रायपुर. छत्तीसगढ़ की भूपेश सरकार अपने जन घोषणापत्र का एक और महत्वपूर्ण वादे – आदिवासी क्षेत्रों में पेसा कानून को लागू करना- को पूरा करने की दिशा में आगे बढ़ती नज़र आ रही है. पंचायत मंत्री टीएस सिंहदेव ने शनिवार को जन संगठनों और आदिवासी नेताओं से इस संबंध में चर्चा की.  बाद में मीडिया से बात करते हुए टीएस ने कहा कि सरकार की कोशिश है कि पेसा कानून के नियम जल्द बनाकर छत्तीसगढ़ के 85 आदिवासी ब्लॉकों में इसे लागू करा लिया जाए. हालांकि सरकार की इस कवायद को भाजपा ने सिरे से खारिज कर दिया है और इसे केवल कोरोना से ध्यान भटकाने की शिगूफे बाजी करार दिया है.

पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम 1996 जो पेसा कानून के नाम से जाना जाता है बन तो गया है लेकिन इसके अलग से राज्यों में नियम नहीं बने हैं जिसकी वजह से इसको लागू नहीं किया जा सका है. यह कानून देश के 10 राज्यों में लागू है. ये राज्य हैं- आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, ओडिशा एवं राजस्थान. छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने अपने जन-घोषणापत्र में इस कानून को छत्तीसगढ़ में पूर्णता लागू करने का वादा किया था.

पंचायत मंत्री टी एस सिंह देव ने पेसा कानून के नियम बनाने को लेकर जन संगठनों और आदिवासी नेताओं से चर्चा की. उन्होंने कहा कि सरकार की कोशिश है कि जल्द ही चर्चाओं और रायशुमारी के आधार पर उन नियमों को बना लिया जाए. जिसे कानून के रूप में विधानसभा में पारित कराकर ऐसा कानून छत्तीसगढ़ में लागू कर दिया जाए.

सिंहदेव ने कहा कि ‘पेसा’ के लिए नियम बनाने आज शुरू हुई चर्चा का विस्तार किया जाएगा. अनुसूचित क्षेत्रों वाले जिलों और विकासखंडों के लोगों से भी चर्चा कर उनके सुझावों को इसमें शामिल किया जाएगा. उन्होंने कहा कि ‘पेसा’ के सभी 38 प्रावधान प्रदेश में प्रभावी ढंग से लागू किया जा सके, इसके लिए सभी स्तरों पर वृहद चर्चा के बाद इसे अंतिम रूप दिया जाएगा. इसके लिए ऑनलाइन सुझाव भी मांगे जाएंगे.

पंचायत विभाग इस कानून को अमल में लाने वाले दूसरों राज्यों महाराष्ट्र, गुजरात, आंध्रप्रदेश, हिमाचल प्रदेश और राजस्थान के नियमों का भी अध्ययन कर रहा है. उन्होंने कहा कि पंचायतीराज और ‘पेसा’ कानून की आत्मा को बरकरार रखते हुए अनुसूचित क्षेत्रों में स्थानीय स्वशासन की प्रभावी रीति-नीति तय की जाएगी.

आदिवासी समाज और गैर-सरकारी संगठनों के प्रतिनिधियों ने ‘पेसा’ पर चर्चा के दौरान ग्रामसभा के सशक्तिकरण, प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग, रीति-रिवाजों, परंपरा और संस्कृति के संरक्षण, जमीन अधिग्रहण, ग्राम कोष, वनवासियों के कल्याण तथा नई विकास परियोजनाएं शुरू करने के संबंध में अनेक सुझाव दिए. उन्होंने कहा कि ‘पेसा’ के लिए नियम बनाते समय वर्तमान राजस्व और वन कानूनों का भी अध्ययन जरूरी है. इसे प्रभावी ढंग से लागू करने यदि इनमें संशोधन की जरूरत हो तो उस पर भी विचार किया जाना चाहिए. लोकतांत्रिक शक्तियों के विकेन्द्रीकरण के लिए समग्र नियम आवश्यक हैं.

पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरविंद नेताम और पूर्व सांसद सोहन पोटाई ने ‘पेसा’ पर अमल के लिए आदिवासी समाज को चर्चा में शामिल करने और उनसे सुझाव लेने के लिए पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री सिंहदेव को धन्यवाद दिया. दोनों ने कहा कि इस तरह की महत्वपूर्ण चर्चा के लिए पहली बार आदिवासी समाज को आमंत्रित किया गया है. इससे सरकार की गंभीरता और प्रतिबद्धता पता चलती है. नेताम ने कहा कि राज्य के लिए यह मील का पत्थर स्थापित करने का सुअवसर है कि वह ‘पेसा’ के लिए एक बेहतर और प्रभावी नियम बनाकर देश में मॉडल बने. ‘पेसा’ के हर क्लॉज के लिए पूरी गंभीरता से नियम बनाने की जरूरत है.

सर्व आदिवासी समाज के प्रतिनिधियों ने छत्तीसगढ़ की विशेषताओं के आधार पर ‘पेसा’ के लिए नियम बनाने का सुझाव दिया. उन्होंने इसकी प्रारूप समिति में आदिवासी संस्कृति और जन-जीवन के जानकार व्यक्तियों को शामिल करने का भी सुझाव दिया. बैठक में सर्व आदिवासी समाज के बी.एस. रावटे, एन.एस. मंडावी, अकबर राम कोर्राम, मोहन कोमरे, प्रकाश ठाकुर, विनोद नागवंशी, नकुल चंद्रवंशी, अश्वनी कांगे और तुलसी मंडावी उपस्थित थे. गैर-सरकारी संगठनों से गौतम बंदोपाध्याय, आलोक शुक्ला, सुदेश टीकम, अनुभव शोरी, संदीप सलाम, विजेन्द्र, सरस्वती ध्रुव और सुलक्षणा नंद चर्चा में शामिल हुईं. सामाजिक कार्यकर्ता रमेश अग्रवाल, विजय भाई और शालिनी गेरा तथा आदिवासी समाज के अनूप टोप्पो, बसंत कुजूर और सुभाष ने वीडियो कॉन्फ्रेंस से अपने सुझाव दिए.

उधर इस कानून को लागू कराने को लेकर विपक्ष की अपनी अलग राय है. बीजेपी नेता बृजमोहन अग्रवाल इसे कांग्रेस की कोरोनावायरस बढ़ाने की शिगूफे बाजी करार दे रहे हैं.

2018 के विधानसभा चुनाव में आदिवासी क्षेत्रों में कांग्रेस को बड़ी सफलता मिली इसके पीछे कारण यह भी था कि आदिवासी क्षेत्रों में काम करने वाले जन संगठनों ने कांग्रेस को बढ़-चढ़कर मदद पहुंचाई. इन जन संगठनों की मदद के पीछे एक बड़ा कारण छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों में पेसा कानून लागू कर आदिवासियों के हितों का संरक्षण करना भी था. ऐसे में अब जब कांग्रेस अपने इस वादे को पूरा करने के लिए मैदान में हैं तो उसके सामने चुनौती भी कम नहीं है. इस कानून में सारे बड़े अधिकार आदिवासियों को मिल जाएंगे जिससे दूसरे वर्गों का आदिवासी क्षेत्रों में ज्यादा कुछ हस्तक्षेप नहीं रह जाता और इसीलिए इस कानून के नियम बनाने को लेकर सियासत देखने को मिल रही है.