आशुतोष तिवारी, जगदलपुर। विश्व प्रसिध्द बस्तर दशहरा की दूसरी महत्वपूर्ण रस्म डेहरी गड़ाई रविवार को सीरासार भवन में संपन्न हुई. करीब 700 वर्षों से चली आ रही इस रस्म में बिरिंगपाल से लाई गई सरई पेड़ की टहनियों को एक विशेष स्थान पर स्थापित किया गया. विधि विधान पूर्वक पूजा-अर्चना कर रथ निर्माण के लिए माई दंतेश्वरी से आज्ञा ली गई.
रियासत काल से चली आ रही इस रस्म में परम्परानुसार डेरी गड़ाई के लिए बिरिंगपाल गांव से सरई पेड़ की टहनियां लाई जाती हैं. इन टहनियों को पूजा कर पवित्र करने के पश्चात लकड़ियों को गाड़ने के लिए बनाये गए गड्ढों में अंडा व जीवित मछलियां डाली जाती हैं. जिसके बाद टहनियों को गाड़ कर इस रस्म को पूरा किया जाता है. इसके साथ ही माई दंतेश्वरी से विश्व प्रसिद्ध दशहरा रथ के निर्माण प्रक्रिया को आरम्भ करने की इजाजत ली जाती है.
रियासत काल से चली आ रही बस्तर दशहरा की इन परम्पराओं का निर्वहन आज भी बखूबी किया जा रहा है. डेरी गड़ाई की रस्म के बाद परम्परानुसार माचकोट जंगलों से लाई गई लकड़ियों से रथ निर्माण का कार्य प्रारम्भ होगा. माई दंतेश्वरी के मुख्य पुजारी के अनुसार दशहरा पर्व 75 दिनों तक चलने वाला एकमात्र पर्व है, और इसकी सभी रस्में महत्वपूर्ण हैं. डेरी गड़ाई के बाद काछनगादी की रस्म निभाई जाएगी, जिसमें मिरगान जाति की नाबालिक बच्ची पर काछन देवी सवार होती है. बस्तर के राजा देवी से दशहरा पर्व मनाने की अनुमति लेते हैं, जिससे बस्तर का यह पर्व निर्वाध रूप से मनाया जा सके.
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कोरोना का इस बार भी रहेगा असर
डेरी गड़ाई की रस्म को पूरा करने के बाद बस्तर सांसद दीपक बैज ने आम लोगों से अपील की कि पिछले 2 साल से कोविड की वजह से भीड़ को नियंत्रण कर के दशहरा संपन्न करवाया जा रहा है, इस वर्ष भी खतरा टला नहीं है. तीसरी लहर की आने की आशंका बनी हुई है, इसलिए इस वर्ष भी भीड़ को नियंत्रण करते हुए सभी रस्मों को निभाते हुए दशहरा सम्पन्न करवाया जाएगा.
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