पुरुषोत्तम पात्र, गरियाबन्द। गरीब परिवारों को जरूरत के वक्त स्वास्थ्य सेवा से वंचित न होना पड़े इसके लिए केंद्र सरकार आयुष्मान योजना लेकर आई, लेकिन यह योजना गरीब परिवारों को लूटने का निजी अस्पतालों का नया जरिया बन गई है. एक तरफ निजी अस्पताल एक तरफ इस योजना के जरिए सरकार को चूना लगा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर गरीब परिवारों से भी अच्छी खासी रकम वसूली जा रही है.

मामला गरियाबंद जिले के कदलीमुडा में रहने वाले चेतन राम का है, जिनके लिए 30 दिसंबर को देवभोग के सुपेबेडा में हुए प्रभारी मंत्री अमरजीत भगत का दौरा मुसीबत बनकर टूटा. चेतन राम व मां राजकुमारी का मंझला बेटा 17 वर्षीय लंबुधर फायर बिग्रेड से सीधी टक्कर में बुरी तरह से घायल हो गया. इसके बाद शुरू हुआ मुसीबत का सफर अब तक जारी है. इस घटना के बाद सरकारी कर्मचारियों ने लंबुधर को किसी तरह देवभोग के सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया, दाहिने जाँघ, हाँथ व चेहरे में गम्भीर चोट को देखते हुए देवभोग अस्पताल ने 108 के जरिये उसी रात को मेकाहारा रेफर कर दिया.

मां-बाप का आरोप है कि मेकाहारा प्रबंधन इलाज में लापरवाही कर रहा था. डॉक्टरों की हड़ताल का हवाला देकर मामूली इंजेक्शन व ग्लूकोज बॉटल देकर इलाज बन्द कर दिया गया था. कराह रहे कलेजे के टुकड़े की परेशानी नहीं देखी गई तो परिजनों ने राजधानी के ही एक निजी अस्पताल में 1 जनवरी को लंबुधर को भर्ती कराया. पीड़ित का दाहिने थाई, फार आर्म के अलावा फेसियल बोर्न में कई जगह से फेक्चर थे, जिसे ठीक करने निजी अस्पताल प्रबंधन 6 दिन के भीतर राइट फिमर इंटरलॉकिंग, राइट रेडियस प्लेटिंग, मैक्जीलो फैसियल सर्जरी किया. 7 दिसम्बर को पीड़ित को डिस्चार्ज कर दिया गया.

जनवरी व फरवरी में पीड़ित दो बार फॉलो कराने अस्पताल पहुंचा. परिवार का कहना है कि पहली दफा भर्ती के बाद हर बार वह अपने से गया. उनके पास मौजूद आयुष्मान कार्ड से 55 हजार लेने के बाद सर्जरी व दवा में 3 लाख से ज्यादा का भुगतान के अलावा आवाजाही व अन्य खर्च मिलाकर अब तक 4 खर्च कर चुके हैं. माता राजकुमारी ने बताया कि अस्पताल में किये गए एक भी भुगतान की रिसिव्ड पर्ची उन्हें नहीं दिया है, नाक का अंतिम फॉलो कराना है, उसी के बाद खर्च व बिल का हिसाब देने की बात प्रबंधन कहता आया है.

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पैसे के इंतजाम में जुटे माता-पिता

मां राजकुमारी ने बताया कि गहना बेचने के अलावा कदलीमूड़ा, कोदोबेड़ा, चिखली, मूढ़गेलमाल में रहने वाले अपने 20 से ज्यादा रिश्तेनाते दार के अलावा समूह लोन, सरपँच, पुजारी व पंचों से सहयोग लेकर बेटा का इलाज का खर्च वहन कर चुकी हूं, अब दवा की जरूरत है. तीसरे फॉलोअप में नाक की सर्जरी को भी दिखाना है, दर्द बढ़ते जा रहा है, लेकिन सारे जान पहचान वालों से पैसे ले चुके होने के कारण अब दूसरा विकल्प नहीं दिख रहा है. मां ने बताया कि बेटे के इलाज के लायक पैसे जुटाने घर मे भोजन व अन्य जरूरी चीजों के खर्च में कटौती कर 15 दिन में 400 रुपये ही बचा पाई हूं, जबकि एक बार रायपुर जाने आने व अस्पताल से दवा पानी लाने में 15 से 20 हजार रुपए लग जाते हैं.

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अस्पताल संचालक मांग रहे रिसिव्ड

निजी अस्पताल के संचालक मामले पर कहते हैं कि जो भी उपचार हुआ है उसका भुगतान स्मार्ट कार्ड से लिया गया है. परिजन जितना खर्च बता रहे सम्भव नहीं है. अगर उन्होंने कोई भुगतान किया है तो रिसिव्ड दिखाये. मामला दो-तीन महीने पुराना है, इसलिए कितना लिया गया है वह फाइल देखकर ही बता पाऊंगा.

अस्पताल के खिलाफ होगी जांच

वहीं गरियाबन्द सीएमएचओ एनआर नवरत्न कहते हैं कि उपचार से लेकर फ़ॉलोअप में मरीज की पूरी मदद की गई है. अतिरिक्त कोई भुगतान निजी अस्पताल ने लिया तो उस वक़्त इन्हें बताना था, या कोई स्लिप हो तो बताए. अगर खर्च बताया जा रहा है तो किसलिए निजी अस्पताल ने यह भुगतान लिया है, इसकी जांच की जाएगी. अस्पताल प्रबंधन प्रबन्धन दोषी पाया गया तो कार्रवाई का प्रस्ताव शासन को भेजा जाएगा.

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