रायपुर। अगर आप कुत्ते पाल रहे हैं तो हो जाएं सावधान, हो सकता है आपको गंभीर बीमारी हाईडैटिड सिस्ट का खतरा। जी हां, आपने सही सुना फेफड़े एवं पेट के हाइडैटिड सिस्ट का सफल ऑपरेशन डॉक्टरों द्वारा एक ही बार में किया गया जिससे कि मरीज को बार-बार बेहोशी (एनेस्थेसिया) देने की जरूरत नहीं पड़ी। कार्डियोथोरेसिक सर्जन डॉ. कृष्णकांत साहू एवं गैस्ट्रोसर्जन डॉ. रोमिल जैन ने मिलकर एक साथ कुत्तों के जरिये फैलने वाली इस गंभीर बीमारी का सफल ऑपरेशन किया। लिवर एवं फेफड़े में एक साथ हाइडैटिड सिस्ट होना बहुत ही दुर्लभ होता है।

पं. जवाहर लाल नेहरु स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय रायपुर से संबद्ध डॉ. भीमराव अम्बेडकर स्मृति चिकित्सालय के एडवांस कार्डियक इंस्टीट्यूट (एसीआई) में कार्डियोथोरेसिक सर्जन एवं विभागाध्यक्ष डॉ. के. के. साहू एवं डीकेएस अस्पताल के गैस्ट्रोसर्जन डॉ. रोमिल जैन ने मिलकर 42 वर्षीय युवक के फेफड़े एवं लिवर के हाईडैटिड सिस्ट का एक साथ ऑपरेशन करके मरीज को नया जीवन दिया। एक साथ दो ऑपरेशन होने से मरीज को बार-बार बेहोश करने की आवश्यकता नहीं पड़ी। मरीज का ऑपरेशन 15 दिन पहले हुआ एवं आज मरीज डिस्चार्ज होकर घर जाने को तैयार है।

हाईडैटिड सिस्ट नामक बीमारी लिवर (यकृत) में कॉमन होता है। लिवर में इसके होने की संभावना लगभग 65 प्रतिशत तक होती है। वहीं फेफड़े में 10-15 प्रतिशत एवं मस्तिष्क व हृदय में कहीं पर भी हो सकता है लेकिन एक साथ फेफड़े एवं लिवर में होने की संभावना लगभग 4 प्रतिशत तक ही होती है। कृमि जिसको इकाइनोकोकस ग्रेन्युलोसस ( echinococcus granulosus ) कहा जाता है उसके संक्रमण से हाइडैटिड सिस्ट होता है। कुत्ते के मल के जरिये यह लोगों में फैलता है।

खरोरा थानांतर्गत सारागांव निवासी 40 वर्षीय व्यक्ति खांसी, सांस फूलने एवं पेट दर्द की शिकायत से एसीआई के हार्ट, चेस्ट एवं वैस्कुलर सर्जन डॉ. कृष्णकांत साहू के पास मार्च के महीने में आया। उस समय कोरोना के कारण सब जगह लॉडाऊन था। एक्स-रे, सोनोग्राफी एवं छाती एवं पेट का सीटी स्कैन कराने पर पता चला कि उसके बायें फेफड़े एवं लिवर के बायें लोब में बहुत ही बड़ा सिस्ट हो गया है जिसको मेडिकल भाषा में हाइडैटिड सिस्ट कहा जाता है जो कि कुत्तों से संपर्क मे आने पर फैलता है परंतु इस व्यक्ति के घर में कोई कुत्ता नहीं था। हो सकता है कि गली के कुत्तों के संपर्क में आने पर या कच्ची एवं अधपकी सब्जी, सलाद खाने पर या फिर ठीक से हाथ न धोने पर कुत्ते के मल से निकला कृमि इकाइनोकोकस ग्रेन्युलोसस ( echinococcus granulosus ) उसके पेट में चला गया हो। कोरोना की वजह से अस्पताल में नॉनइमर्जेंसी ऑपरेशन बंद होने के कारण मरीज को फौरी राहत के लिए कृमि की दवाई एलबेन्डाजॉल (albendazole) देकर घर भेज दिया गया। मरीज को कोरोना नियंत्रण के बाद आने को कहा गया परंतु मरीज के सांस फूलने की शिकायत बढ़ने लगी जिसके कारण मरीज को इमर्जेंसी में भर्ती करना पड़ा। चूंकि मरीज को फेफड़े के साथ-साथ लिवर में भी बहुत बड़ा सिस्ट था इसलिए पहले सिर्फ फेफड़े के ऑपरेशन के लिए प्लान किया गया क्योंकि सांस फूलने की शिकायत बहुत अधिक थी परंतु ऐसा करने से मरीज को दूसरी बार पेट (लिवर) का ऑपरेशन करवाना पड़ता जिससे उसको ज्यादा खतरा हो सकता था इसलिए दो ऑपरेशन से बचने के लिये डॉ. कृष्णकांत साहू ने डॉ. रोमिल जैन से सम्पर्क किया एवं एक साथ फेफड़े एवं लिवर की सर्जरी की प्लानिंग की जिससे मरीज को एक ही बेहोशी में दोनों ऑपरेशन हो जाये।

