद प्रमुख और सांसद सुखबीर बादल को जलालाबाद में अपमानजनक हार का सामना करना पड़ा. उनके दामाद आदेश प्रताप सिंह कैरों को तरनतारन जिले के पट्टी में आप के लालजीत सिंह भुल्लर ने हराया. प्रकाश सिंह बादल ने अपने गढ़ मुक्तसर जिले के लंबी से लगातार छठी बार नामांकन दाखिल किया था. इसी के साथ वह राज्य के सबसे उम्रदराज उम्मीदवार थे. यह उनका 13वां विधानसभा चुनाव था.

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सुखबीर सिंह बादल को मिली करारी हार

फिरोजपुर लोकसभा सदस्य उनके बेटे सुखबीर सिंह बादल चौथी बार अपने गढ़ जलालाबाद से चुनाव लड़ रहे थे. अपना नामांकन पत्र दाखिल करने के बाद प्रकाश सिंह बादल ने कहा था कि मैं लम्बी के लोगों के साथ अपने रिश्ते को जारी रख रहा हूं, जो मेरे साथ मोटे और पतले रहे हैं. मैं हमेशा निर्वाचन क्षेत्र को पोषण देने के लिए भी प्रतिबद्ध हूं. उन्होंने कहा कि उन्हें विधायकों पर पूरा भरोसा है. बादल ने कहा कि लोगों ने मेरे अभियान को अपना अभियान बना लिया है और मुझे बताया है कि वे प्रचंड बहुमत से मेरी जीत सुनिश्चित करेंगे.

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दिसंबर 1920 में शिरोमणि अकाली दल की हुई थी स्थापना

बादल की पार्टी, जो उनसे सिर्फ 6 साल बड़ी है, 14 दिसंबर 1920 को ब्रिटिश सरकार द्वारा नियुक्त महंतों (पुजारियों) के नियंत्रण से गुरुद्वारों को मुक्त करने के लिए अस्तित्व में आई. अकाली दल जिसने आजादी से पहले कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था, सिखों के हितों की रक्षा के लिए अपनी मूल ‘पंथिक’ विचारधारा पर चल रहा है.