ऐसे हुआ ऑपरेशन

एसीआई के ऑपरेशन थियेटर में सर्जरी की प्लानिंग करके सबसे पहले मरीज को डबल ल्युमेन एन्डोट्रेकियल ट्यूब ( double lumen endotracheal tube ) की सहायता से बेहोश किया। इस ट्यूब का फायदा यह होता है कि एक तरफ के फेफड़े को जिसमें ऑपरेशन हो रहा है उसका वेन्टीलेशन बंद करके दूसरे स्वस्थ्य फेफड़े को वेन्टीलेशन किया जाता है जिससे सर्जन आसानी से फेफड़े का ऑपरेशन कर सकता है एवं मरीज को बराबर ऑक्सीजन प्राप्त होता रहता है।

मरीज के बेहोश होते ही डॉ. कृष्णकांत साहू ने बायीं छाती में चीरा लगाकर फेफड़े के सिस्ट को सावधानी पूर्वक ऑपरेशन करके निकाला एवं पुनः फेफड़ों को रिपेयर किया जिससे भविष्य में ब्रोन्कोप्लुरल फिस्चुला ( bronchopleural fistula ) न बने। सिस्ट को अन्य जगह फैलने से रोकने के लिए कृमिनाशक (Scolicidal) का उपयोग किया एवं छाती के घाव को बंद किया। उसके बाद गैस्ट्रोसर्जन डॉ. रोमिल जैन ने पेट में चीरा लगा कर लिवर के सिस्ट को निकाला।

फेफड़े के सिस्ट का आकार 15×12 सेंटीमीटर एवं लिवर के सिस्ट का आकार 25×5 सेंटीमीटर था। यह ऑपरेशन चार घंटे चला। मरीज का इलाज डॉ. खूबचंद बघेल स्वास्थ्य सहायता योजना के अंतर्गत हुआ।

ऑपरेशन में शामिल टीम

डॉ. कृष्णकांत साहू (विभागाध्यक्ष- हार्ट, चेस्ट एवं वैस्कुलर सर्जरी), डॉ. रोमिल जैन (गैस्ट्रो सर्जन डीकेएस), डॉ. निशांत चंदेल (हार्ट, चेस्ट एवं वैस्कुलर सर्जन), डॉ. अश्विन (रेजीडेंट), एनेस्थेटिस्ट एवं क्रिटिकल केयर – डॉ. अरूणाभ मुखर्जी एवं टीम, नर्सिंग स्टॉफ – राजेन्द्र, चोवा राम।

क्या होता है हाइडैटिड सिस्ट एवं कैसे फैलता है

हाइडैटिड सिस्ट इकाइनोकोकस ग्रेन्युलोसस नामक कृमि से कुत्तों से इंसानों में फैलता है। इस कृमि को जिन्दा रहने के लिए दो जीवों, कुत्ता एवं भेड़/बकरी का सहारा लेना पड़ता है जिससे इसका जीवन चक्र ( life cycle ) संपूर्ण होता है। यह कृमि सामान्यतः कुत्ते या लोमड़ी में पाया जाता है एवं यही उसका घर होता है। कुत्ते के मल के जरिये ये खुले में पहुंचते हैं। मल, धूल व मिट्टी में मिलता है फिर घास-फूस खाते हुए भेड़ बकरी में पहुंच जाता है। फिर मरी हुई भेड़ बकरी को कुत्ते खा जाते हैं एवं इसी प्रकार इनका जीवन चक्र चलता रहता है।

इंसानो में कैसे पहुंचता है यह कृमि

ये कृमि (वार्म) कुत्ते के मल के साथ सिस्ट के रूप में बाहर निकलता है एवं मल सूख कर मिट्टी में मिल जाता है। ये सिस्ट (कृमि का अंडा) जिसका बाहरी खोल बहुत ही सख्त होता है एवं यह बहुत दिनों तक मिट्टी एवं हवा में जिंदा रह सकता है। सांस के जरिये, फल, सब्जी, सलाद के माध्यम से या गंदे हाथों से खाना-खाने पर यह इंसानों में प्रवेश कर जाता है। जब हम ऐसे कुत्तों के साथ रहने लगते हैं या खेलने लग जाते हैं तो उसके शरीर में चिपक कर सिस्ट इंसानों में प्रवेश कर जाता है।

कुत्ते पाल रहे हैं तो क्या सावधानी बरतें:

  • कुत्तों को नियमित वेटनेरी डॉक्टर की सहायता से डिवर्मिंग करवायें।
  • अधपकी कच्ची सब्जी न खायें। अच्छे से धोकर सब्जी पकायें।
  • गंदे हाथों से खाना न खायें विशेषकर बच्चे ।
  • कुत्तों से नजदीकियां रखने पर मास्क लगायें और खेलने के बाद हाथ अच्छे से धोयें।